लेखक~डॉ.के. विक्रम राव
♂÷पूर्व उपराष्ट्रपति मियां मोहम्मद हामिद अली अंसारी पर लिखे (10 फरवरी 2021) मेरे पोस्ट पर कुछ तीखी प्रतिक्रियायें मिली। केवल एक खास मुद्दा था कि मियां हामिद अली जुलाहा जाति वाले अंसारी नहीं हैं। उच्च कुल वाले अल—अंसारी हैं। मैंने अपनी अज्ञानता स्वीकारी कि पूर्व उपराष्ट्रपति जुलाहा वाले अंसारी नहीं हैं। इन इस्लामी विद्वानों ने मुझे बताया कि हामिद अंसारी अशरफ (उच्च) वर्ग के हैं, न कि अरजल (दलित हिन्दू जो धर्मांतरित होकर मुसलमान बने)। पसमंदा मुस्लिम महाज के एक नेता ने भी बताया कि उनके संगठन में केवल वंचित मुसलमान हैं जिनका इस्लामी रईसजन ने तिरस्कार किया। इन पिछड़े अंसारियों ने आल—इंडिया मोमिन परिषद बना ली है। मुस्लिम समाज की इस जाति—प्रथा से विभाजित होने के कारण ही केन्द्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने संसद में दो दिन पूर्व प्रश्नोत्तर में बताया कि यदि दलित हिन्दू मतांतरण करके मुसलमान बनता है तो उसे आरक्षण की सुविधा नहीं मिलेगी।
ऐसे जाति—विग्रह वाले भ्रम सर्जाने के कारण मैंने दानीश्विरों, आलिमों और सहाफियों से पूछा कि इस्लाम में जाति—प्रथा कैसे घुस आयी है? यह तो हिन्दू—समाज का कुष्ठ रोग है। इंसान द्वारा इंसान के शोषण का माध्यम है। सनातनी धर्म वाले ये हिन्दू कतई नहीं मानते कि ईश्वर ने सारे मनुष्यों को समान बनाया है। यह भेदभाव और कुरीतियां तो स्वार्थी लोगों ने पनपाया है। इसी के कारण इतिहास में भारत विदेशी आक्रमणकारियों से हारता रहा है।
लेकिन मुझे इस्लाम में भी ऐसी भ्रष्ट हिन्दू वर्ग की व्यवस्था के बारे में जानकर विषाद हुआ। इस्लाम बड़ा जनप्रिय है क्योंकि वह पूर्णतया मानवीय समाजवादी है। कोई विषमता नहीं है।
इस्लाम, जहां तक मैंने पढ़ा, सुना और जाना, एक आदर्श, नैतिकता—आधारित समतामूलक मजहब है। प्रगतिशील अकीदा है। जो भी कलमा पढ़ लेता है वह सीधे अकीदतमंद और पैगंबर रसूल का निष्ठावान अनुयायी कहलाता है। अर्थात इस्लामी संप्रदाय में भेदभाव कतई नहीं होता है।
तो पहेली लगती है यह कि तरह—तरह के अंसारी अब कैसे और क्यों पैदा किये गये। मुझे तो साफ लगता है कि मियां मोहम्मद हामिद अली अंसारी कभी भी नहीं चाहेंगे कि उनमें और मुस्लिम जुलाहे में कोई भेद किया जाये। वे जनता के आदमी रहे। इस्लाम के अध्येता हैं। जानकार हैं। तो फिर अपने को पसमंदा, निचले वर्ग के अंसारी से अलग क्यों करना चाहेंगे ? राजनेता है, समाज सुधारक हैं। शिक्षाविद् हैं, ज्ञानी हैं। वे पूरी कौम को एक ही नजर से देखेंगे। चाहे वह बुनकर अंसारी ही क्यों न हो।
जब मियां मोहम्मद हामिद अंसारी कहते है कि : ”भयभीत मुसलमान मोदी राज में असुरक्षित महसूस कर रहा है”, तो हामिद भाई पूरी मिल्लत, सारी कौम की एक ही अकीदे के साथ पहचान बनायेंगे। वे क्यों भेदभाव चाहेंगे ? अत: उनकी नजर में जुलाहा, मोमिन और अशरफ मुसलमान सब एक ही वर्ग के एक ही संप्रदाय के हैं।
यह भेदभाव की जातिवादी बीमारी हिन्दुओं को मुबारक!
÷लेखक IFWJ के नेशनल प्रेसिडेंट व वरिष्ठ पत्रकार/स्तम्भकार हैं÷