लेखक~प्रो. आर. एन. सिंह
♂÷जब पूरी दुनिया कोरोना के क़हर से कराह रही है, शासन पस्त है, इंतज़ाम ध्वस्त हैं, चौतरफ़ा चीख पुकार मची है, मानवता का अस्तित्व ही ख़तरे में हों, लाखों लोग काल के गाल में असमय समा चुके हैं, करोड़ों लोग अभी भी इसकी गिरफ़्त में हैं, और आगे भी स्थिति भयावह ही लग रही है, ऐसे में सभी को ईमानदारी एवं संयम से काम लेने की महती आवश्यकता है. निजी हित से ऊपर उठना एवं सामाजिक दायित्व के प्रति प्रतिबद्धता का एहसास बहुत ज़रूरी हो जाता है।
राक्षसी मानसिकता चिंता का विषय
संकट के इस दौर में कुछ हवसी लोगों में व्याप्त राक्षसी मानसिकता पूरी मानवता के के साथ खिलवाड़ कर रही है। यह अक्षम्य अपराध है।काश हम दूसरों के दुःख दर्द को भी महसूस कर पाते, उनके प्रति सम्वेदना रखते और सहायता के लिए हाथ बढ़ाते। कतिपय असुर, लोगों की मजबूरी का फ़ायदा उठाने में दानवता की हर सीमा लांघ रहे हैं। यह बेहद कष्टकर और मन को झकझोर देने वाला दुष्कृत्य है। आज अनेक लोग अपनी ज़िम्मेदारी को निभाने के बजाय सरकार पर दोषारोपण को ही अपना हथियार बनाने में जुटे हैं। पर स्वयं आगे आने को तत्पर नहीं है।
आपदा में निजी हित ख़तरनाक
महामारी के इस दौर में लूट खसोट बेहद चिंता का विषय है। हमारे देश की आबादी बहुत अधिक है, संसाधन सीमित है, महामारी ने सब कुछ ध्वस्त कर दिया है, ऐसे में हर तरफ़ दवा,उपकरणों की चोरी कालाबाज़ारी इंसानियत के मुँह पर कालिख पोतना जैसे है। आदमीं में पैसे की हवस उसे किस हद तक गिराएगी, अनुमान लगाना मुश्किल है। ख़ुद की ज़िम्मेदारी से विमुख होना और प्रशासन को गाली देना आज की सबसे बड़ी समस्या है, इसका समाधान कौन करेगा ? हमारे अंदर सामूहिक कल्याण की भावना का घोर संकट, यह कब आएगी है?
सामाजिक दायित्व से विमुखता
प्रशासन को चोर कहना आज आम फ़ैशन हो गया है, परंतु आश्चर्य तब होता है जब कई लोग इस महामारी में जरूरतमंदों का खून चूसना अवसर मान लेते हैं, यह किस ईमानदारी का परिचय है। जैसे, 700 का ओक्सीमीटेर दो हज़ार में , रेमिडेसिबर सुई लाख मे, एमबुलेन्स का किराया सैकड़ों गुना अधिक, 40 का नारियल 150 में, 30 रुपए किलो की जगह 250 में निबू, कोरोना जाँच में प्रयुक्त सामग्री को दुबारा बेच देना, चिकित्सा से जुड़े कुछ लोगों द्वारा दवाओं की कालाबाज़ारी करना, फिर भी प्रशासन को कोसना कहाँ तक जायज़ है।
देवदूत बनने का समय
महामारी में हमें फ़रिश्ता बनने की आवश्यकता है। वैसे कई लोग मसीहा बन कर उभरे भी हैं, मरीज़ों की सहायता कर रहे हैं, सम्बन्धियों को दिलासा दिला रहे हैं। ऐसे लोग यकीनन देवदूत हैं, मसीहा हैं, उनकी जितनी भी तारीफ़ की जाय, वह कम ही होगी। संकट की इस ख़ौफ़नाक घड़ी में किसी की आलोचना के बजाय हमें इंसानियत के मापदंड पर खरा उतरना है।
समय की माँग
आपदा काल में काला बाज़ारी एवं ज़रूरी वस्तुओं की जमाख़ोरी जरूरतमंदों को सीधे मौत के मुँह में धकेलने जैसा कुकृत्य है। ऐसे अमानवीय कृत्यों में लिप्त लोगों को सख़्त से सख़्त सजा दी जानी चाहिये।आज हमें कोविड नामक यमराज से मिलकर लड़ने की जरुरत है, न की आरोप-प्रत्यारोप में उलझने की। मानव जाति संकट में है, उसके रक्षार्थ हमें आगे आना होगा। ख़ुद को ईमानदार और दूसरे को बेईमान सिद्ध करने के पूर्वाग्रह से बाहर निकलने की ज़रूरत है।
÷लेखक बीएचयू में वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक के पद पर कार्यरत हैं÷