★मुकेश सेठ★
★मुम्बई★
{वक्ताओं ने सरहदी गांधी के वसूलों और कामों को याद किया वे आज़ादी के लड़ाई के काम और विचार दोनों से महानायक}
[6 फ़रवरी सीमांत गाँधी के जन्मदिन पर आयोजित स्मृति सभा में आजादी की लड़ाई के अप्रतिम नायक को किया याद और हरियाणा सरकार से की मांग कि सिविल अस्पताल का नाम पुनः इनके नाम पर किया जाए]
(सभा का आयोजन सरहदी गाँधी मेमोरियल सोसायटी ने मौलाना आजाद विचार मंच,राष्ट्रसेवा दल,हम भारत के लोग,पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान,अंजुमन-ए-पख़्तून और एकता फोरम संस्थाओं ने मिलकर किया)

♂÷शनिवार को सरहदी गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान के जन्मदिन पर आयोजित स्मृति सभा में आज़ादी की लड़ाई के इस अप्रतिम नायक को बहुत अंतरंगता से याद किया गया, और लोगों से अपील की गयी कि हमें उन मुकामों, पड़ावों और तरीकों को याद करना चाहिए, जिनके जरिये हमने गुलामी भगायी, आज़ादी हासिल की और देश की तरक्की का रास्ता बनाया। उन तौर-तरीकों और एकजुटता को हम फिर अपनाएं तो यकीनन हम दुनिया की एक बड़ी धरोहर बने रहेंगे।

सभा ने याद किया कि सरहदी गांधी देश के विभाजन पर किस तरह रोये थे, और १९७० में जब भारत आये तो किस तरह जगह-जगह हर जगह यह कहते फिरे कि भारत ने उन्हें भेड़ियों के हवाले कर दिया है। वे भारत की एकता, सहिष्णुता और मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे। यह कैसा अद्भुत संयोग था कि देश ने एक साथ दो गांधी पैदा किये। महात्मा गांधी वैष्णव धर्म के जरिये अहिंसा के मुकाम पर पहुंचे,और सरहदी गांधी कहे जानेवाले खान अब्दुल गफ्फार खान इस्लाम के जरिये।

चौरीचौरा की घटना हम सभी को याद है, लेकिन जरा उस घटना को याद कीजिए , जब बात-बात पर बन्दूक उठा लेनेवाले पख्तूनों ने १९३० में किस्सा ख्वानी बाजार में हुए नरसंहार के बाद भी अहिंसा के रास्ते पर चलते हुए हथियार नहीं उठाये। इस नरसंहार में अंग्रेज सिपाहियों ने ४०० से ज्यादा लोगों को मार दिया था। किस्सा ख्वानी बाजार का यह प्रसंग इस सिलसिले में भी याद रखने लायक है कि चंद्र सिंह गढवाली के नेतृत्व में गढ़वाली सैनिकों ने अंग्रेजों द्वारा दी जानेवाली सजा की परवाह न करते हुए अपने हिन्दुस्तानी देशवासियों पर गोली चलाने से इंकार कर दिया था।

स्मरणीय है कि बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में आज भी अपनी अलग पहचान पाने की जो लड़ाई चल रही है, उसकी अलख खान अब्दुल गफ्फार खान की ही जगाई हुई है। वे जिन्ना के द्विराष्ट्र सिद्धांत के सख्त खिलाफ थे और इसी बात को लेकर पाकिस्तान बन जाने के बाद भी पाकिस्तान सरकार से उनका संघर्ष सदैव जारी। उन्होंने पख्तूनों को पाकिस्तान से अलग करने की मांग उठाई, जिस विरोध के कारण वे २५ साल से ज्यादा समय पाकिस्तान की जेलों में रहे। उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों की सोच और कृतित्व के रूप में जो सेवा की, उसके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए भारत सरकार ने १९८७ में उन्हें भारत रत्न सम्मान से नवाजा।
सभा का आयोजन सरहदी गांधी मेमोरियल सोसाइटी ने मौलाना आज़ाद विचार मंच, राष्ट्र सेवा दल, हम भारत के लोग, पूर्वांचल विकास प्रतिष्ठान अंजुमन-ए -पख्तून और एकता फोरम जैसी संस्थाओं के साथ मिल कर किया था, और उसने साझा सोच, समन्वय, और साथ-साथ चलने की एक बड़ी मिसाल कायम की है।
सभा की अध्यक्षता राज्य सभा के पूर्व सांसद हुसैन दलवई ने की। मुख्य वक्ता थे महात्मा गांधी के पौत्र राजमोहन गांधी। उन्होंने गांधी और सरहदी गांधी की वैचारिक नज़दीकियों और उनके अपनत्व भरे रिश्ते के बारे में बात की।
महाराष्ट्र के काबीना मंत्री मलिक नवाब, आईआईटी , दिल्ली के प्रो. वी के त्रिपाठी, लेखक पत्रकार श्रीमती सबा नकवी, महाराष्ट्र सरकार के पूर्व नगर विकास मंत्री चंद्रकांत त्रिपाठी, लेखक-पत्रकार सुधीन्द्र कुलकर्णी , पत्रकार जतिन देसाई, लेखक फ़िरोज मीठीबोरवाला, पूर्व सांसद श्री उदित राज और मौलाना जहीर अब्बास रिज़वी ने सरहदी गाँधी के काम, उनकी सोच , और उनके विचारों की आज के समाज को जरूरत विषय पर रोशनी डाली। कार्यक्रम की शुरुआत श्रीमती महिया खान द्वारा सरहदी गांधी पर बनाये एक वृत्तचित्र के प्रदर्शन और मुजीब खान द्वारा निर्देशित और अभिनीत एक नाटक के मंचन से हुई। ये दोनों कार्यक्रम सदैव के लिए यादगार बन गए हैं।
सभा का संचालन सरहदी गांधी मेमोरियल सोसाइटी के अध्यक्ष सय्यद जलालुद्दीन ने और कार्यक्रम का व्यवस्थापन आफताब अलवी ने किया। पत्रकार ओम प्रकाश ने आभार प्रदर्शन ज्ञापित किया।
सभा ने एक मत होकर कहा कि मुस्लिम चिह्नों , प्रतीकों और यादगारों को कमज़ोर करने की कोई कोशिश नहीं होनी चाहिए। इस सिलसिले में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल
खट्टर से फरीदाबाद के सिविल अस्पताल का नाम फिर से सरहदी गांधी के नाम पर करने की अपील की गयी।
स्मरणीय है कि फरीदाबाद के सिविल अस्पताल को सरहदी सूबे से आये लोगों ने अपने परिश्रम से बनाया था और उसे अपने प्रिय नेता का नाम दिया था। १९५१ में उस समय के प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने इसका उद्घाटन किया था। पिछले महीने हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल खट्टर ने बादशाह खान का नाम हटा कर इसका नाम पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल
बिहारी वाजपेयी के नाम पर कर दिया है।
सभा ने महसूस किया कि किसी भारत रत्न का नाम हटा दिया जाए, यह बहुत अफ़सोस की बात है।यह पूर्व प्रधानमंत्री श्री बाजपेयी का भी अपमान करने जैसी बात है। श्री बाजपेयी कभी इस बात की कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि बादशाह खान का नाम हटा कर कोई अस्पताल उनके नाम पर कर दिया जाएगा।
सभा ने तय किया कि हरियाणा के अस्पताल को फिर से बादशाह खान के नाम पर करने के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाया जायेगा। इसकी ऑनलाइन अपील भी की जा रही है। इस मांग को लेकर सरहदी गांधी मेमोरियल सोसाइटी के सदर अधिवक्ता श्री सय्यद जलालुद्दीन के नेतृत्व में जल्द ही एक प्रतिनिधिमंडल हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल खट्टर से मुलाकात भी करेगा,।
सभा में इस बात की भी मांग की गयी कि कुछ समाचार चैनल और राजनीतिक दलों के कुछ प्रवक्ता बार-बार खान मार्केट गैंग जैसे शब्द दोहरा रहे हैं। वे भूल गए हैं कि ऐसा करके वे आज़ादी की लड़ाई के मूल्यों का भारी नुकसान कर रहे हैं। उन्हें जानना चाहिए कि डॉ. खान, जिनके नाम पर खान मार्किट बना है, वे खान अब्दुल गफ्फार खान साहब के बड़े भाई थे, आज़ादी की लड़ाई के एक बड़े सिपाही थे, और १९३७ में सरहदी सूबे में जब कांग्रेस की सरकार बनी तो उसके मुख्यमंत्री थे। वे भारत के एक रखने और हिंदुस्तान को सबका हिंदुस्तान बनाने के सबसे बड़े हिमायतियों में से एक थे।
सभा में कई लोगों ने इस बात का इशारा किया कि पकिस्तान अब देर तक एक मुल्क नहीं रहनेवाला। सिंध, बलूचिस्तान, गिलगिट हर जगह एक संघर्ष जारी है। स्वतंत्रता सेनानी मौलाना अब्दुल कयूम रहमानी फाउंडेशन के अध्यक्ष समाजवादी नेता बद्रे आलम ने कहा कि भारत-पाकिस्तान और बांग्लादेश को अब एक हो जाना चाहिए। दिल्ली राजधानी होनी चाहिए, इस्लामाबाद और ढाका उपराजधानियाँ बनें; और पाकिस्तान के चारों सूबों और बांग्लादेश को भारत का प्रान्त बनाया जाए, और भारत के बंटवारे की जो गलती हुई, उसे दुरुस्त किया जाए।