लेखक-अरविंद जयतिलक
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत की चढ़ी त्यौरियों से डरा-सहमा पाकिस्तान अब अपना प्राण बचाने के लिए परमाणु बम चलाने की धौंस दिखा रहा है। शायद उसे लग रहा है कि परमाणु हमले की धमकी से भारत डरकर उसे सबक सिखाने का इरादा त्याग देगा। लेकिन ऐसा नहीं होने जा रहा। भारत पाकिस्तान को सबक सिखाने का मन बना लिया है और उसे देर-सबेर पहलगाम हमले का अंजाम भोगना ही होगा। पाकिस्तान को ध्यान देना होगा कि वह जब भी भारत से युद्ध लड़ा है उसे हर बार मुंह की खानी पड़ी है। 1971 के युद्ध में तो उसका भूगोल ही बदल गया। पाकिस्तान को अच्छी तरह मालूम है कि युद्ध लड़ने के लिए भारी संसाधन और मजबूत अर्थव्यवस्था की जरुरत पड़ती है, जो कि उसके पास नहीं है। युद्ध की धमकी देने वाले पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर नजर डालें तो वह पूरी तरह खस्ता हाल है। विदेशी मुद्रा भंडार 16 बिलियन अमेरिकी डॉलर है। लेकिन इसमें भी सर्वाधिक कर्ज ही है। अगर युद्ध हुआ तो उसका जीडीपी दो फीसदी के नीचे आ जाएगा। उसका स्टॉक बाजार बुरे दौर से गुजर रहा है। आईएमएफ की रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान का खजाना खत्म होने के कगार पर है। आईएमएफ ने आशंका जाहिर की है कि पाकिस्तान के लिए पहले से लिए गए ऋण को चुकाना मुश्किल होगा। यहां समझना होगा कि चीन से कई अरब डॉलर ़ऋण लेने के बाद भी आईएमएफ से जमानती राशि मिलना बहुत जरुरी है लेकिन पाकिस्तान के लिए यह संभव होता नहीं दिख रहा है। पाकिस्तान की आर्थिक हालात इस कदर बदहाल हैं कि दिसंबर, 2017 के बाद से यहां का केंद्रीय बैंक रुपए की कीमत दो से अधिक बार गिरा चुका है। आज की तारीख में एक डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपया 281 रुपए के स्तर से नीचे है। आयात महंगा होता जा रहा है और महंगाई बढ़ती जा रही है। आज की तारीख में उसका विदेशी मुद्रा भंडार 16.1 फीसदी की तीव्र गिरावट के साथ दस साल के सबसे निम्नतम स्तर पर पहुंच चुका है। उसके केंद्रीय बैंक स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान (एसबीपी) की मानें तो पिछले वित्त वर्ष के अंत में उसका विदेशी मुद्रा भंडार सिर्फ 3.09 अरब डॉलर पर आ गया है। इसमें से तीन अरब डॉलर सऊदी अरब और यूएई के हैं लिहाजा वह इसे खर्च भी नहीं कर सकता। क्यांेकि यह गारंटी डिपॉजिट हैं। फिलहाल पाकिस्तान के पास जो विदेशी मुद्रा भंडार बचा है उससे वह सिर्फ तीन हफ्तों की आयात जरुरतों का पूरा कर सकता है। पाकिस्तान के हालात पर नजर दौड़ाएं तो उत्पादन और खपत दोनों में जबरदस्त गिरावट है। रोजमर्रा की वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं। लाखों परिवारों के सामने भूखमरी की स्थिति है। आटा, दाल और चावल जैसी रोजमर्रा की वस्तएं खरीदने के लिए लोगों को सोचना पड़ रहा है। हालात इतने खराब हैं कि रोटी के लिए लोग जान गंवा रहे हैं। उधर, आयात से भरे शिपिंग कंटेनर बंदरगाहों पर जमा हो रहे हैं। क्योंकि खरीदार उनके लिए भुगतान के लिए डॉलर सुरक्षित रखने में विफल साबित हो रहे हैं। रोलिंग ब्लैक आउट और विदेशी मुद्रा की भारी कमी के कारण कल-कारखने के पहिए ठप्प पड़ते जा रहे हैं। पेट्रोल और डीजल की कीमतें 250 रुपए प्रति लीटर के पार पहुंच चुकी है। मिट्टी के तेल की कीमत भी 190 रुपए प्रति लीटर के आसपास है। दूसरी ओर बिजली की आपूर्ति ठप्प पड़ती जा रही है। इस समय सिर्फ 20 हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन हो रहा है जबकि बिजली की डिमांड 30 हजार मेगावाट से अधिक है। नेशनल ग्रिड बार-बार फेल हो रहा है। इसका असर न सिर्फ कल-कारखानों पर पड़ रहा है बल्कि अस्पतालों में ऑपरेशन थिएटर भी बंद करना पड़ रहा है। आर्थिक विश्लेषकों की मानें तो हालात नहीं सुधरे तो आने वाले दिनों में पाकिस्तान की स्थिति श्रीलंका जैसी हो सकती हैं। भविष्यवाणी तो यह भी की जा रही है कि मई आते-आते देश डिफाल्ट होने की स्थिति में पहुंच जाएगा। सबसे बुरा हाल आम आदमी का है। उसके जीवन पर संकट है। क्योंकि खाद्य वस्तुओं की कीमतें आसमान छूने लगी है। नतीजा सड़कों पर दंगे जैसे हालता उभर रहे हैं। गौर करें तो 78 साल पहले अस्तित्व में आए पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था आज बुरी तरह विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष से मिलने वाली सहायता पर निर्भर है। उत्पादन और खपत दोनों में जबरदस्त गिरावट है और कीमतें आसमान छू रही हैं। गरीबी-बेरोजगारी रिकार्ड स्तर पर है। युवाओं की आबादी का बड़ा हिस्सा नौकरी की तलाश में देश छोड़ रहा है। बीते वर्षों में 15 लाख युवाओं ने पाकिस्तान से पलायन किया है। पाकिस्तानी हुक्मरानों की नाकामी और आतंकवाद, गरीबी और बेरोजगारी की वजह से लोगों को स्थिरता और सुरक्षा देने वाली सामाजिक-पारिवारिक व्यवस्था भी ध्वस्त हो चुकी है। देश में आतंकवाद की वजह से मानसिक स्वास्थ्य के रोगियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो आज पाकिस्तान की एक तिहाई आबादी गरीबी रेखा से नीचे है। नए मानकों के आधार पर जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तान में गरीबी रेखा से नीचे जीवन गुजर-बसर करने वालों की तादाद 6 करोड़ से पार है। पाकिस्तान के केंद्रीय योजना व विकास मंत्रालय के मुताबिक देश में गरीबों को अनुपात बढ़कर 35 प्रतिशत के पार पहुंच चुका है। जबकि 2001 में गरीबों की तादाद दो करोड़ थी। आश्चर्य होता है कि एक ओर पाकिस्तानी हुक्मरान विकास का दावा करते हैं जबकि दूसरी ओर देश में गरीबी का विस्तार हो रहा है। आज पाकिस्तान के हर नागरिक पर तकरीबन 3 लाख रुपए कर्ज है। पाकिस्तान में गरीबी की वजह से न सिर्फ आत्महत्या की घटनाएं सामने आ रही हैं बल्कि पैसों को लालच देकर नौजवानों को आतंकी बनाया जा रहा है। आतंकियों को प्रश्रय देने के साथ वैश्विक समुदाय से मिल रही आर्थिक मदद को विकास पर खर्च करने के बजाए भारत विरोधी आतंकी गतिविधियों पर लूटा रहा है। आतंकवाद पर उसके लचर रवैए का नतीजा है कि आज उसके एक बड़े भू-भाग पर परोक्ष रुप से आतंकियों का कब्जा है। अमेरिका आईएमएफ जैसी अन्य वैश्विक संस्थाओं को हिदायत दे चुका है कि वह पाकिस्तान को दी जाने वाली सहायता में कटौती करें। पाकिस्तान को मिलने वाली अंतर्राष्ट्रीय फंडिंग में कटौती शुरु हो गयी है। याद होगा गत वर्ष पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड टंªप ने आतंकवाद पर पाकिस्तान के दोहरे रवैए को उजागर करते हुए कहा था कि उसने आतंकवाद से लड़ने के नाम पर 15 साल में 33 अरब डॉलर यानी दो लाख दस हजार करोड़ रुपए की सहायता ली, लेकिन इसके बावजूद भी उसने आतंकवादियों की ही मदद की। टंªप ने यह भी कहा कि पाकिस्तान झूठा और कपटी है और वह अब तक अमेरिका को सिर्फ धोखा देने का काम किया है। वैसे अगर पाकिस्तान चाहता तो अपनी भूमि से आतंकियों को खत्म कर भारत से रिश्ते मजबूत कर अपनी आर्थिक स्थिति सुधार सकता था। याद होगा गत वर्ष भारत का उद्योग चैंबर एसोचैम ने कहा था कि पाकिस्तान को आर्थिक संकट से उबारने के लिए उसे चीन और ईरान के साथ नहीं बल्कि भारत के साथ कारोबारी रिश्ते मजबूत करना चाहिए। भारतीय उद्योग चैंबर ने पाकिस्तान को आर्थिक समस्याओं के भंवर से निकलने हेतु फार्मूला सुझाया कि वह भारतीय मदद से अपनी विदेशी मुद्रा बचा सकता है। ध्यान देना होगा कि आने वाले दिनों में पाकिस्तान को पांच अहम उत्पादों के आयात की जरुरत होगी जिसमें रिफाइंड पेट्रोलियम उत्पाद, कंप्यूटर्स, इलेक्ट्रानिक मशीनरी, लौह व इस्पात व आटोमोबाइल मुख्य हैं। अगर पाकिस्तान ‘उत्पादों के बदले उत्पाद’ आधार पर भारत के साथ कारोबारी समझौता करता तो निःसंदेह उसे विदेशी मुद्रा खर्च नहीं करनी पड़ती और उसकी अर्थव्यवस्था मजबूत होती। लेकिन उसने यह अवसर गंवा दिया। अब भारत के खिलाफ परमाणु युद्ध की धमकी देकर अपनी ही मुसीबत बढ़ा रहा है। उसे समझना होगा कि कुंए और खाई के चयन में किनारा कहीं नहीं होता।
(लेखक राजनीतिक व सामाजिक विश्लेषक हैं)