★मुकेश सेठ★
★मुम्बई★
{सम्पूर्ण हिमालय के सभी धार्मिक-पर्यटन स्थल और ट्रेकिंग-रूट पर प्लास्टिक बैग, सिंगल-यूज़-प्लास्टिक और मिनिरल-वाटर बोतलों की बिक्री पर पूर्ण-प्रतिबंध हेतु कैम्पेन}
[विवेकानंद यूथ कनेक्ट संस्था मई 2021 से हिमालय को प्लास्टिक मुक्त क्षेत्र के रूप में स्थापित करने के ध्येय के साथ”प्लास्टिक फ़्री हिमालय”कैम्पेन चला रही]
♂÷“हिमालय में नैसर्गिक जलश्रोत प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है; हिमालयी क्षेत्र में रमन करते समय लोगों को हिमालय से निःसृत नदियों के प्रसंस्कृत जल का आनंद ले सकते हैं अतः शहर से पहाड़ पर जल लाना मूर्खता के सिवाय और कुछ नहीं है!”
उक्त बातें विवेकानंद यूथ कनेक्ट संस्था के संस्थापक डॉ राजेश सर्वज्ञ ने कही।उन्होंने आगे कहा कि पहाड़ी पर्यावरण को सबसे अधिक प्रदूषित करने में स्नेक्स, सिंगल-प्लास्टिक-यूज़ में बेचे जाने वाले खाद्य-पदार्थ और मिनिरल-वाटर सबसे बड़े कारक हैं।उनको विलीन होने में कई सौ वर्ष लग जाते हैं (अगर वे कभी विलीन होते भी हैं तो); मानव स्वास्थ्य, मवेशी और जंगली-जीवों के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है यही वस्तुएं हैं और सुदूर पहाड़ों में बिखड़े पड़े प्लास्टिके कचरे को री-साइकिल करना असंभव सा है किंतु उन सिंगल युज प्लास्टिक के उपयोग को पुर्णतः रोकना , विकल्प को खडा करना बहुत आसान है।
डॉ सर्वज्ञ ने कहा हिमालय के मौलिक निर्मल स्वरूप की रक्षा करने की अतिआवश्यकता को देखकर नॉन-प्रोफ़िट-ऑर्गनायज़ेशन: ‘विवेकानंद यूथ कनेक्ट फ़ाउंडेशन, ने हिमालय के उत्तराखंड में बद्रीनाथ और केदारनाथ के यात्रा के बाद , हिमालय को विश्व मानचित्र में प्लास्टिक (बैग और मिनिरल वाटर बोटल्स) मुक्त क्षेत्र के रूप में स्थापित करने के ध्येय के साथ मई 2021 में “प्लास्टिक फ़्री हिमालय” का कैम्पेन आहूत किया।
हिमालय क्षेत्र में सिंगल-यूज़-प्लास्टिक पर शत प्रतिशत प्रतिबंध लगाने के उपरांत सबसे ज़रूरी है पहाड़ों पर पहले से मौजूद प्लास्टिक-कचरों को समेट कर उसका प्रॉसेसिंग करना।
इस महत्तम उद्देश्य के लिए सभी हिमालयी राज्यों के सरकारों और अधिकारियों के साथ सशक्त वकालत और बड़े स्तर पर जन-जागरण की आवश्यकता है।
इस तरह के प्रतिबंधों को दायित्व सभी सम्बंधी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों पर होना चाहिए.
सिर्फ़ प्लास्टिक बैग और बोतलों पर प्रतिबंध, पहाड़ों के वेस्ट-मनेजमेंट की सारी समस्याओं का समाधान नहीं है किंतु ऐसा करना सही दिशा का पहला क़दम ज़रूर होगा।इससे हम सैलानियों और स्थानीय लोगों को दिखा पाएँगे की पर्यावरण की रक्षा संभव है, और इसमें कोई ख़र्च भी नहीं है तथा पर्यटन एक पर्यावरण पूरक कार्य हो सकता है,सैलानियों को यदि पहले बता दिया जाय तो वे ज़रूर क़ानून का पालन करेंगे।