★मुकेश सेठ★
★मुम्बई★
{पुनर्विचार याचिका में मौलाना सैय्यद अशद राशिदी ने कहा कि अयोध्या की विवादित भूमि हिंदू पक्ष को देना उन्हें बाबरी मस्जिद के विध्वंस के लिए इनाम देने जैसा}
[राशिदी ने कहा कि 9 नवम्बर के फ़ैसले में भारी कमियां है इसलिए इसमें पुनर्विचार की आवश्यकता है, वह भी ऐसे में जब कोर्ट कह चुका है कि यह कार्य गैर क़ानूनी थे]
(तमाम संघठनो के साथ सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड ने फ़ैसले को स्वीकार करते हुए इस विवाद के समाप्त होने पर ख़ुशी जताते हुए रिव्यू पिटीशन नही दाख़िल करने की अपील की थी)
♂÷रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के द्वारा रामजन्मभूमि पक्ष को जमीन देने व मस्जिद के लिए कहीं 5 एकड़ जमीन देने के फ़ैसले में पहली रिव्यू पिटिशन दाखिल की गई है।
अयोध्या भूमि विवाद मामले में मुस्लिम पक्ष की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई पहली पुनर्विचार याचिका में कहा गया है कि अयोध्या की विवादित भूमि को हिंदू पक्ष को देना उन्हें बाबरी मस्जिद के विध्वंस के लिए ईनाम देने जैसा है।
इस पुनर्विचार याचिका को मौलाना सैय्यद अशद राशिदी ने दाखिल किया है, राशिदी अयोध्या भूमि विवाद के पक्षकार एम सिद्दीक के कानूनी वारिस है। इस याचिका में उन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के 9 नवंबर के फैसले में भारी खामियां हैं इसलिए इसमें पुनर्विचार की आवश्यकता है।
वकील एजाज मकबूल की 217 पेज की याचिका में 217वें पेज पर कहा गया है, “माननीय न्यायालय ने राहत देने में गलती की है जो कि बाबरी मस्जिद को ध्वस्त करने आदेश जैसा है।” माननीय कोर्ट ने हिंदू पक्ष को जमीन देकर 1934, 1949 और 1992 के दौरान हुए अपराधों को पुरस्कार देने की गलती की है,वह भी ऐसे में जब वह (कोर्ट) स्वयं कह चुका है कि यह कार्य गैरकानूनी थे।
इसमें यह सवाल उठाया गया है कि पांच जजों की बेंच कैसे हिंदुओं की 1934 में मस्जिद गुंबद ध्वंस की गैरकानूनी वारदात को दर्ज करने के बाद भी फैसला दे सकती है, जिसके बाद 1992 में बाबरी मस्जिद ध्वंस की घटना घटी।
इस याचिका में कहा गया है, ‘कोर्ट ने हिंदू पक्ष को विवादित भूमि का मालिकाना हक देते हुए उन मूल सिद्धांत की आलोचना की है, जिनके मुताबिक कोई भी व्यक्ति गैरकानूनी काम से फायदा नहीं उठा सकता है… एक दागी क्रियाकलाप को सिविल मुकदमे में नहीं बनाए रखा जा सकता और न ही इसकी डिक्री की जा की जा सकती है।
इस याचिका में दावा किया गया है कि मुस्लिम इस विवादित जमीन के हमेशा से एकमात्र कब्जेदार थे लेकिन बेंच ने हिंदुओं की मौखिक गवाही को, उनके (मुस्लिम पक्ष के) दस्तावेजी प्रमाणों के ऊपर वरीयता दी गई,इसमें यह भी जोड़ा गया कि कोर्ट का विश्वास पुरातात्विक साक्ष्य और यात्रा वृतांत पर विश्वास भी गलत थे।
मालूम हो कि फैसला आने के बाद से ही सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा था कि यह कोर्ट के फैसले पर कोई पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं करेगा।हालांकि जमीयत उलेमा-ए-हिंद और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कह चुके हैं कि वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले से संतुष्ट नहीं हैं,दोनों ही संगठन अलग-अलग वादी के तौर पर इस मामले में पक्षकार थे।