★मुकेश सेठ★
★मुम्बई★
{काँग्रेस सरकार द्वारा किये गए दुनिया के सबसे बड़े घोटाले के राज खोलने बाकी है मोदी-शाह सरकार को}

[नोटबन्दी के पहले देश मे धड़ल्ले से चल रहे थे एक ही नम्बर के कई-कई नोट,उसी कागज़ पर छपवाए गए थे ये जाली नोट,जिस पर छपवाती थी भारत सरकार]
(ब्रिटिश कम्पनी डेलारु के साथ तत्कालीन वित्त मन्त्री पी चिदम्बरम ने खेले बड़े खेल शामिल थे एडिशनल सेक्रेटरी अशोक चावला और वित्तसचिव अरविंद मायाराम)
{ACC के सामने लाये बगैर चिदम्बरम ने गैरकानूनी तरीके से दो सरकारी अधिकारियों को बनाकर मैनेजिंग डायरेक्टर व चैयरमैन चलवा रहे थे कम्पनी}
[2009-10 में CBI ने भारत नेपाल सीमा पर विभिन्न बैंकों में रेड मार पकड़ी थी जाली करेंसी, बैंक अधिकारियों ने दिए थे बयान की इन रुपयों की आपूर्ति करती है रिजर्व बैंक]
{सीबीआई ने रिजर्व बैंक के तहखानों में मारे छापे तब भारी मात्रा में 500-1000 के वही जाली नोट मिले,वैसे ही नोट पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी ISI तस्करी कर भिजवाती थी हिंदुस्तान}
♂÷काँग्रेस द्वारा किया गया विश्व का सबसे बड़ा घोटाला खुलना अभी बाकी है। इस केस में बहुत बड़े बड़े काँग्रेसी और ब्यूरोक्रेट्स पकड़े जायेंगे इसलिये चिदम्बरम को बार बार जमानत दी जा रही है। 2019 के बाद दुनिया के सबसे बड़े घोटाले का राज खुलेगा, जो शायद दुनिया मे कही नही हुआ होगा और इस महाघोटाले का मुख्य अभियुक्त है दिग्गज कांग्रेसी नेता व पूर्व गृह व वित्तमन्त्री पी चिदंबरम।
नीचे डिटेल में विस्तार से पढ़िए कि क्यों किया गया अचानक नोटबन्दी का फैसला और क्यों टूट गयी पाकिस्तान की अर्थव्यस्था, सबूत भी बाहर आएंगे। इसको पढ़ कर आपके पैर के नीचे से ज़मीन खिसक जाएगी।
पीएम मोदी ने नोटबंदी करके इस घोटाले को तो रोक दिया, मगर उसके बाद ये बात निकल कर सामने आयी कि देश में बिलकुल असली जैसे दिखने वाले एक ही नंबर के कई नोट चल रहे थे। ये ऐसे नोट थे, जिन्हे पहचानना लगभग नामुमकिन था, क्योकि ये उसी कागज़ पर छपे थे जिस पर भारत सरकार नोट छपवाती है।
सूत्रों के अनुसार डेलारू जोकि एक ब्रिटिश कंपनी है, इसके साथ मिलकर तत्कालीन वित्तमंत्री पी चिदंबरम एक बड़ा खेल खेल रहे थे, जिसमे उनके साथ एडिशनल सचिव अशोक चावला और वित्त सचिव अरविंद मायाराम भी शामिल थे।
कैसा खेला गया घोटाले का खेल..??
कहा जा रहा है कि घोटाले का प्रारम्भ 2005 में तब हुआ जब वित्त मंत्रालय में अरविन्द मायाराम वित्त सचिव के पद पर थे और अशोक चावला एडिशनल सचिव के पद पर थे। कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद 2006 में सिक्योरिटी प्रिंटिंग एंड मींटिंग कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड एक कंपनी बनाई थी, जिसके मैनेजिंग डायरेक्टर अरविंद मायाराम थे और चेयरमैन अशोक चावला थे, यानी दो सरकारी अधिकारी पद पर रहते हुए इस कंपनी को चला रहे थे।
इस प्रकार की नियुक्तियों के लिए अपॉइंटमेंट्स कमिटी ऑफ़ कैबिनेट (ACC) के सामने विषय को रखकर उसके अनुमोदन की आवश्यकता होती है, किन्तु चिदंबरम ने भला कब नियम-कायदों की परवाह की, जो अब करते, अर्थात् ACC के सामने इन नियुक्तियों का विषय लाया ही नहीं गया और ऐसे ही इनकी नियुक्ति कर दी गयी।
इसके बाद असली खेल शुरू हुआ। इस घोटाले में चिदंबरम के दाएं व बाएं हाथ बताये जाने वाले अशोक चावला व् अरविंद मायाराम ने भारतीय रिज़र्व बैंक नोट मुद्रण प्राइवेट लिमिटेड (BRBNMPL), जोकि नोटों की छपाई का काम देखती है,से कहा कि उनकी कंपनी के साथ मिलकर सिक्योरिटी पेपर प्रिंटिंग के सप्लायर को तलाश करो, जिसके बाद पहले से ब्लैकलिस्टेड की जा चुकी डेलारू कंपनी से नोटों की छपाई में इस्तेमाल होने वाले सिक्योरिटी पेपर को लेना जारी रखा गया।
क्या इसके लिए चिदंबरम को घूस दी गयी थी..?? इस ब्रिटिश कंपनी द्वारा या पाकिस्तान के आईएसआई द्वारा चिदंबरम को पैसा दिया जा रहा था.?? ये जांच का विषय है। बहरहाल पहले जानते हैं कि डेलारू को क्यों बैन किया गया था और पाक आईएसआई का इस घोटाले में क्या भूमिका है..??
दरअसल वित्त वर्ष 2009-10 के दौरान नकली मुद्रा रैकेट का पता लगाने के लिए सीबीआई ने भारत नेपाल सीमा पर विभिन्न बैंकों के करीब 70 शाखाओ पर छापेमारी की, तो बैंकों से ही नकली करेंसी पकड़ी गयी। जब पूछताछ की गयी तो उन बैंक शाखाओं के अधिकारियों ने सीबीआई से कहा कि जो नोट सीबीआई ने छापें में बरामद किये हैं वो तो स्वयं रिजर्व बैंक से ही उन्हें मिले हैं।
ये एक बेहद गंभीर खुलासा था क्योंकि इसके अनुसार आरबीआई भी नकली नोटों के खेल में संलिप्त लग रहा था। हांलाकि इतनी अहम् खबर को इस देश की मीडिया ने दिखाना आवश्यक नहीं समझा क्योकि उस समय कांग्रेस सत्ता में थी।
इस खुलासे के बाद सीबीआई ने भारतीय रिजर्व बैंक के तहखानो में भी छापेमारी की और आश्चर्यजनक तरीके से भारी मात्रा में 500 और 1000 रुपये के जाली नोट पकडे गए। आश्चर्य की बात ये थी कि लगभग वैसे ही समान जाली मुद्रा पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई द्वारा भारत में तस्करी से पहुँचाई जाती थी।
अब प्रश्न उठा कि यह जाली नोट आखिर भारतीय रिजर्व बैंक के तहखानो में कैसे पहुंच गए.?? आखिर ये सब देश में चल क्या रहा था.??
जांच के लिए शैलभद्र कमिटी का गठन हुआ और 2010 में कमिटी उस वक़्त चौंक गयी जब उसे ज्ञात हुआ कि भारत सरकार द्वारा ही समूचे राष्ट्र की आर्थिक संप्रभुता को दांव पर रख कर कैसे अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी को 1 लाख करोड़ का पेपर छपाई का ठेका दिया गया था।
जाँच आगे बढ़ी तो ज्ञात हुआ कि डेलारू कंपनी में ही घोटाला चल रहा था। एक षड्यंत्र के तहत भारतीय करेंसी छापने में उपयोग होने वाले सिक्योरिटी पेपर की सिक्योरिटी को घटाया जा रहा था ताकि पाकिस्तान सरलता से नकली भारतीय करेंसी छाप सके और इसका उपयोग भारत में आतंकवाद फैलाने में किया जा सके।
इस समाचार के सामने आते ही भारत सरकार द्वारा डेलारू कंपनी पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। मगर अरविन्द मायाराम ने इस ब्लैकलिस्टेड कंपनी से सिक्योरिटी पेपर लेना जारी रखा। इसे लेने के लिए उन्होंने गृह मंत्रालय से अनुमति ली। कहा गया कि ये फाइल चिदंबरम को दिखाई ही नहीं गयी, जबकि ये बात मानने लायक ही नहीं क्योकि वित्त मंत्रालय से यदि गृहमंत्रालय को कोई भी पत्र भेजा जाता है तो पहले अप्रूवल के लिए वित्तमंत्री के सामने पेश किया जाता है।
सूत्रों के अनुसार डेलारू कंपनी से भारत को दिए जाने वाले सिक्योरिटी पेपर के सिक्योरिटी फीचर को कम किया जा रहा था, ये कंपनी पाकिस्तान के लिए भी सिक्योरिटी पेपर छापने का काम करती है। जिसके बाद ये आरोप लगे कि इस कंपनी द्वारा भारत का सिक्योरिटी पेपर पाकिस्तान को गुपचुप तरीके से दिया जा रहा था ताकि भारत की नकली करेंसी छापने में पाक को सरलता हो।
जब 2014 में मोदी सरकार सत्ता में आयी, तब गृहमंत्री राजनाथ सिंह को ये बात पता चली कि इतना बड़ा गोलमाल चल रहा था। इसके बाद उन्होंने सिक्योरिटी पेपर डेलारू कंपनी से पेपर लेना बंद करवाया गया। ये भी सामने आया कि इस कंपनी से सिक्योरिटी पेपर काफी महंगे दाम पर खरीदा जा रहा था, यानी ये कंपनी देश को लूट रही थी और देश का वित्तमंत्रालय इस काम में विदेशी कंपनी की मदद कर रहा था।
मायाराम के इस काले कारनामे की खबर पीएमओ को हुई, तो पीएमओ ने गंभीरता पूर्वक इस मामले को उठाया और मुख्य सतर्कता आयुक्त द्वारा इसकी जांच करवाई। मुख्य सतर्कता आयुक्त द्वारा वित्तमंत्रालय से इससे जुड़ी फाइल मांगी गयी। इस वक़्त वित्तमंत्री अरुण जेटली बन चुके थे, मगर इसके बावजूद वित्तमंत्रालय द्वारा फाइल देने में देर की गयी।
इसके बाद ये मामला पीएमओ से होता हुआ सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संज्ञान में आया और फिर मोदी ने खुद एक्शन लिया, तब जाकर मुख्य सतर्कता आयुक्त के पास फाइल पहुंची। क्या जेटली ने फाइलें देने में देर की या फिर कांग्रेसी चाटुकारों ने, जो वित्तमंत्रालय तक में बैठे हैं, ये बात साफ़ नहीं हो पायी।
यदि नोटबंदी ना होती तो नकली करेंसी का ये खेल चलता ही रहता। डेलारू से सिक्योरिटी पेपर लेना बंद करवाया गया और पीएम मोदी ने की नोटबंदी। जिसके कारण पाकिस्तान द्वारा नकली करेंसी की छपाई बेहद कम हुई और यही कारण है कि कांग्रेस के दस वर्षों में आतंकवादी घटनाएं जो आम हो गयी थी, वो मोदी सरकार के काल में ना के बराबर हुई।
कश्मीर के अलावा देश के किसी भी राज्य में बम ब्लास्ट नहीं हो पाए। आतंकियों तक पैसा पहुंचना बंद हो गया था। पीएम मोदी ने जांच करवाई और मायाराम के खिलाफ मुख्य सतर्कता आयुक्त और सीबीआई द्वारा आरोप तय किये गए।
आपको यहाँ ये भी बता दें कि जिस मायाराम के खिलाफ चार्ज फ्रेम किये गए हैं, उसी को राजस्थान में कांग्रेस सरकार बनते ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने आर्थिक सलाहकार के पद पर नियुक्त कर लिया। यानि एक घपलेबाज को अपना आर्थिक सलाहकार बना लिया।
वहीँ अशोक चावला का नाम चिदंबरम के एयरसेल-मैक्सिस घोटाले में भी सामने आया। जिसके बाद, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के चेयरमैन व पब्लिक इंटरेस्ट डायरेक्टर पद से अशोक चावला को इस्तीफा देना पड़ा।
जुलाई 2018 में सीबीआई ने चिदंबरम को एयरसेल-मैक्सिस मामले में आरोपी बनाया था। सीबीआई ने चिदंबरम, उनके बेटे कार्ति और 16 अन्य के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी, जिसमें आर्थिक मामलों के पूर्व केंद्रीय सचिव अशोक कुमार झा, तत्कालीन अतिरिक्त सचिव अशोक चावला, संयुक्त सचिव कुमार संजय कृष्णा और डायरेक्टर दीपक कुमार सिंह, अंडर सेक्रेटरी राम शरण शामिल हैं।
इस पूरे मामले से ये बात तो साफ़ हो जाती है कि चिदंबरम ने देश में केवल एक या दो नहीं बल्कि जहाँ-जहाँ से हो सका, वहां-वहां से देश को लूटा। चिदंबरम व् उनके बेटे कार्ति चिदंबरम ने मिलकर खूब लूटा और इस खेल में ना केवल नौकरशाह शामिल रहे बल्कि न्यायपालिका में भी कई चिदंबरम भक्त बैठे हैं, जो आज भी उसे जेल जाने से बचाते आ रहे हैं।
कहा जा रहा है कि सभी में लूट का माल मिलकर बंटता था और यदि चिदंबरम जेल गए तो सीबीआई व् ईडी की कम्बल कुटाई उनसे एक दिन भी नहीं झेली जायेगी और वो सब उगल देंगे। यही कारण है कि चिदंबरम को हर बार अग्रिम जमानत दे दी जाती है।

मगर ये भी तय माना जा रहा है कि यदि मोदी इस बार भी चुनाव जीतकर पीएम बन गए, तो चिदंबरम का जेल जाना तय है और फिर कई अन्य गड़े मुर्दे भी बाहर आएंगे। देश को कैसे-कैसे और किस-किस ने लूटा, सबको एक-एक करके सजा होगी। कांग्रेसी चाटुकार नौकरशाहों समेत माँ-बेटे व् कई कांग्रेसी नेता सलाखों के पीछे पहुंचेंगे। अब पीएम मोदी ने भी दोबारा अपनी सरकार बना ली है और तगड़े व बेहद मजबूत माने जाने वाले बीजेपी अध्यक्ष सांसद अमित शाह के हाथ मे है अब गृहमंत्रालय।
खैर आगे आगे देखिए होता है क्या…!!!