लेखक~ डॉ.के. विक्रम राव

♂÷साप्ताहिक “धर्मयुग” (मुंबई में सपादक डॉ. धर्मवीर भारती का) ने इन्हीं दिनों दो फोटो छापे थे।पहले में गोल स्तंभों वाला संसद भवन था दूसरे में चौधरी चरण सिंह का शीर्षक था “बिन फेरे, हम तेरे !” प्रसंग चार दशक पहले का है।आज ही के दिन (21 अगस्त 1979) को लोकदल सरकार चली गई थी,प्रधानमंत्री चरण चरण सिंह को समर्थन देकर इंदिरा गाँधी पलट गई थीं। राष्ट्रपति संजीव रेड्डी ने लोकसभा भंग कर मध्यावर्ती निर्वाचन तय कर दिया और फिर इंदिरा गाँधी लौट आईं, सत्ता पर| हारी थीं रायबरेली, इस बार जीत ली। लेकिन लाभार्थी रहे चरण सिंह जिन्होंने शपथ लेकर (29 जून 1979) कहा था कि “मेरे जीवन की इच्छा पूरी हुई, पर नसीब ऐसा रहा कि लोकसभा का सामना वे एक दिन भी नहीं कर पाये इतिहास रच डाला सत्ता पर आ तो गए पर बिना फेरों के ऐसी ही हरकत उन्होंने मार्च 1967 में लखनऊ में भी कर दिखायी थी। कांग्रेस के मुख्यमंत्री चन्द्रभानु गुप्त की सरकार गिराकर केवल 17 विधायकों के बलपर वे मुख्यमंत्री बन बैठे मगर मात्र एक पखवारे में लोक दल की उनकी प्रदेश सरकार चली गई थी। इसीलिए राजनारायण ने उन्हें “चेयर सिंह” के विशेषण से नवाजा।
चरण सिंह “गया राम” से तो बेहतर थे पर आयाराम से भी निचले पायदान पर रहे उनका जीवन ही विरोधाभासों और वितंडावाद का नमूना रहा।
चंद्रभानु गुप्त उन्हें “जाट राजा” कहते थे पर इस आर्यसमाजी का दावा था कि वह जाति-विरोधी है,लोहिया के “पिछड़ा पावे सौ में साठ” के सूत्र को पकड़ कर सत्ता की सीढ़ी पर चरण सिंह चढ़ते रहे मगर जब बेटी ने कुर्मी से शादी की तो उन्हें गवारा नहीं हुआ। बेचारी सरोज सिंह बी. ए. में लखनऊ विश्वविद्यालय में मेरी सहपाठिनी थी खुदकुशी से मरी,प्रधान मंत्री मोरारजी देसाई जिनकी सरकार उन्होंने गिराई थी, की कबीना को चरण सिंह ने “नपुंसकों की जमात” (जून 1978) करार दिया था।कारण था कि वे सब इस अड़ियल गृह मंत्री द्वारा इंदिरा गाँधी को जेल में कैद करने का समर्थन नहीं कर रहे थे।
इस बात की जिद चरण सिंह ने ठानी थी जब 25 जून 1975 को कांग्रेसी प्रधान मंत्री ने इस भारतीय लोकदल के नेता को तिहाड़ जेल में तीन दिन एक ही कुरता धोती पहने कैद रखा, दिल्ली का पारा तब 45 डिग्री था। स्नान भी नहीं कर पाए उनके सामने ही दो महारानियों (जयपुर की गायत्री देवी और ग्वालियर की विजयराजे सिंधिया) को इंदिरा गाँधी ने जेल में वेश्याओं के वार्ड में कैद रखा था। विरोधाभास दिखा जब चरण सिंह ने हेमवती नंदन बहुगुणा को सोवियत गुप्तचर एजेंसी केजीबी का एजेंट कहा था, मगर मोरारजी का विरोधी होने के कारण उन्हें अपनी काबीना में रख लिया।
सवाल बड़ा यही था कि आखिर अपनी “छोटी बहन” इंदिरा गाँधी से उनका नाता कैसे टूटा ? उस दिन (29 जून 1979) की दोपहर को राष्ट्रपति भवन में चरण सिंह ने प्रधान मंत्री पद की शपथ ली,लौटते समय तय था कि वे विलिंगडन क्रिसेंट पर रुक कर कांग्रेस नेता का समर्थन हेतु आभार ज्ञापन करेंगे किन्तु वे सीधे अपने आवास पर चले आये, उधर इंदिरा गाँधी माला लिए व्याकुलता से नये प्रधानमंत्री की बाट जोह रही थीं उसी क्षण से चरण सिंह की उलटी गिनती शुरू हो गई यूं भी इंदिरा गाँधी अबला कभी भी नहीं रहीं।
प्रधानमंत्री चरण सिंह को यह पता चला जब शीघ्र समर्थन वापस हो गया और इंदिरा गाँधी ने चरण सिंह के फेरे सत्ता के साथ नहीं पड़ने दिये तलाक हो गया बाकी जाना-समझा इतिहास है।
÷लेखक भारतीय श्रमजीवी पत्रकार संघ(IFWJ)के राष्ट्रीय अध्यक्ष व वरिष्ठ स्वतन्त्र स्तम्भकार हैं÷