{पीएम इन्दिरा की हत्या के बाद राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने उस राजीव गांधी को सीधे पीएम बना दिया जो न तो लोस,राज्यसभा सदस्य था न ही काँग्रेस का पदाधिकारी}
[भारतीय युद्धपोत INS पर सेना व संविधान के नियम को मज़ाक बना इटैलियन सोनिया व उनके परिजनों व एक प्रख्यात अभिनेता व सांसद को साथ ले मना लिया पिकनिक]
(काँग्रेस अध्यक्ष राहुल के वायनाड से भी चुनाव लड़ने का मतलब अमेठी-रायबरेली सीट अब इनकी निजी सम्पत्ति नही रही)
लेखक÷तुफैल चतुर्वेदी
÷ये लेखक के व्यक्तिगत विचार है
♂÷अभी बैठे-बैठे सूझा कि मोदी जी किसी कारण से राजनीति में नहीं रहना चाहते और महामहिम राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद जी ने तुफ़ैल चतुर्वेदी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला दी। न न न न हँसिये नहीं बहुत गंभीर बात है। यह स्वाभाविक भी है कि मित्रों की दृष्टि में अध्ययनशील, खरे राष्ट्रवादी, स्पष्ट वक्ता, देशहित को व्यक्तिगत हितों से ऊपर रख कर राष्ट्र के प्रति समर्पित व्यक्ति को प्रधानमंत्री बना देना ठीक बात है। आप माने नहीं और हँसने लगे चलिये इस बात को सनक मान कर छोड़ देते हैं मगर देश के साथ ऐसा हो तो चुका है।

31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गाँधी की हत्या हुई। स्वाभाविक था कि तुरंत कांग्रेस वर्किंग कमेटी अपने किसी साँसद को अगले प्रधानमंत्री के रूप में चुनती और तत्कालीन राष्ट्रपति राष्ट्रपति ज्ञानी ज़ैल सिंह को प्रस्ताव भेजती। मगर ऐसा नहीं हुआ और तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी ज़ैल सिंह पर शेख़चिल्लीपन सवार हुआ और उन्होंने इंदिरा गाँधी के पुत्र राजीव गाँधी को, जो कांग्रेस के साँसद तो क्या पदाधिकारी तक न थे, को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला दी। आपने कभी-कभार देखा होगा कि जब किसी व्यावसायिक प्रतिष्ठान के मालिक का देहांत हो जाता तो पास-पड़ौस के दुकानदार उसके बेटे को मृत्यु के तीसरे दिन दुकान खुलवा कर उसे दुकान पर बैठा देते हैं।
भारत नेहरू परिवार या यूँ कहिये गाँधी परिवार की व्यक्तिगत जागीर था। कोई बैठक तक न हुई जिसमें राजीव गाँधी को कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने या कांग्रेस के संसदीय दल ने प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव रखा हो मगर राजीव गाँधी प्रधानमंत्री बना दिए गये। उनकी गुणवत्ता की परीक्षा 2-3 बाद हो गयी जब कांग्रेस के गुंडों ने जगह-जगह सिक्खों पर हमला बोल दिया और उनका ऐतिहासिक बयान “जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है” आया। उनका कार्यकाल आज तक कांग्रेस के गले की हड्डी ”बोफ़ोर्स” जैसे कांडों के लिए जाना गया।
अब राजीव गाँधी की गुणवत्ता का एक वबाल और निकल आया है। उन्होंने मित्रों, संबंधियों के साथ भारतीय युद्धपोत आई एन एस विराट पर छुट्टियाँ मनायीं। इनके साथ उस समय तक इतालवी नागरिक सोनिया गाँधी, इतालवी सुसराल वाले और अब राजनीति छोड़ चुके पूर्व सांसद व अभिनेता भी थे। नौसेना के लोग व्यक्तिगत वेटर बने और सेवा में जुटे रहे। बीच समुद्र में चल रहे भारतीय युद्धपोत आई एन एस विराट के साथ अन्य युद्धपोत, पनडुब्बियां भी थीं। किनारे से ताज़ा ब्रेड, वाइन आदि सामग्री लाने के लिये नौसेना के हैलीकॉप्टर उड़ानें भरते रहे। किसी को इसमें समस्या नहीं होनी चाहिए आख़िर राष्ट्र की अहर्निश सेवा में रत महान योग्य व्यक्ति के प्रधानमंत्री बनाने का साइड इफ़ेक्ट तो होता ही है।
यह जानना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है कि सैन्य केंद्रों पर विदेशियों का जाना वर्जित होता है। कोई नौसैनिक अगर सेना के शस्त्रागार में किसी विदेशी को ले जाये या कोई सैन्य अधिकारी विदेशी से विवाह कर ले तो उसकी सेवा कोर्ट मार्शल द्वारा समाप्त कर दी जाती है। मगर यह तो गाँधी परिवार है,जिसने भारत को अपनी व्यक्तिगत जागीर माने बैठा है। उसके लिये किसी नियम-क़ानून का कोई अर्थ थोड़े ही होता है।
चुनाव चल रहे हैं और 2019 की लड़ाई कांग्रेस के लिये जीवन-मरण का प्रश्न है।मीडिया में अपनी दादी जैसी नाक के कारण न जाने क्यों चर्चित राजीव गाँधी की पुत्री और किसानों की भूमि के परम हितैषी रॉबर्ट वाड्रा की पत्नी प्रियंका रॉबर्ट गाँधी ने पीएम मोदी पर व्यक्तिगत आक्रमण किया।
इस बार उनकी पैतृक सम्पत्ति अमेठी, रायबरेली की सीटें भी हाथ से जाती दिखाई दे रही हैं। ज़ाहिर है राहुल गाँधी यूँ ही तो वायनाड से चुनाव लड़ने नहीं चले गए मगर कितनी भी कठिनाई क्यों न हो आक्रमणों की भी अपनी मर्यादा होती है। जिसका उल्लंघन कांग्रेस के तीसमारखाओं ने किया और व्यक्तिगत हथगोला फेंका तो नरेन्द्र मोदी ने जवाब में एटम बम निकाल लाये।
यह सुनी सुनाई बातों की चर्चा का मामला नहीं है। पाँच साल देश के प्रधानमंत्री की जानकारी में न जाने कितनी पोल-पट्टियाँ आयी होंगी। भुगतो बल्कि लगातार भुगतने के लिये तैयार हो जाओ। तुम डाल डाल हम पात पात
“ये लेखक के व्यक्तिगत विचार है”
लेखक÷तुफ़ैल चतुर्वेदी