लेखक~अरविंद जयतिलक
♂÷भारतीय समाज व राष्ट्र के जीवन में नवीन प्राणों का संचार करने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जीवन जितना अधिक रोमांचकारी है,उतना ही अधिक रहस्यमयीभी।उन्होंने अपनी देशभक्ति से देश की आत्मा को चैतन्यता से भरकर ब्रिटिश सत्ता को भारत छोड़ने पर मजबूर किया,पर विडंबना है कि उस महान देशभक्त की मृत्यु से जुड़ी गुत्थियां अभी तक सुलझे नहीं है। उनकी मृत को लेकर किस्म-किस्म के दावे होते रहते हैं। गत वर्ष पहले ब्रिटेन की एक वेबसाइट द्वारा खुलासा किया गया कि टोक्यो जाते समय नेताजी की मौत 18 अगस्त 1945 में ताइवान के निकट एक विमान दुर्घटना में हुई और उसके पास उनके अंतिम संस्कार से जुड़े साक्ष्य मौजूद हैं।वेबसाइट में कहा गया कि नेताजी की मौत के उपरांत ताइवान के एक अधिकारी तान तीती ने ताइपे में उनके अंतिम संस्कार के लिए अनुमति पत्र जारी किया था और उनके शव के साथ जापानी सेना का एक अधिकारी भी मौजूद था। वेबसाइट का यह भी दावा था कि नेता जी के अंतिम संस्कार के बाद उसके साक्ष्य ताइवान की पुलिस ने ब्रिटिश मंत्रालय को भेजे थे और जुलाई 1965 में दिल्ली के ब्रिटिश उच्चायोग ने यह सबूत तत्कालीन भारत सरकार को उपलब्ध कराए थे।उल्लेखनीय है कि ब्रिटिश महावाणिज्य दूत अल्बर्ट फ्रैंकलिन ने ताइवान के सरकार से नेताजी की मौत की जांच कराने का अनुरोध किया था। फिर वहां की सरकार ने जांच के उपरांत 27 जून 1956 को नेताजी की मौत से जुड़ी विस्तृत रिपोर्ट सरकार को सौंप दी।रिपोर्ट के मुताबिक नेताजी का अंतिम संस्कार 22 अगस्त 1945 को किया गया था।तथ्य यह है कि सुभाष चंद्र बोस के अतिविश्वासपात्र हबीबुर्रहमान जो की उनके साथ विमान में सवार थे, ने पाकिस्तान से आकर शाहनवाज समिति के सामने गवाही दी थी कि नेताजी उस विमान दुर्घटना में मारे गए थे और उनके सामने उनका अंतिम संस्कार किया गया था।पर वेबसाइट और हबीबुर्रहमान का यह खुलासा अंतिम सच नही है।देश का एक बड़ा वर्ग जिसमें लेखक व चिन्तक भी शामिल है का मानना है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस विमान दुर्घटना से बच निकले थे और रूस चले गए थे। याद होगा गत वर्ष पहले सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने खुलासा किया था कि वर्ष 1991 के बाद सोवियत विघटन के बाद सोवियत के एक स्कॉलर ने उन्हें बताया की नेता जी ताइवान गए ही नहीं थे, वह साएगोन से सीधे मंचूरिया आये और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।फ़िर स्टालिन ने उन्हें साइबेरिया के यकुत्सक जेल भिजवा दिया। जहां 1953 में उनकी मौत हो गई।रूसी शासक स्टालिन सुभाष चंद्र बोस इसलिए नाराज था कि उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान रूस के सबसे बड़े शत्रु हिटलर के निकट क्यों थे। सुब्रमण्यम स्वामी दावा है कि जब वह चन्द्रशेखर सरकार में मंत्री थे तो उनके पास जापान से अनुरोध आया था कि रिंकोजी मंदिर में सुभाष चंद्र बोस की जो अस्थियां रखी हैं,उनको आप ले लीजिए लेकिन शर्त यह है कि आप उन अस्थियों का डीएनए टेस्ट नहीं कराएंगे।स्वामी का कहना है कि इंदिरा गांधी ने अपने कार्यकाल में नेताजी पर एक पूरी फाइल को फड़वा दिया था।फिलहाल स्वामी के दावे पर तब तक यकीन करना कठिन है जब तक कि साक्ष्यों के आधार पर इसकी पुष्टि नहीं होती, क्योंकि इसे आरोप से अधिक कुछ नहीं माना जा सकता,लेकिन एक बात जरूर आशंका पैदा करती है कि सुभाषचंद्र बोस की मौत को सामने लाने की बजाय उसे रहस्य कवच क्यों पहना दिया गया?
नेताजी की मौत पर “इंडियाज बिगेस्ट कवर अप”के लेखक अनुज धर की मानें तो उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय से सुभाष चंद्र बोस की मौत से जुड़े दस्तावेज की मांग की थी लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय ने यह कहकर देने से इनकार कर दिया था कि इससे विदेशी ताकतों से हमारे संबंध पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। नेताजी के प्रपौत्र और “हिज मजेस्टिज अपोनेंट”के लेखक सौगत बोस का कहना है की विदेश संबंध खराब होने की बात गले नहीं उतरती ।उन्होंने अपने शोध के जरिए दावा किया कि विंस्टन चर्चिल ने वर्ष 1942 में नेताजी की हत्या के आदेश दिए थे,लेकिन इसका अर्थ यह नही हुआ कि इस मुद्दे पर भारत आज बेटे अपने रिश्ते खराब कर ले।सौगत बोस ने यह भी आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में इंटेलिजेंस ब्यूरो उनके पिता चाचा सुभाष चन्द्र बोस की पत्नी एमिली की चिट्ठियां पढ़ता रहा। ऐसे में सवाल लाजमी है सुभाष चंद्र बोस के परिवार पर हो रही जासूसी की जानकारी प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की जानकारी में थी?भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ में काम कर चुके बालाचंद्रन की माने तो जासूसी की परंपरा को आजाद भारत की खुफिया एजेंसियों ने ब्रिटेन से ग्रहण की, लेकिन लेखक अनुज धर की मानें तो इस तरह की जासूसी प्रधानमंत्री नेहरू की जानकारी के बगैर संभव ही नहीं थी।आइबी वाले कोई भी काम बिना अनुमति के नहीं करते। सुभाष चंद्र बोस के बारे में उनका हर नोट आइबी के बड़े अफसर मलिक और काव तक पहुंचता था।अनुज धर ने यह भी दावा किया कि उनके पास ऐसे दस्तावेज हैं,जिनमें नेहरू ने अपने हाथों आईबी को चिट्ठी लिखकर यह जानकारी हासिल करने का निर्देश दिया कि सुभाष चंद्र बोस का पौत्र अमित बोस जापान क्यों गया है,वहां क्या कर रहा है और क्या वही रिंकोजी मंदिर भी गया था?
अगर यह दावा सच है तो सुभाष चंद्र की मौत पर सवाल उठना लाजमी है।स्वतंत्रता के पश्चात भारत सरकार ने नेताजी की मौत की घटना की जांच के लिए 1956 और 1977 में दोबारा आयोग नियुक्त किया था।दोनों बार नतीजा यह निकला कि नेताजी उस विमान दुर्घटना में मारे गए,लेकिन आश्चर्यजनक यह है कि जिस ताइवान की भूमि पर दुर्घटना होने की खबर थी उस ताइवान देश की सरकार से इन दोनों आयोगों ने कोई बात नहीं की।वर्ष 1999 में जस्टिस मनोज कुमार मुखर्जी के नेतृत्व में तीसरा आयोग बनाया गया ,2005 में ताइवान की सरकार ने मुखर्जी आयोग को जानकारी दी कि 1945 में कोई भी हवाई जहाज ताइवान की भूमि पर कोई भी हवाई जहाज़ दुर्घटनाग्रस्त नहीं हुआ है। वर्ष 2005 में मुखर्जी आयोग ने भारत सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी,जिसमें कहा गया कि नेताजी की मृत्यु उस विमान दुर्घटना में होने का कोई सबूत नहीं है।सरकार ने मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को खारिज कर दी।लेकिन आश्चर्य इस बात पर है कि ओर ताइवान की सरकार ने वर्ष 1945 में अपनी भूमि पर किसी भी हवाई दुर्घटना न होने की बात कही और दूसरी ओर ब्रिटेन की वेबसाइट की ओर से दावा किया जा रहा है कि ताइवान सरकार ने उसे नेताजी की मौत से जुड़े दस्तावेज उपलब्ध कराए हैं? क्या यह अपने आप में विरोधाभासी नहीं है,क्या नेताजी को लेकर भ्रम पैदा नहीं करता है? ऐसे में नेताजी के जिंदा होने की आशंका उभरती है तो यह अचरज पूर्ण नहीं है।
यहां गौर करने वाली बात यह है कि जस्टिस मुखर्जी ने हैदराबाद स्थित उस गुमनामी बाबा,जिनकी शक्ल सुभाष चंद्र बोस से मिलती थी की भी जांच की। एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता से बात करते हुए उन्होंने शक जताया कि गुमनामी बाबा सुभाष चंद्र बोस हो सकते हैं। गुमनामी बाबा को करीब से देखने वालों का भी कहना है कि उनकी बहुत सी चीजें नेताजी सुभाष चंद्र बोस से मिलती थी मसलन वे नेता जी की ही तरह 6 फुट के थे उन्हीं की तरह चश्मा लगाते थे।गुमनामी बाबा की जन्म तिथि 23 जनवरी वर्ष 1897 ही पाई गई थी जो नेताजी सुभाष चंद्र बोस की ही है। गुना में बाबा का निधन 18 सितंबर 1985 को हुआ और उनकी समाधि सरयू नदी के किनारे गुप्तार घाट पर है लेकिन यहां सवाल यह खड़ा होता है कि अगर गुमनामी बाबा ही सुभाष चंद्र बोस थे तो फिर वह गुपचुप तरीके से यहां क्यों रहते थे?
भला एक महान देशभक्त जो ब्रिटिश हुकूमत के आगे झुका नहीं,वह गुमनामी की जिंदगी क्यों गुजारा,पर मौजूदा सवाल यह है कि एक महान देशभक्त की रहस्यमई मौत से अभी तक पर्दा क्यों नहीं हट पाया?
÷लेखक वरिष्ठ पत्रकार/स्तम्भकार व राजनीतिक विश्लेषक हैं÷