पिछले दिनों जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से मिली दौलत बताती है कि न्यायपालिका में बैठे अधिकांश न्यायाधीश अपनी संपत्ति का ब्यौरा क्यों नहीं देते क्योंकि उन्होंने अपनी संपत्ति का ब्यौरा देना “स्वैच्छिक” बनाया हुआ है ताकि सच वो देश की जनता को बता नहीं सके!
एक पार्षद से लेकर राष्ट्रपति तक का चुनाव लड़ने वाले को अपनी Assets & Liabilities घोषित करनी होती हैं लेकिन न्यायाधीश कानून से ऊपर हैं और यह कहना कि कानून सबके लिए समान है, देश का सबसे बड़ा मज़ाक है और एक जुमले के अतिरिक्त कुछ नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के “फुल कोर्ट” ने निर्णय लिया था कि सभी न्यायाधीश, पद संभालने पर और कोई महत्वपूर्ण प्रकृति का अधिग्रहण करने पर, अपनी संपत्ति की घोषणा मुख्य न्यायाधीश को करेंगे और इसमें मुख्य न्यायाधीश भी शामिल होंगे।सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर संपत्ति की घोषणा स्वैच्छिक आधार पर होगी। इसलिए ऐसा बताते हैं कि 33 में से 27 जजों ने यह ब्यौरा मुख्य न्यायाधीश को दिया है जिसमें CJI संजीव खन्ना भी शामिल हैं लेकिन किसी ने भी वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया।
अब अगर ये Public Servant होते हुए अपनी संपत्ति पब्लिक डोमेन में नहीं देते तो फिर कोई भी पब्लिक सर्वेंट अपनी संपत्ति घोषित क्यों करें, कोई भी जज सुप्रीम कोर्ट में शपथ लेते हुए अपनी संपत्ति की घोषणा नहीं करता।
एक अख़बार में सूचना थी कि देश के 25 उच्च न्यायालयों के 763 जजों में से केवल 57 से अपनी संपत्ति की घोषणा की है, यानी मात्र 7% ने – जस्टिस वर्मा ने भी यह घोषणा नहीं की थी।
Public Servants को न केवल अपनी बल्कि अपने परिवार की संपत्ति भी घोषित करनी होती है परंतु सभी मीलॉर्ड तो….?
परिवार की संपत्ति को छोड़िये, अपनी भी घोषित नहीं करते,किस किस हाई कोर्ट के जजों की क्या Performance है, यह भी देखिए:-
-पंजाब & हरियाणा हाई कोर्ट के 53 जजों में से 29 ने अपनी संपत्ति का ब्यौरा वेबसाइट पर दिया है;
-दिल्ली हाई कोर्ट के 39 में से केवल 7 ने संपत्ति वेबसाइट पर दी है;-
– छत्तीसगढ़ के 16 में से केवल एक ने दी है;
-हिमाचल प्रदेश आगे है, यहां 12 में से 11 ने संपत्ति वेबसाइट पर डाली है;
-कर्नाटक के 50 में से केवल एक “ईमानदार” है जिसने संपत्ति दी है;
-केरल के 44 में 3 ही हैं जिन्होंने यह कुर्बानी दी है; और
-मद्रास हाई कोर्ट के 65 में से केवल 5 ने संपत्ति का ब्यौरा दिया है-
देश के 25 उच्च न्यायालयों में से 18 न्यायालयों के किसी भी जज ने संपत्ति की घोषणा वेबसाइट पर नहीं की – उनके नाम हैं –
-इलाहाबाद;
-पटना;
-रांची;
-आंध्र प्रदेश;
-बॉम्बे;
-कलकत्ता;
-गुवाहाटी;
-गुजरात;
-जम्मू – कश्मीर;
-मध्य प्रदेश;
-मणिपुर;
-मेघालय;
-राजस्थान;
-सिक्किम;
-तेलंगाना;
-ओडिशा;
-त्रिपुरा और
-उत्तराखंड
फिर न्यायपालिका पर जनता को भरोसा कैसे होगा लेकिन फैसले करते हुए यह लोग बड़ी बड़ी बातें बोलते हैं उपदेश देते हैं जैसे इनके भीतर से साक्षात भगवान बोल रहे हों?
कुल मिलाकर अतिशीघ्र भारत के मुख्य न्यायाधीश महोदय को भ्रष्टाचार में आकंठ डूबकर फैसले को व्यापार बनाने वाले कतिपय जजेस के विरुद्ध कठोर कार्यवाही करनी ही चाहिए जिससे कि देश के न्याय प्रिय नागरिकों में न्याय व्यवस्था, न्यायधीशों में आस्था अटूट रहे और एक संदेश भी जाना चाहिए कि कोई कितना भी प्रभावशाली हो अपराध करने पर संविधान के अनुसार सभी को समान रूप से सजा मिलेगी तब जाकर देश में अपराध करने से खास और आमजन दस बार सोचेंगे।

(लेखक उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं और यह उनके निजी विचार हैं)