लेखक – सुभाषचंद्र
आज वर्तमान में यह विचित्र स्थिति दिखाई दे रही है ,ऐसा ही प्रतीत हो रहा है कि अनैतिक और निकृष्ट मानव जैसे भगवान को चुनौती देकर कह रहा है कि मुझे अपनी आत्मा को मार कर जीना भी आता और मुझे नहीं चिंता कि कल इस कर्म का क्या फल मिलेगा, किस जन्म में मिलेगा मुझे नहीं पता और जब उस जन्म का पता ही नहीं तो अपना जीवन अपनी मर्जी से ही जी कर रहूँगा।
हाल ही में महाराष्ट्र के पुणे में एक किशोर वेदांत अग्रवाल के हाथों मारे गए 2 युवा IT Professionals की अनचाही हत्या करने पर भी उसे बचाने के लिए ससून जनरल अस्पताल के फोरेंसिक मेडिसिन विभाग के प्रमुख डाक्टर अजय तावड़े और अस्पताल के CMO श्रीहरि हलनोर को गिरफ्तार किया गया।क्योंकि उन्होंने आरोपी वेदांत को बचाने के लिए उसके खून के सैंपल कूड़ेदान में फ़ेंक कर ऐसे व्यक्ति के सैंपल टेस्ट कर दिए जिसमे शराब का कोई अंश नहीं था, ऐसे मार दिया अपनी आत्मा को डॉक्टरों ने।
दूसरों का जीवन बचाने वाले डॉक्टर ने इस काम को 3 लाख रुपए में सौदा कर के अपनी आत्मा को मार दिया।
वेदांत के अरबपति पिता विशाल अग्रवाल ने ही जोर लगाया होगा और उन्हें खरीदा होगा, 2 जवानों के जीवन की कोई कीमत नहीं बस अपना बेटा बचना चाहिए,यह है अपनी आत्मा को मारना ।
तीन दिन पहले ही विवेक विहार दिल्ली के बेबी केयर हॉस्पिटल में आग लगने से नवजात बच्चे झुलस कर मर गए।
जिस अस्पताल की capacity 5 बच्चों की थी, वहां 15 से ज्यादा बच्चे रख कर बिना इंतज़ाम किए पैसा कमाते रहे सेंटर में गैर कानूनी तरीके से,ऑक्सीजन सिलिंडर भर कर बेचने का धंधा चल रहा था यानी बच्चो की चिंता कम और कमाई की ज्यादा थी,
यह है अपनी आत्मा को मारना।
(लेखक उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं और यह उनके निजी विचार हैं )