♂÷यह उचित है कि देश की सर्वोच्च अदालत में नदियों में बढ़ते प्रदूषण और उससे लोगों की सेहत पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को लेकर कड़ा कर अख्तियार किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा है कि साफ़ पर्यावरण और प्रदूषण रहित जल व्यक्ति का मौलिक अधिकार है,इसे उपलब्ध कराना कल्याणकारी राज्य का संवैधानिक उत्तरदायित्व है।कोर्ट ने यह भी कहा है कि संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन का अधिकार देता है और इस अधिकार में गरिमा के साथ जीवन जीने और प्रदूषण रहित जल का अधिकार शामिल है।सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 45 और 48 में जन स्वास्थ्य ठीक करना है और पर्यावरण संरक्षित करना राज्यों का दायित्व है साथ ही प्रत्येक नागरिक का भी कर्तव्य है कि प्रकृति जैसे वन, नदी,झील और जंगली जानवरों का संरक्षण व रक्षा करें।गौर करें तो अदालत ने नदियों की सफाई से लेकर प्रकृति व पर्यावरण की सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकारों के साथ-साथ नागरिकों के लिए भी आवश्यक कहा है। उल्लेखनीय है कि चीफ जस्टिस एएस बोबडे,एएस बोपन्ना और बी रामासुब्रह्मण्यम की बेंच ने यह टिप्पणी दिल्ली जल बोर्ड की हरियाणा से आ रहे पानी में प्रदूषण की शिकायत करने वाली अर्जी पर सुनवाई के दौरान की है। मौजूदा अर्जी यमुना में अमोनिया बढ़ने की शिकायत से जुड़ी है। कोर्ट ने इस मसले पर हरियाणा समेत उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश,उत्तर प्रदेश और दिल्ली को नोटिस जारी कर सबसे पहले यमुना के प्रदूषण पर सुनवाई शुरू कर दी है ।यह सुनवाई इस अर्थ में महत्वपूर्ण है कि गंगा और यमुना दोनों ही भारतीय जन की आराध्य, संस्कृत तथा सभ्यता की पर्याय है।इन्हीं नदी, घाटियों में ही आर्य सभ्यता पल्लवित पुष्पित हुई है।व्यापारिक और यातायात की सुविधा के कारण देश के अधिकांश नदियों के किनारे विकसित हुए देश के लगभग सभी धार्मिक स्थल किसी न किसी नदी से ही संबंध है और ज्यादा महत्वपूर्ण है औऱ गत वर्ष ही उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने दोनों नदियों को जीवित व्यक्ति सरीखा दर्जा दिया।बावजूद नदियों के अस्तित्व पर संकट बना हुआ है।गंगा और यमुना नदियों की बात करे तो इनके जल से देश की एक बड़ी आबादी प्राणवान है। यमुना नदी गंगा नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है यह यमुनोत्री से निकलती है और प्रयागराज में गंगा से मिलती है, लेकिन दुर्भाग्य कि यमुना देश की सबसे प्रदूषित नदियों में से एक है।हालात यह है कि अब दिल्ली में नाला के रूप में बह रही है, इसमें ऑक्सीजन की मात्रा इतनी कम हो गई है कि इसमें रहने वाले जीव जंतु मर रहे हैं। गंगा की बात करें तो इसके बेसिन में देश की 43 फ़ीसदी आबादी निवास करती है।प्रत्यक्ष परोक्ष रूप से इनकी जीविका गंगा पर ही निर्भर है।यमुना की तरह गंगा की भी दुर्दशा के लिए भी मुख्य रूप से सीवर और औद्योगिक कचरा जिम्मेदार है जो बिना शोधन सिद्ध किए गंगा में बहा दिया जाता है।इसमें सीवर का गंदा पानी और औधोगिक कचरा बहाने से क्रोमियम और मर्करी जैसे घातक रसायनों की मात्रा बढ़ी है।प्रदूषण की वजह से जैविक ऑक्सीजन का स्तर 5 हो गया जबकि नहाने लायक पानी में कम से कम 3 से अधिक नहीं होना चाहिए।वैज्ञानिकों का कहना है कि वैक्टीरिया की मुख्य वज़ह गंगा में मानव और जानवरों का मल मूत्र बहाया जाना है।वैज्ञानिकों के मुताबिक ई-काईल बैक्टीरिया के वजह से सालाना लाखों लोग गंभीर बीमारियों की चपेट में आते हैं।प्रदूषण के कारण गंगा के जल में कैंसर के कैंसर के कीटाणुओं की संभावना प्रबल हो गई है।जांच में पाया गया कि पानी में क्रोमियम,जिंक,लेड,आर्सेनिक, मर्करी की मात्रा बढ़ती जा रही है। विशेषज्ञों की मानें तो गंगा नदी के तट पर प्रदूषण फैलाने वाले उधोग और गंगाजल के अंधाधुंध दोहन से नदी के अस्तित्व पर खतरा उत्पन्न हो गया है।गंगा की सफाई हिमालय क्षेत्र से इसके उद्गम से शुरू करके मंदाकिनी, अलकनंदा, भागीरथी एवं सहायक नदियों में होनी चाहिए। उचित होगा कि नदियों के तट पर बसे औद्योगिक शहरों के कल- कारखानों के कचरे को इसमें गिरने से रोका जाए।यहां ध्यान देना होगा कि आस्था के नाम पर नदियों के घाटों पर हर वर्ष करोड़ों शव जलाए जाते हैं,दूर स्थानों से जलाकर लाई गई अस्थियां विशेष रूप से गंगा और यमुना में बहा दी जाती है।समझना कठिन है कि ऐसी आशाएं गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियों को किस तरह निर्मल करती हैं?हद तो यह है कि नदी सफाई अभियान जुड़ी एजेंसियों स्वयंसेवी संस्थाएं भी नदियों से निकाली गई हड्डियां और राखों को पुनः इसमें उड़ेल देते हैं,क्या इस तरह के सफाई अभियान से नदियों को प्रदूषण से मुक्त किया जा सकता है। उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि नदियों का जल दूषित होने से भूजल लगातार प्रदूषित हो रहा है। याद होगा गत वर्ष भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस)ने जारी अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया कि दिल्ली के पेयजल की गुणवत्ता कम हुई है जिससे जल जनित बीमारियों का खतरा बढ़ गया है।इस रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली के पेयजल के नमूने 19 मानदंडों में से किसी पर खरे उतरे नहीं पाए गए थे।गौर करें तो देश के अधिकांश राज्यों की स्थिति कमोवेश ऐसी ही है।अभी गत वर्ष विज्ञान पत्रिका नेचर जियोसाइंस द्वारा खुलासा किया गया है कि सिंधु और गंगा नदी मैदानी क्षेत्र में 60 फीसद दूषित हो गया है। हालत यह है कि कहीं जल सीमा से अधिक खारा हो चुका है तो कहीं उस में आर्सेनिक की मात्रा खतरनाक स्तर पर पहुंच गई हैं। आंकड़ों में कहा गया है कि 200 मीटर की गहराई पर मौजूद भूजल का बड़ा हिस्सा दूषित हो चुका है,वही 23 फीसद जल अत्यधिक खारा हो चुका है।37 फ़ीसद जल में आर्सेनिक की मात्रा खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है।गौर करें तो जिस तेजी से नदियों का जल दूषित हो रहा है और अमोनिया तथा आर्सेनिक की मात्रा बढ़ रही है, वह आने वाली आपदा का ही एक सूचक है।अमोनिया और आर्सेनिक एक जहरीला तत्व होता है जो प्राकृतिक रूप से जल में पाया जाता है लेकिन मौजूदा समय में अत्यधिक खनन और फ़र्टिलाइज़र के इस्तेमाल के कारण जल में इनकी मात्रा लगातार बढ़ गई है।इसके उपयोग से डायरिया,उल्टी,खून वाली उल्टियां,पेशाब में खून आना,बाल गिरना और पेट दर्द जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है साथ ही इससे फेफड़े, त्वचा,किडनी और लीवर प्रभावित होते हैं,दूषित जल में खतरनाक रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणु पाए जाते हैं जो स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित करते हैं।दूषित जल में पाए जाने वाले विषाणु, पीलिया,पोलियो,गैस्ट्रो,ईन्टराइटिस और चेचक जैसे रोगों को जन्म देते हैं तो वही जीवाणु द्वारा अतिसार, पेचिश, मियादी बुखार है जैसे रोग उत्पन्न करते हैं।अमोनिया और आर्सेनिक के अलावा दूसरी तरफ़ जल में कैडमियम,लेड, मरकरी,निकल तथा सिल्वर की मात्रा भी बढ़ जाती है जो सेहत के लिए बेहद खतरनाक साबित होती है।दूषित जल में लोहा,मैग्नीज,कैल्शियम,बोरियम, बोरान एवं नाइट्रेट,सल्फेट, बोरेट और कार्बोनेट इत्यादि की अधिकता भी मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।एक आंकड़े के मुताबिक हर 8 सेकंड में एक बच्चा दूषित जल के सेवन से काल का ग्रास बन रहा है,हर साल 50 लाख से अधिक लोग दूषित जल के सेवन से मौत के मुंह में जा रहे हैं।ऐसे में अगर सर्वोच्च न्यायालय जल की शुद्धता को लेकर कड़ा रुख अख्तियार करता है तो यह स्वागत योग्य ही है।
÷लेखक वरिष्ठ पत्रकार/स्तम्भकार व प्रसिद्ध समीक्षक हैं÷
