लेखक~अरविंद जयतिलक
♂÷”महामारी के बाद की दुनिया में भारतीय शहर” शीर्षक से जारी विश्व आर्थिक मंच(WEF)की रिपोर्ट चिंतित करने वाली है। भारत में हर एक मिनट में 25 से 30 लोग गांव से शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं।इस पलायन से शहरों पर बोझ बढ़ा है, जिससे सामाजिक,आर्थिक चुनौतियां बढ़ गई हैं।रिपोर्ट के मुताबिक शहरों में आबादी बढ़ने से झुग्गी झोपड़ियों में इजाफा हुआ है और कोविड-19 महामारी से वंचित तबकों की सामाजिक सुरक्षा का दायरा कमजोर हुआ है।

सार्वजनिक और निजी जीवन में स्त्री पुरुष असमानता की खाई पहले से ही चौड़ी हुई है।15% शहरी परिवार बाजार मूल्य पर मकान लेने की स्थिति में नहीं है। रिपोर्ट के मुताबिक चूंकि भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 70% हिस्सा शहरों से आता है ऐसे में शहरों के पलायन का बोझ बढ़ा और आर्थिक ढांचा चरमराया तो देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।यह रिपोर्ट इस मायने में महत्वपूर्ण है कि इसमें प्रमुख वैश्विक और भारतीय शहरी विशेषज्ञों के विचारों को शामिल किया गया है।ये विशेषज्ञ नियोजन,आवास,शहरी परिवहन, पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों से जुड़े हुए हैं। इन विशेषज्ञों का कहना है कि शहरी अर्थव्यवस्थाओं को गति देने के लिए परिवहन और बुनियादी ढांचे में निवेश और पुराने नियोजन मानदंडों तथा नियमों पर पुनर्विचार किया सकता है।
गौर करें तो यह पहली बार नहीं है जब किसी वैश्विक संस्था द्वारा भारत में गांव से पलायन और शहरों पर बढ़ते जनसंख्या के दबाव को उद्घाटित किया गया हो। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों से भी यह उद्घाटित हो चुका है अगर गांव से पलायन नहीं थमा तो 2050 तक आबादी बढ़कर 41.6 करोड़ हो जाएगी,ऐसे में भारतीय शहर कराहते नजर आएंगे। वैसे भी गौर करें तो विकसित देशों की तुलना में भारत में रहने वाली सारी आबादी को बुनियादी सुविधाओं का चौथाई प्रतिशत भी हासिल नहीं है।उसी का नतीजा है कि बरसात के दिनों में भारत के बड़े छोटे सभी शहर डूबते नजर आते हैं।गांव से पलायन का मुख्य कारण है यह है कि देश के आर्थिक विकास के लिए शहरीकरण पर जोर देने से लोगों को शहरों ने आकर्षित किया है। इसके अलावा शहरों में रोजगार के बेहतर अवसर,तकनीक से जुड़ाव बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य की संभावना और नौकरियों की अधिक गुंजाइश ने लोगों को ग्रामीण क्षेत्रों एवं छोटे शहरों से बड़े शहरों की ओर पलायन को विवश किया है।प्रकृति पर आधारित कृषि देश के विभिन्न हिस्सों में बाढ़ एवं सूखा का प्रकोप, प्राकृतिक आपदा से फसल की क्षति और ऋणों के बोझ के कारण बड़े पैमाने पर किसान खेती छोड़ने को मजबूर हुए हैं।पिछले दो दशक में महाराष्ट्र,राजस्थान,उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और असम समेत अन्य राज्यों से लाखों किसान खेती को तिलांजलि दे दिए हैं।इसी तरह उत्तराखंड,मेघालय, मणिपुर और अरुणाचल जैसे छोटे राज्यों में भी किसानों की संख्या घटी है।कल तक खेती करने वाले आज मजदूर बन गए हैं,आज वह रोजी रोटी के लिए शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। इसके अलावा सड़क निर्माण, बांध बनाने,बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन या किसी अन्य गतिविधि में जमीन के टुकड़े बंट जाने से भी लोग शहरों की ओर रुख कर रहे हैं।खेती के विकास में क्षेत्रवार विषमता का बढ़ना,प्राकृतिक बाधाओं से पार पाने में विफलता, भूजल का खतरनाक स्तर तक पहुंचना और हरित क्रांति वाले इलाकों में पैदावार में कमी आना भी लोगों को गांव से मोहभंग कर रहा है।लगातार बढ़ती आबादी, शहरों तथा उद्योगों का विस्तार एवं कृषि योग्य भूमि का अधिग्रहण भी कृषि की समस्या को बढ़ाया है जिससे पलायन बढ़ा है।देश में स्पेशल इकोनॉमी जोन (सेज)और हाईवे निर्माण के नाम पर लाखों हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि का अधिग्रहण हुआ है।इकोनॉमी इंडिया सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट से उद्घाटित हो चुका है कि देश में उदारीकरण की नीतियां लागू होने के बाद 60 लाख हेक्टेयर से अधिक खेती की जमीन का अधिग्रहण हो चुका है। विडंबना यह है कि इस अधिग्रहित भूमि का एक बड़े हिस्से का उपयोग गैर कृषि कार्यों में हो रहा है।जिन क्षेत्रों में सरकारें खेती की जमीनों को अधिग्रहित कर रही हैं उन क्षेत्रों में विस्थापन को लेकर विकट समस्या उत्पन्न हो गई है।अपनी जमीन गंवाने के बाद किसानों के पास जीविका का कोई साधन नहीं रह गया है। विस्थापित किए गए किसानों के लिए सरकार के पास में कोई ठोस पुनर्वास नीति नहीं है और ना ही उन्हें रोजी रोजगार से जोड़ने का कोई कारगर तरीका।इसका परिणाम यह हुआ है कि शहरों की ओर लोगों का पलायन तेज हुआ है।नतीजा शहर जरूरत से ज्यादा भर गया है और इतनी बड़ी आबादी के लिए रहने की व्यवस्था करना भीषण चुनौती बन गया है।शहरों में आवासों की कमी की वजह से लोगबाग झुग्गी झोपड़ियों में रहने को मजबूर हैं। शहरों में झुग्गी बस्तियों की संख्या में इजाफा होने से विकास कार्य बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।गौर करने वाली बात यह है कि सरकार के पास झुग्गी बस्तियों में रहने वाले लोगों का जो आंकड़ा है वह वास्तविकता से परे है, सच तो यह है कि संख्या इससे कई गुना ज्यादा है।इसलिए कि सरकार ने झुग्गी बस्ती में रहने वाले लोगों की आबादी का निर्धारण का जो पैमाना निर्धारित किया है वह तर्कहीन है। सरकारी पैमाने के अनुसार जिसमें कंक्रीट की छत नहीं है,जिसमें पीने योग्य पानी,शौचालय की व्यवस्था नहीं है उन्हें झुग्गी माना गया है लेकिन सरकार की परिभाषा में ना समाने वाले बहुतायत लोगों की संख्या ऐसी भी है कि जो एनकेन प्रकारेण छत की व्यवस्था तो कर लिए हैं लेकिन बुनियादी सुविधाएं मसलन पानी, शौचालय ,बिजली से महरूम हैं। अगर इन संख्याओं को सरकारी संख्या में शुमार कर दिया जाए तो झुग्गी बस्तियों की तादाद बढ़ जाएगी।उचित होगा कि सरकार अपने पैमाने को दुरुस्त करें और झुग्गी बस्तियों में रहने वाले लोगों को बुनियादी सुविधाओं से लैस करें।यह किसी से छिपा नहीं है कि शहरों की मलिन बस्तियों में रहने वाले लोगों को पानी के लिए घंटों लंबी कतार लगानी पड़ती है,शौच के लिए खुले में जाना पड़ता है।सड़के नदारद हैं और सीवर जाम होने के कारण हर वक्त नर्क का एहसास होता रहता है।सरकार के सभी प्रयास अभी तक ऊंट के मुंह में जीरा साबित हुए हैं।दरअसल शहरों पर बढ़ते बोझ ने ही इन सभी समस्याओं को जन्म दिया है, और शहरों की प्लानिंग को बुरी तरह ठप कर दिया है।विगत वर्षों में देखा जा चुका है कि तेज बारिश की वजह से समुचित व्यवस्था के अभाव में देश के कई राज्यों के बड़े-बड़े शहर पानी से जलमग्न हुए।शहरों पर बढ़ते आबादी के बोझ ने जनसंख्या वृद्धि,बेरोजगारी,गरीबी,अपराध, बाल अपराध,भीड़-भाड़,गंदी बस्तियां बिजली एवं जल अनापूर्ति जैसे कई गंभीर समस्याओं को जन्म दिया है।नगरीय केंद्रों में आबादी के लगातार बढ़ते रहने एवं औद्योगिकीकरण के फल स्वरूप पर्यावरण प्रदूषण की भीषण समस्या उत्पन्न हुई है। गौर करें तो आज की तारीख में ग्रामीण बेरोजगारी सबसे अधिक है, लेकिन कुछ उपायों के जरिए इसे अवसर में बदला जा सकता है। मसलन नगर नौजवानों को खेती, बागवानी,पशुपालन, वृक्षारोपण, कृषि यंत्रों की मरम्मत के संबंध में आधुनिक तकनीक का प्रशिक्षण प्रदान किया जाए तो ग्रामीण बेरोजगारी से निपटने में मदद मिलेगी और शहरों की ओर पलायन थमेगा।
बेहतर होगा कि केंद्र और राज्य सरकारें ग्रामीण क्षेत्रों में स्किल इंडिया केंद्रों का विस्तार करें। इससे बुनाई,मैकेनिक, ऑपरेटरी और हस्तशिल्प को बढ़ावा मिलेगा और रोजगार के अवसर पैदा होंगे।युवाओं को प्रशिक्षण दिया जाए तो हेल्थ केयर,रियल स्टेट,शिक्षा एवं प्रशिक्षण,आईटी, मैन्युफैक्चरिंग बैंकिंग एवं फाइनेंशियल क्षेत्रों में भी उनकी किस्मत का रास्ता खुल सकता है। इससे न सिर्फ युवाओं को रोजगार मिलेगा बल्कि गांव से पलायन थमेगाऔर शहर भी जनसंख्या के दबाव से मुक्त होंगे।

÷लेखक राजनीतिक व सामाजिक नीतियों के विशेषज्ञ हैं÷