★मुकेश सेठ★
★मुम्बई★
{बालाकोट-अनुच्छेद 370 व एनआरसी के मुद्दे पर भीमकाय होती मोदी शाह की बीजेपी शिवसेना को हरहाल में रखना चाहेगी अर्दब में}
[रविवार को मुम्बई रैली में आये भाजपाध्यक्ष शाह ने उद्धव से न मिल दिए सँकेत कि बीजेपी अब बड़ी व प्रभावी भूमिका को हैं बिन शिवसेना तैयार]
(शिवसेना 50-50 के फार्मूले पर गठबन्धन कर लड़ना चाहती है चुनाव जबकि बीजेपी सत्ता के साथी दल को 125 सीटे देने पर है अड़ी)

♂÷महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव होने में एक महीने से भी कम समय ही बचे हुए हैं तो वहीं सत्ताधारी दल बीजेपी व शिवसेना में अभी भी एक दूसरे को तौलने व अपनी शर्तों पर गठबन्धन करने हेतु झुकाने की तरकीबें अमल में लायी जा रही है।
शिवसेना समर्थित बीजेपी की वर्तमान फड़नवीस सरकार कभी हँसने तो कभी शिक़वे जैसे राजनैतिक माहौल में रहते हुए देवेन्द्र फड़नवीस सरकार सफलता पूर्वक अपना कार्यकाल पूरा करते हुए ये बड़े सवाल फ़िर से महाराष्ट्र में पैदा कर चुकी है कि क्या एक बार फ़िर बीजेपी-शिवसेना अलग-अलग होकर चुनावी समर में एक दूसरे को अपनी ताक़त दिखाएंगे या फ़िर वर्तमान में मोदी शाह के राजनैतिक ताक़त को स्वीकार कर शिवसेना प्रमुख बीजेपी को बड़ा भाऊ मानते हुए बीजेपी द्वारा दी जा रही सीटो पर चुनाव लड़ने को तैयार होगी।
फ़िलहाल प्रतिदिन दोनों दलों की तरफ़ से कभी हाँ कभी ना के चलते महाराष्ट्र की राजनीति इस वक़्त राजनीतिक पण्डितो को भी चकराये हुए हैं कि अब आगे क्या।विदित हो बीते कुछ महीनों के
दौरान लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा ने राज्य की करीब 188 सीटों पर अपना प्रभाव बड़े स्तर पर दर्ज किया था, जबकि शिवसेना करीब 80-83 सीटों पर प्रभावी रही थी ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के चुनावी रणनीतिकारों का मानना है कि अगर शिवसेना महाराष्ट्र में छोटे भाई की भूमिका नही निभाएंगी तो उसके सरगठबन्धन तोड़ने का ठीकरा फोड़ते हुए मोदी शाह की बीजेपी शिवसेना को दरकिनार कर चुनावी समर में अपने दम पर उतरेंगी।
बता दे कि चाहे बीजेपी हो या शिवसेना दोनो पार्टियों ने काँग्रेस व एनसीपी के अनेक दिग्गजों को चुनाव पूर्व अपने अपने दलों में शामिल कराया है,ज़ाहिर है कि जहाँ उनके लिए भी जिताऊ सीट पर टिकट देना बड़ा सवाल बनेगा तो वहीं इसके लिए जरूरी होगा कि ज्यादे सीटों पर चुनाव लड़ना पड़ेगा ऐसे में दोंनो सत्ताधारी दलों में सीटों को लेकर जोर आजमाइश होनी तय है तो वहीँ आगामी कुछेक दिनों में महाराष्ट्र की राजनीति में बीजेपी अपने को किस तरह से शिवसेना के छोटे भाई की भूमिका से निकलकर बड़ा बनती है ये देखना दिलचस्प रहेगा।
पार्टी को यक़ीन है कि महाराष्ट्र में काँग्रेस व एनसीपी की दशा व दिशा कमजोर होती जा रही है जिसके विकल्प के रूप में बीजेपी तेजी से अपने को जनता के सम्मुख प्रस्तुत करने में जुट गयी है जिसका परिणाम है कि बीते कुछ महीनों में काँग्रेस व एनसीपी के तमाम दिग्गजों को पार्टी में शामिल कर जय श्रीराम बुलवा चुकी है।
उधर रविवार को बीजेपी अध्यक्ष व गृहमंत्री अमित शाह मुम्बई में रैली करने आये किन्तु उद्धव ठाकरे से नही मिलकर साफ़ रणनीतिक सन्देश दे दिया कि ठाकरे को वर्तमान को स्वीकार करना चाहिए वरना अलग से चुनावी मैदान में मुलाकात होनी तय है।
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में सहमति बन गई है कि महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना के बीच तल्खी बढ़ती है, तो वह अपने दम पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं। इसके पीछे मुख्य वजह यह है कि भाजपा चाहती है कि शिवसेना ‘170-118’ के फार्मूले पर राजी हो जाए।हालांकि किसी भी निर्णय पर पहुंचने से पहले शिवसेना के जवाब का इंतजार किया जा रहा है, भाजपा बीते लोकसभा चुनाव में मोदी मैजिक से मिली जबरदस्त सफलता को आगामी विधानसभा के चुनावी युद्ध मे भुनाना चाहती है इसलिए उसने यह फार्मूला तय किया है।
बता दें कि भाजपा ने राज्य की करीब 188 सीटों पर अपना प्रभाव बड़े स्तर पर दर्ज किया था, जबकि शिवसेना करीब 80-83 सीटों पर प्रभावी रही थी।
सूत्रों के मुताबिक भाजपा ने शिवसेना को स्पष्ट कर दिया है कि राज्य में स्थिति बदल गई है।पहले यहां पर मुख्य दल शिवसेना थी लेकिन राष्ट्रवाद व हिंदुत्व के उभार के पश्चात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के केंद्र सरकार में आने के बाद से देश भर के राजनैतिक परिदृश्य में गम्भीर बदलाव आया हुआ है अत: वह महाराष्ट्र में अपने बूते पर चुनाव लड़ने के लिए समर्थ है।
ऐसे में शिवसेना को वक्त की नजाकत के लिहाज से आकलन करते हुए उतनी ही सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए, जिस पर वह जीत दर्ज कर सकती है।
शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे से मुलाकात नहीं करके भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने मुंबई दौरे के माध्यम से शिवसेना को साफ संदेश दे चुके है क्योंकि पहले कयास लगाए जा रहे थे कि दोनों वरिष्ठ नेताओं के बीच सीट बंटवारे को लेकर बातचीत होगी और संभवत: उसी दिन मंच से गठबन्धन का ऐलान भी कर दिया जाएगा,अब राष्ट्रीय अध्यक्ष व गृहमंत्री अमित शाह एक बार फिर 26 सितंबर को मुंबई आयेंगे।
शिवसेना इससे पूर्व कई बार सार्वजनिक मंचों से भाजपा के प्रस्ताव को सीधे तौर नकार चुकी है कि वह राज्य में बराबर की सीटों पर चुनाव के नीचे सहमत नहीं होगी।शिवसेना की मांग है कि राज्य में भाजपा और शिवसेना आधी-आधी सीटों पर चुनाव लड़ें. वहीं, भाजपा किसी भी हालत में शिवसेना को 120-125 से अधिक सीट देने को तैयार नहीं है।
भाजपा पदाधिकारियों के मुताबिक शिवसेना अगर अकेले चुनाव लड़ती है, तो वह 70-75 से अधिक सीट नहीं जीत सकती है वहीं, भाजपा अगर अकेले चुनाव लड़ती है तो वह 200 से अधिक सीटों पर जीत दर्ज कर सकती है इसकी वजह पुलवामा हमले के बाद मोदी सरकार ने सेना को फ़्री हैंड करने से एयरफोर्स द्वारा बालाकोट में सर्जिकल स्ट्राइक 2 के तहत एयर स्ट्राइक कर आतंकी शिविरों को बर्बाद कर सैकड़ों आतंकियो को मार डालना,अनुच्छेद 370 जम्मू कश्मीर से हटाकर सरकार का ठोस और कठोर निर्णय करना है, जिससे भाजपा खासी उत्साहित है।