★मुकेश सेठ★
★मुम्बई★

{शिवसेना ने फडणवीस की जगह नितिन गडकरी को मुख्यमंत्री व आदित्य ठाकरे को उपमुख्यमंत्री बनाने के लिए थी तैयार}
[संघप्रमुख भी थे सहमत शिवसेना की शर्त से किन्तु मोदी शाह का था आंकलन शिवसेना नही जायेगी काँग्रेस के साथ,अंत मे साथ बनाएगी सरकार]
(बीजेपी नेतृत्व को झटका देते हुए गुरुवार को उद्धव ने एनसीपी कांग्रेस के समर्थन से ली मुख्यमंत्री पद की शपथ)

♂÷शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे गुरुवार को महाराष्ट्र के 19वें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले चुके हैं। ऐसा पहली बार हुआ है जब ठाकरे परिवार का कोई सदस्य राज्य का सीएम बना है। वहीं कहा जा रहा है कि शिवसेना ने एनसीपी कांग्रेस से मिलकर सरकार बनाने से पहले बीजेपी से 50-50 फॉर्मूले पर अपनी जिद छोड़ दी थी लेकिन यदि भाजपा, शिवसेना की दूसरी शर्त मान लेती तो आज महाराष्ट्र की राजनीतिक तस्वीर कुछ और ही होती। बताया जा रहा है कि शिवसेना ढाई साल के लिए अपना सीएम बनाने की शर्त छोड़ने के लिए तैयार थी। इसके बदले में शिवसेना पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की जगह केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को मुख्यमंत्री के पद पर देखना चाहती थी।
इतना ही नहीं, शिवसेना ने सीएम पद के लिए भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा का भी नाम दिया था, लेकिन पार्टी हाईकमान ने यह शर्त नहीं मानी। जबकि फडणवीस की जगह गडकरी को सीएम बनाने पर संघ भी सहमत था। सूत्रों के मुताबिक शिवसेना की जिद के चलते भाजपा ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को मनाने के लिए नितिन गडकरी को उनके घर मातोश्री भेजा था। उद्धव ने शर्त रखी कि यदि गडकरी को सीएम और आदित्य ठाकरे को डिप्टी सीएम बनाया जाता है, तो शिवसेना अपनी जिद छोड़ देगी।इस मांग पर गडकरी ने नागपुर में सरसंघचालक मोहन भागवत से चर्चा की तो उन्होंने भी इस शर्त के लिए अपनी सहमति दे दी।
इसके बाद जब गडकरी ने संघ के सहमत होने की बात उद्धव को बताई, तो इस बार शिवसेना ने सीएम का प्रस्ताव भाजपा नेता जेपी नड्डा को दे दिया। नड्डा ने अपनी हामी भरते हुए यह प्रस्ताव भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व गृहमंत्री अमित शाह के समक्ष रखा। इसके बाद अमित शाह और पीएम मोदी के बीच जब इस विषय पर चर्चा हुई तो उन्होंने शिवसेना के किसी भी दबाव के आगे ना झुकने का फैसला किया क्योंकि यदि भाजपा, शिवसेना की इस शर्त को मान लेती तो देश में भाजपा का राजनीतिक संदेश ठीक नहीं जाता।
दोनों दलों से जुड़े सूत्रों ने बताया कि विधानसभा चुनाव से पहले दोनों दलों के बीच 50-50 फॉर्मूला तय नहीं किया गया था, इसी बात पर पीएम मोदी और अमित शाह ने डटे रहने का फैसला किया। सूत्र ने बताया कि चुनाव के दौरान प्रत्येक सभा में जब पीएम मोदी और शाह ने सीएम के लिए देवेन्द्र फडणवीस के नाम पर जनादेश मांगा, तो शिवसेना ने किसी भी प्रकार की आपत्ति नहीं जताई। इसी कारण भाजपा द्वारा शिवसेना की कोई भी शर्त नहीं मानी गई।
भाजपा को यह विश्वास था कि शिवसेना, सरकार बनाने के लिए किसी भी स्थिति में कांग्रेस के साथ नहीं जाएगी। यदि शिवसेना जाना भी चाहेगी तो इसके लिए कांग्रेस तैयार नहीं होगी, क्योंकि शिवसेना हिंदुत्व की राह पर चलने वाली पार्टी है और इसके चलते कांग्रेस की धर्मनिरपेक्ष राजनीति उसे शिवसेना के साथ गठबंधन नहीं करने देगी। भाजपा के इन्हीं कयासों के चलते पार्टी नेताओं को लग रहा था कि शिवसेना उनके सामने झुक जाएगी, लेकिन अंतत: महाराष्ट्र में गुरुवार को कांग्रेस और NCP के गठबंधन से शिवसेना की सरकार बन गई।