लेखक -अमित सिंघल
सांसद कंगना रनौत के किसान आंदोलन के विषय में भाजपा की कार्यवाई को लेकर पार्टी समर्थक उद्वेलित है। मुझे टैग कर रहे है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक डिफिकल्ट एवं विवादित विषय है। अतः इस पर विचार-विमर्श करते है।
क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर आप अल-कायदा या PFI ज्वाइन कर सकते है? या फिर किसी राष्ट्र के नेतृत्व की हत्या का आवाहन कर सकते है? या किसी प्रधानमंत्री के हत्यारे का गुणगान कर सकते है?
लेकिन ऐसी मांग कनाडा में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर अलाउड है, विशेषकर जब यह मांग भारत के नेतृत्व के सन्दर्भ में हो।
नूपुर शर्मा ने जो कहा था, वही बात आनंद रंगनाथन दोहा-चौपाइयों का नंबर कोट करके दर्ज़नो बार पूछ चुके है कि इसका फैक्ट चेक कर दीजिये। अंतर यह है कि नूपुर ने वह बात भाजपा प्रवक्ता के रूप में कही थी, प्रत्यक्ष रूप से कही थी। रंगनाथन किसी पार्टी पद पर नहीं है और अप्रत्यक्ष भाषा का प्रयोग करते है। अतः, भाजपा या अन्य लोग कुछ नहीं कर सकते।
आगे बढ़ते है। जुलाई 2017 में गूगल के इंजीनियर जेम्स डामोर ने एक इंटरनल मेमो में लिखा कि पुरुषों और महिलाओं के बीच गुणों में जैविक अंतर (biological differences) के कारण तकनीक क्षेत्र और लीडरशिप रोल में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 50% नहीं है। रुचिकर यह है कि डामोर ने यह मेमो तब लिखा जब गूगल ने उनसे एक डाइवर्सिटी (विविधता) कार्यक्रम में भाग लेने के दौरान फीडबैक मांगा था।
लेकिन यह आंतरिक मेमो सोशल मीडिया पर लीक हो गया और परिणामस्वरूप मचे शोर के बाद गूगल ने डामोर को नौकरी से निकाल दिया। मेमो में केवल डामोर अपनी राय एवं फीडबैक दे रहे थे, वह भी केवल आंतरिक प्रयोग के लिए। गूगल कह सकता था कि वह डामोर की राय से सहमत नहीं है।
वह भी तब जब अमेरिका में किसी भी राष्ट्र की तुलना में सर्वाधिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। यहाँ तक कि नागरिको द्वारा मशीन गन रखने को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर डिफेंड किया जाता है, भले ही प्रति वर्ष हज़ारो लोगो की मृत्यु गन वायलेंस में हो जाए।
एक अन्य उदाहरण ले लीजिए। एलोन मस्क को सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ना रोकने के लिए प्रताड़ित करने की धमकी दी जा रही है; जबकि उसी सोशल मीडिया पर सरकार के निर्देश पर सेंसर करने के लिए मार्क ज़ुकरबर्ग की प्रशंसा की जा रही है। या फिर टेलीग्राम के स्वामी को फ्रांस में फ्री स्पीच प्रोटेक्ट करने के लिए अरेस्ट कर लिया गया है – वह भी उस फ्रांस में जिसके राष्ट्रीय आदर्श वाक्य (motto) का पहला शब्द ही स्वतंत्रता है।
कई बार विचार-विमर्श की उत्तेजना में (जैसे कि मोदी सरकार द्वारा डंडा चलाने की मांग करना) मेरे पास कुछ ऐसे उदाहरण या प्रश्न होते है जिसे लिखकर मैं उस विषय को वहीं समाप्त कर सकता हूँ। लेकिन नहीं लिखता हूँ क्योकि सही उदाहरण देने पर भी, जो सरकार के फेवर में जाएगा, जो अगले पक्ष को शांत करने में मदद करेगा, लेकिन फिर भी उस तर्क को कदाचित पॉलिटिकली करेक्ट ना माना जाए; अतः चुप रहना ही श्रेयस्कर समझता हूँ।
कंगना के वक्तव्य को इसी सन्दर्भ में देखा जाना चाहिए। जो लोग 16 अक्टूबर 2021 वाली भाजपा की ट्वीट चिपका रहे है, उन्हें उस ट्वीट को ध्यान से पढ़ना चाहिए। उस ट्वीट में उन “अराजक तत्वों” को ब्लेम किया गया है जो “किसानो” के कंधे पर अपने बंदूके रखकर राजनीतिक रोटियां सेंक रहे है।
दूसरे शब्दों में, कंगना को अगर वक्तव्य देना ही था, तो “कुछ लोगो” या “अराजक तत्वों” को किसान आंदोलन के समय ब्लेम करती। कारण यह है कि मोदी सरकार शिवराज सिंह चौहान के माध्यम से किसानो के भेष में इन “अराजक तत्वों” को शांत करने का प्रयास कर रही है।
कंगना अब हिमाचल प्रदेश की मंडी लोकसभा सीट से भाजपा सांसद है, अतः भाजपा की नीतियों के अंदर बात करनी होगी। अगर उन सीमाओं को नहीं मानना है तो रिज़ाइन करके जितना चाहे, उतना बोले।
क्या आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का निर्बाध प्रयोग अपने घर-मोहल्ले या व्यापार में कर सकते है? फिर पार्टी सदस्यों से ऐसी अपेक्षा क्यों है?
वैसे, क्या आपने ध्यान दिया कि ऊपर रंगनाथन के सन्दर्भ में मैंने दोहा-चौपाइयां लिखा है?

(लेखक सुप्रसिद् ब्लॉगर हैं और यह उनके निजी विचार हैं)