लेखक~डॉ.के. विक्रम राव
♂÷क्या नजारा है? पांच वर्षों (मार्च, 2017) में ही, बस चन्द दिनों के अंतराल में, चंडीगढ़ राजभवन में कप्तान अमरिन्दर सिंह ने तथा लखनऊ के राजभवन में योगी आदित्यनाथ ने शपथ ली थी। कांग्रेसी हटाया गया। वहां भाजपाई को अगले जनादेश पाने का निर्देश मिला। हालांकि कांग्रेसी कह सकते हैं कि गांधीनगर तथा देहरादून में भी दो सीएम को दरवाजा दिखाया गया था। तीन भाजपा सीएम थे। लेकिन अमरिन्दर सिंह ने आक्रोश जताया था। सोनिया गांधी ने कप्तान को ”सारी” कहा। शायद घाव को रिसने से रोकना चाहती थी।
योगी तथा अमरिंदर में ज्यादा समानता नहीं हो दिखती है। तब यूपी में भूमिहार मनोज सिन्हा और पिछड़े मौर्य की चर्चा थी। योगी केसरिया वस्त्र पहले से ही धारण किये थे। शायद हल्दीघाटी की ओर कूच के खातिर। भाजपा में डर सर्जाया। योगी चयनित हुये।
उधर अमरिन्दर से नेहरु परिवार टकरा चुका था। इन्दिरा गांधी ने जब स्वर्ण मंदिर में सेना घुसाई थी तो विरोध में अमरिन्दर ने पार्टी छोड़ दिया था। इस बार सोनिया ने त्यागपत्र मांगने के समय जब पूछा था कि, ” आप नई पार्टी बनायेंगे,” कप्तान का जवाब था: ” सही सुना आपने।” राहुल गांधी से अमरिन्दर से चाचा—भतीजा वाला नाता रहा। वे दून कॉलेज में राजीव गांधी के सहपाठी थे। मगर अब भाभी बदलाव करने का निर्णय ले चुकीं थीं। खबर है कि सोनिया गांधी के अगले टार्गेट हैं छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल। हालांकि दलित नेता प्रभारी और पूर्व आईएएस पन्नालाल पूनिया के प्रयासों के बावजूद बघेल का बघारना शांत नहीं होगा।
लगता है सोनिया भी अपनी सास के नक्शे कदम का अनुसरण कर रहीं हैं। इन्दिरा गांधी पहले मुख्यमंत्री को नामित करतीं थीं फिर उन्हें खादपानी, पौधों की तरह, खूब देतीं थीं, और शीघ्र ही उखाड़ कर देखतीं थीं कि कहीं जड़े तो जम नहीं गयीं। दोनों माताओं के मातृत्व की लाचारी है कि पुत्रों की राह प्रशस्त रहे। चुनौती कुचलना पड़ता है। माधराव सिंधिया राजीव—सोनिया के परम आप्त बंधु थे। पुत्री प्रियंका और ज्योतिरादित्य तो यूपी के प्रभारी जोड़ीदार थे। फिर भी अंगीकृत पुत्र कमलनाथ के खातिर ज्योतिरादित्य को हटवा ही गया। तो सरदार अमरिन्दर सिंह किस फार्म की मूली हैं?
इसी परिवेश में फिर योगीजी पर आयें, उन्हें भी आसानी से मुख्यमंत्री पद नहीं मिल रहा था। बलिया के लोकसभाई, (मतदान में जनमत से खारिज होकर भी) सवर्ण मनोज सिन्हा को मुख्यमंत्री नामित किया जा रहा था। भाजपा को समय रहते आभास हो गया कि सरयू और राप्ती के दरम्यान वाले विधायक योगी के पक्ष में झण्डा ऊंचा कर देंगे। व्यवहारिकता को भाजपा नेतृत्व ने अपनाया। नतीजन आज यूपी को ऐसा मुख्यमंत्री मिल गया जो अगली पारी में भी ढइया छू लेगा।
एक उल्लेख हो योगी और अमरिन्दर की टकराहट का। मसलन सोनिया—कांग्रेसी को संतुष्ट करने में मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह ने माफिया मुख्तार अंसारी का समर्थन सर्वोच्च न्यायालय तक किया। रोपड जेल से बांदा जेल में तबादला करने तक अमरिन्दर सिंह ने योगी को परास्त करने में कई पैतरें बदले, दांव लगाये। यदि सर्वोच्च न्यायालय नहीं मानती तो मुख्तार के लिये अमरिन्दर बाजी जीत ही जाते। इन दोनों मुख्यमंत्रियों में युद्ध हुआ था माफिया मुख्तार अंसारी को लेकर। इसमें कांग्रेस नेता और यूपी पार्टी प्रभारी प्रियंका वाड्रा—गांधी की भी अहम भूमिका थी। वे माफिया की हमदर्द रहीं। उधर तब खबरें लगातार आ रहीं थीं कि मुख्तार (पंजाब) जेल में ऐश-ओ-आराम के साथ हैं। जब मीडिया के जरिए खबरें आना शुरू हुईं तो यूपी ने पंजाब से अपने यहां दर्ज केसों के सिलसिले में मुख्तार अंसारी को वापस करने की मांग करना शुरू की। लेकिन पंजाब सरकार किसी न किसी तर्क के आधार पर वापसी को तैयार नहीं हुई। अपने स्तर पर बात न बनते देख योगी सरकार को सुप्रीम कोर्ट की शरण लेनी पड़ी तो अमरिन्दर सिंह की पंजाब सरकार भी नामचीन वकीलों के साथ सुप्रीम कोर्ट आ खड़ी हुई है।
मुख्यमंत्री बनने के बाद से योगी आदित्यनाथ राज्य में माफियाओं के खिलाफ बड़ा अभियान चलाया था। उनकी कोशिश एक ऐसी छवि गढ़ने की है, जहां माफिया के साथ कोई नरमी नहीं होगी। लेकिन, जिस तरह से यूपी के एक माफिया की पंजाब से ऐश-ओ-आराम वाली खबरें आ रही हैं, वह उन्हें चिढ़ाने वाली लगीं। मुख्तार अंसारी का पूर्वी यूपी की एक खास जाति के साथ 36 का आंकड़ा माना जाता है। मुख्तार पर नकेल कसकर उस जाति को भी संदेश देना जरूरी है कि हमने उस माफिया को ‘आजाद’ नहीं घूमने दिया।
अतंत: सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के मुताबिक मुख्तार को बांदा जेल लाना पड़ा। यह योगी जी की जीत रही। पहली विजय थी। आज दूसरी भी हो गयी।
÷लेखक IFWJ के नेशनल प्रेसिडेंट व वरिष्ठ पत्रकार/स्तम्भकार हैं÷