★मुकेश सेठ★
★मुम्बई★
{CHGS दिल्ली से आये होम्योपैथी चिकित्सक डॉ जायसवाल ने कहा कि ऐतिहासिक शोध से साबित हुआ कि होमियोपैथी चिकित्सा प्रणाली भारतीय ग्रँथों की देन}
[आजमगढ़ में एक दिवसीय राष्ट्रीय होमियोपैथी सेमिनार में देशभर से जुटे 5 सौ होमियोपैथी चिकित्सक]
♂÷गत दिनों उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ में राष्ट्रीय होमियोपैथी सेमिनार का आयोजन सम्पन्न हुआ।इस एक दिवसीय सम्मेलनके देश भर से लगभग 5 सौ होमियोपैथी चिकित्सकों ने भाग लेकर कार्यक्रम को सफ़ल बनाया।
उक्त कार्यक्रम में CHGS दिल्ली से पधारे होमियोपैथी चिकित्सक डॉ. आशीष कुमार जायसवाल ने अपने ऐतिहासिक शोध से ये प्रमाणित किया कि होमियोपैथी चिकित्सा वास्तव में भारतीय ग्रँथों से उत्पन्न हुई चिकित्सा प्रणाली है एवं इसके जनक वास्तव में महर्षि वेदव्यास हैं।इसके साथ ही होमियोपैथी चिकित्सा जगत में एक क्रांतिकारी विचार की स्थापना हो चुकी है कि होमियोपैथी सिद्धान्तों के उद्भव का श्रेय पाश्चात्य को नही बल्कि पुरातन भारतीय ग्रँथों को जाता है।डॉ जायसवाल की शोधपरक ऐतिहासिक पुस्तक”महर्षि वेदव्यास एवं होमियोपैथी चिकित्सा के सिद्धांत”की मांग होमियोपैथी के छात्रों एवं सामान्यजनों में कई गुना बढ़ चुकी है।पुस्तक को होमियोपैथी दर्शन एवं ऑर्गेनन ऑफ़ मेडिसिन के विख्यात आचार्य सम्भलपुर विश्वविद्यालय के PHD(होमियोपैथी)के परीक्षण एवं मध्यप्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय के बोर्ड ऑफ़ स्ट्डी मेम्बर प्रोफेसर डॉ. पाटिल ने अग्रेसित किया है।
डॉ. आशीष कुमार जायसवाल ने आगे जानकारी दी कि सदृश लक्षणों के लिए जिन प्राकृतिक सिद्धान्तों के आधार पर डॉ हैनिमैन ने होमियोपैथी चिकित्सा प्रणाली की आधारशिला 18वी शताब्दी के उत्तरार्द्ध में रखी उन सिद्धान्तों के खोज का श्रेय वास्तव में पाश्चात्य जगत को नही दिया जा सकता।पुरातन भारतीय ग्रँथों एवं संस्कृति साहित्य के प्रकाश में काफी कुछ ऐसी बातें सामने आती है जो यह साबित करती है कि वास्तव में इन सिद्धांतों का समावेश भारतीय संस्कृति में तथा भारतीय व्यवस्थाओं की चिकित्सा परम्पराओ में पुरातन काल से अभिन्न रूप से रहा है परन्तु सम्भवतः किन्ही विशेष कारणों से भारतीय चिकित्सा के इन सिद्धान्तों का श्रेय भारतीय ग्रँथों को नही दिया गया।
डॉ जायसवाल ने आगे कहा कि उनके शोध में आये ऐतिहासिक तथ्यों के प्रकाश में स्पष्ट होता है कि सदृश विधानों के आधार पर उत्पन्न होमियोपैथी चिकित्सा प्रणाली वास्तव में भारतीय ग्रँथों की देन है एवं महर्षि वेदव्यास ही इसके जनक हैं।
डॉ जायसवाल ने जानकारी दी कि संस्कृत साहित्य की रोशनी में लिखी गयी ये पुस्तक होमियोपैथी में अद्वितीय है एवं इससे पूर्व ऐसी कोई पुस्तक नही लिखी गयी है।पुस्तक के माध्यम से होमियोपैथी के इतिहास एवं दर्शन को नई दिशा मिलती है।उन्होंने आगे कहा कि संस्कृत साहित्य एवं होमियोपैथी इतिहास में उनकी पहले से ही काफ़ी रुचि रही है और उन्हें शोधकार्य में लगभग 4 वर्ष समय लगा है, दिन रात की मेहनत के पश्चात इस शोधकार्य की लोंगो ने प्रशंसा की वही मेरा पारितोषिक है और इसी से उनका मनोबल बढ़ा है।