★मुकेश सेठ★
★मुम्बई★
{उत्तराखंड की रक्षा करने वाली धारी देवी की मूर्ति को आमजन व बीजेपी नेताओं के विरोध के बाद भी काँग्रेस सरकार ने सरकारी कार्य हेतु हटवा दिया था}
[2013 में मूर्ति हटाने के कुछ ही घण्टे के पश्चात शुरू हो गया था जलप्रलय तो वही वैज्ञानिकों ने इसकी वजह ग्लेशियर पिघलना बताया]

(भारी तबाही लाने वाले जलप्रलय में अनगिनत श्रद्धालुओ समेत स्थानीय लोग भी समा गए थे काल के गाल में)
[2013 में यमुनोत्री-गंगोत्री के कपाट शुभ मुहूर्त बीत जाने के बाद खुलने के बाद प्रारम्भ की गई चार धाम यात्रा जो कि विद्वानों ने कहा ये था अशुभ]

♂÷साल 2013 में उत्तराखंड के केदारनाथ में आए सैलाब ने भारी तबाही मचाही थी। इससे अनगिनत लोगों की जान जानें समेत कई इमारते जमींदोज हो गयी यात्रियों समेत तो अनेको इमारतों को भारी नुकसान पहुंचा था तो वही आश्चर्यजनक रूप से आदिदेव केदारनाथ के मन्दिर का बाल भी बांका नही हुआ था जिसे देखकर सुनकर दुनियाभर के लोग शिव की शक्ति के आगे नतमस्तक हो उठे थे।महाकाल शिव के इस पावन धाम में आए जल प्रलय ने सबको हिलाकर रख दिया था। वैज्ञानिक जहां इसकी वजह ग्लेशियर का पिघलना बता रहे थे। वहीं धार्मिक दृष्टिकोण से भी इसके कई महत्व हैं।
- .केदारनाथ को शिव के चार धामों में से प्रमुख माना जाता है। मान्यता है कि यहां शिव के दर्शन मात्र से भक्त के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। मगर भोलेनाथ की इस नगरी में आए जल सैलाब को लेकर कई धार्मिक ग्रंथों में अलग-अलग तर्क दिए गए हैं। उनके मुताबिक इस प्रलय की वजह काली मां का रौद्र रूप रहा है।
- बताया जाता है कि केदारनाथ में अचानक बाढ़ का कारण धारी माता का विस्थापन रहा है। दरअसल उत्तराखं से 15 किलोमीटर दूर कालियासुर नामक स्थान में धारी देवी का मंदिर है। मान्यता है कि उनकी वहां स्थापना उत्तराखंड की रक्षा के लिए हुआ है। मगर जून 2013 के दिन मनमोहन सरकार व उत्तराखंड की विजय बहुगुणा सरकार के आदेश पर जनविरोध व बीजेपी नेताओं के तीव्र विरोध व आक्रोश के बाद भी सरकारी काम के चलते मूर्ति को थोड़ी देर के लिए वहां से हटाया गया था। लोगों का मानना है कि मूर्ति के हटने के कुछ घंटों बाद ही केदारनाथ में भारी तबाही मची थी।
- धारी देवी के इस विकराल स्वरूप की हकीकत को कई दिग्गजों ने भी माना है। भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेता उमा भारती ने भी एक सम्मेलन में इस बात को स्वीकार किया था कि अगर धारी माता का मंदिर विस्थापित नहीं किया जाता तो केदारनाथ में प्रलय नहीं आती।
- केदारनाथ में प्रलय का एक अन्य कारण अशुभ मुहूर्त में खोले गए कपाट को भी बताया जाता है। कहते हैं कि चार धाम की यात्रा की शुरूआत अक्षय तृतीया के दिन गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट खुलने से होती है। मगर साल 2013 में कपाट शुभ मुहूर्त बीत जाने के बाद खोले गए। विद्वानों के अनुसार केदारनाथ में तबाही का ये भी एक कारण रहा है।
- जानकारों के मुताबिक 12 मई साल 2013 को दोपहर बाद अक्षय तृतीया शुरू हो चुकी थी। जो कि 13 तारीख को 12 बजकर 24 मिनट तक ही थी। इस बीच गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट नहीं खोले गए। जबकि इसके खोलने के समय पितृपक्ष काल चल रहा था। इस बीच कोई भी शुभ काम नहीं किए जाते हैं। मगर उस वक्त कपाट के खोलने का विपरीत असर केदारनाथ में देखने को मिला।
- केदारनाथ में आई तबाही का कारण मां गंगा का रौद्र रूप भी रहा है। माना जाता है कि धरती के कल्याण के लिए भागीरथ गंगा को लेकर आए थे। उन्हें शिव जी ने धारण किया था। इसलिए उन्होंने देवी गंगा के स्वरूप को बरकरार रखने का वचन दिया था। मगर लगातार गंगा में बढ़ते प्रदूषण ने गंगा के धैर्य का बाण तोड़ दिया। नतीजतन केदारनाथ में भयंकर जल प्रलय आई।
- एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार मंदाकिनी और अलकनंदा से मिलकर गंगा बनी है। वो धरती पर नहीं आना चाहती थीं। मगर भगवान शिव के आग्रह पर उन्हें धरती पर उतरना पड़ा था। चूंकि भगवान शिव उनकी मर्यादा की रक्षा नहीं कर पाएं इसलिए मां गंगा नाराज हो गई। जिसके चलते गंगा ने अपनी सीमा तोड़ दी। इसस पहले साल 2010 में भी गंगा अपना रौद्र रूप दिखा चुकी थीं। उस वक्त ऋषिकेश में आई बाण के चलते परमार्थ आश्रम में लगी शिव की विशाल मूर्ति तब बह गई थी।
- जानकारों के मुताबिक केदारनाथ में आई तबाही की वजह धार्मिक मान्यताओं का कम होना है। उनके अनुसार ज्यादातर लोग केदारनाथ में भक्ति भावना की जगह घूमने के मकसद से आते हैं। कई लोग वहां अनैतिक कार्य भी करते हैं। इससे आहत होकर शिव जी ने विकराल स्वरूप धारण किया इसी की वजह से केदारनाथ में तबाही आई थी।
- केदारनाथ में आए बाण को लेकर वैज्ञानिकों ने जानकारी दी थी कि इसकी वजह ग्लेशियर के एक बड़े टुकड़े का पिघलना है। जिसके चलते जल आवेग बढ़ा था।