(आलोक तिवारी)
(मथुरा)
√ मुख्यमंत्री कार्यालय ने पुलिसकर्मीयो के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के दिए थे आदेश
फर्जी मुकदमे में फसाना मथुरा पुलिस को धीरे धीरे अब भारी पड़ने लगा है। अधिकतर पीड़ित मुकदमे में बरी होने के बाद शांत बैठ जाते हैं लेकिन जो आबाज उठाते हैं उन्हें न्याय मिलता है।
ऐसा ही एक प्रकरण मथुरा कोतवाली का है विरोधियों ने दूसरे पक्ष को फसाने के लिए मथुरा कोतवाली पुलिस के साथ मिलकर फर्जी मेडिको लीगल बना कर जाल बुना।
फर्जी मुकदमा मे सजा कराने का सपना देखने वाले स्वयं आज अपने ही जाल में फंस गए हैं पीड़ितो ने फर्जी मुकदमे में बरी होने के बाद तत्कालीन कोतवाल शिव प्रताप सिंह, उपनिरीक्षक सतेंद्र कुमार, क्षत्रपाल, कास्टेबिल गंगा सिंह, फर्जी मुकदमा दर्ज़ कराने वाली महिला अनीता और उसके पति सतीश कुमार सहित 5 अन्य के खिलाफ एससी एसटी न्यायालय मनोज कुमार मिश्रा विशेष न्यायाधीश की अदालत ने गुरुवार को आदेश जारी कर कार्यवाही शुरू कर दी है। इससे पूर्व मुकदमा से बरी हुए युवक अरुण कुमार ने मुख्यमंत्री को प्रार्थना पत्र दिया उक्त प्रार्थना पत्र पर मुख्यमंत्री कार्यालय ने पुलिस कर्मियों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करने के आदेश मथुरा पुलिस के आलाधिकारी अधिकारियो को दिए । अपनो को फसता देख मुख्यमंत्री आफिस के आदेश को दबा दिया। बताते चलें कि शिव प्रताप सिंह वर्तमान में पदोन्नत पाकर सीओ आगरा मे एवम उप निरीक्षक छत्र पाल आगरा में तैनात है।
इन सभी ने उक्त कार्यवाही से बचने के लिए महिला अनीता से बरी हुए युवक अरुण कुमार को पुनः फसाने के लिए एक झूठा मुकदमा थाना सदर में फरह स्वास्थ्य केंद्र का फर्जी मेडिकल बनाकर लिखाने का प्रयास किया। पीड़ित पक्ष को सूचना के अधिकार अधिनियम से पता चला कि उक्त महिला का मेडिकल फरह स्वास्थ्य केंद्र के रिकार्ड में दर्ज नहीं है।
उक्त जानकारी मिलने पर पीड़ित पक्ष ने कोर्ट को बताया तो न्यायालय ने उसे भी गंभीरता से लेते हुए उस पर भी कार्यवाही शुरू कर दी।
कानूनविद मोहर सिंह का मानना है कि किसी न्यायालय द्वारा बरी होने पर न्यायालय द्वारा पारित निर्णय में पुलिस विवेचना क्या करेगी, क्योंकि सभी असल तथ्य पूरी ट्रायल के दौरान आ जाते हैं।
माननीय अपर न्यायालय को ही अधिकार है वह संज्ञान लेते हुए अग्रिम कार्यवाही कर सकती है और झूठा मुकदमा लिखाने वाले और दूषित विवेचना करने वाले पुलिस कर्मियों के विरुद्ध भी कार्यवही शुरू कर सकती है।