लेखक -ओम लवानिया
भोजपुरी फ़िल्म, गीत संगीत और अभिनेताओं को गिरी निगाह से देखने वाला बॉलीवुड आज ख़ुद भोजपुरी अभिनेता, गायक पवन सिंह की लोकप्रियता के बूते स्त्री-2 मूवी को सफ़ल बनाने के लिए जुगत लगाए बैठे हैं।
स्त्री २ में पवन सिंह का “आई नहीं” गीत चार्टबूस्टर हो चला है बल्कि फ़िल्म निर्माता यूपी व बिहार में प्रमोशनल इवेंट्स में भोजपुरी गायक की लोकप्रियता को भुनाने में लगे है।
पवन सिंह ने “आई नहीं” गीत पर जिस प्रकार ठुमके लगाये, कतई जहर लग रहे थे,ठेठ देसी अंदाज बढ़िया लग रहा था।
पार्श्व गायिका सुनिधि चौहान ने अपने इंटरव्यू में वर्तमान परिवेश में संगीत की सच्चाई बतलाई, “पहले कोई पूछता था कि नया क्या आ रहा है, तो बता देते थे। लेकिन अब कोई आईडिया नहीं रहता है। क्योंकि पिछले कुछ सालों से म्यूजिक इंडस्ट्री बैंक की तरह हो गई है। आपने सॉंग रिकॉर्ड कर दिया और पेमेंट ले लिया, बैठ जाओ। आपका गीत किस फ़िल्म में कौनसी सिचुएशन पर फिट बैठेगा, इसके बारे में निर्माता और म्यूजिक निर्देशक जानते है। किसी पर्टिकुलर फ़िल्म के लिए लेबल नहीं लगता है। बल्कि कोई पुराना पॉपुलर गीत है उसे रीमिक्स से फ़िल्म में घुसेड़ देते है।”
दरअसल, सुनिधि के वक्तव्य का भाव है कि फ़िल्म मेकर्स के माइंड में वायरल शब्द चस्पा हो चला है। इसलिए म्यूजिक में इसी सेगमेंट को खोजते है और उसके हिसाब से संगीत जोड़-तोड़ किया जाता है। पहले की तरह फ़िल्म के संगीत पर मेहनत बंद हो गई है।
स्त्री-2 में पवन सिंह को वायरल सेगमेंट के लिए लिया गया है। आगे दूसरे सिंगर्स भी आएँगे।।
इसी क्रम में देखा होगा कि बड़े बड़े पार्श्व गायक और गायिका को गीत कम मिलने लगे हैं क्योंकि ये लोग म्यूजिक डायरेक्टर से पूछ लेते है। फ़िल्म और सिचुएशन में भी दिलचस्पी लेते है। गीत के भाव अच्छे से निकल सके।
ज्यादातर संगीत मल्टीस्टारर हो गया है, एक गीत के साथ अलग-अलग संगीतकार आने लगे है। सिंगर्स में भी नये नवेले आ रहे है। इसलिए उनका डिप्रेशन लेवल बहुत हाई होता है। इसे समझे, सुनिधि कहती है कि रियलिटी शो में जज जिस सिंगर्स के गाने पर स्टैंडिंग ओवेशन देते है अगले राउंड में एलिनिमेट हो जाता है। तो वही मेकर्स उन सिंगर्स के लिये स्क्रिप्ट लिखते है जो वाक़ई अच्छा नहीं गाते है किंतु उन्हें झूठी कहानी और तारीफ के साथ लाइम लाइट में रखा जाता है।
क्योंकि मेकर्स एग्रीमेंट करते है, उन्हें आगे बढ़ाते है पब्लिक में डिमांड जनरेट होती है फिर टूर और अल्बम के साथ जुड़ते है। सिंगर नया है तो एग्रीमेंट कर लेता है।
अर्थात् म्यूजिक के नाम पर रियलिटी शो फ्रॉड हो गये है। जनता जिसे वोट देती है वे बाहर हो जाते है। इसलिए सुनिधि ने रियलिटी शो करना छोड़ दिया है कि ऐसा झूठ मुझसे नहीं होगा।
सोनू निगम भी कई बार कह चुके है कि म्यूजिक कंपनी कैसे नए सिंगर्स के साथ खेल रही है। वे तनाव में रहते है उन्हें मालूम नहीं है गीत फ़िल्म में रहेगा या नहीं, कब रिलीज होगा। पूछने की हिम्मत नहीं वरना करियर खत्म कर देंगे।
बीते एक दशक में देखेंगे तो ऐसी कोई एल्बम नहीं है जो लोगों की जुबा पर चढ़ी हो। ऐसे ही वाहियात एक्सपेरिमेंट से म्यूजिक इंडस्ट्री बर्बाद हो जाएगी, या कहे हो चुकी है।
(लेखक फ़िल्मी समीक्षक हैं)