★श्यामजी मिश्र★
★वलसाड़(गुजरात)★
{ओपन स्काय पॉलिसी के तहत 30%बढ़ोत्तरी कर केन्द्र सरकार कर रही किसानों और निर्यातकों का भारी नुकसान}
[जेट एयरवेज के बन्द होने और किराए में 40%तक कि वृद्धि से हापुस आम के निर्यात हुए है बुरी तरह प्रभावित=आनंद के शैवाल]
♂÷वर्तमान समय में बाहर देशों में फ्रूट्स एवं वेजिटेबल निर्यात पर विमान किराये में बेतहाशा वृद्धि किए जाने से एक्सपोर्टरों में नाराजगी व्याप्त है। जेट एयरवेज बंद हो जाने के बाद किराये में हुई बृद्धि लेकर निर्यातकों का कहना है कि सरकार की यह कैसी पॉलिसी है,एक तरफ सरकार किसानों को दुगने मुनाफा दिलाने का ढ़िढ़ोरा पीट रही है तो वहीं दूसरी तरफ सरकार की ओपन स्कॉय पॉलिसी के तहत विमान के किराए में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी करके किसानों का नुकसान और एयरलाइंस को डबल मुनाफा दिलाने की यह रणनीति बनाई गई है। जबकि निर्यातकों ने इस संबंध में कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादक निर्यात विकास प्राधिकरण के माध्यम से केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय को निवेदन पत्र देकर विमान किराए में कटौती किए जाने की मांग की है।
मार्केट में बढ़ी हापुस आम की आवक, पर फलों की निर्यात में कमी होती जा रही है क्योंकि केंद्र सरकार बढ़ोत्तरी की दर बेतहाशा बढ़ा दी है।
बांम्बे एक्सपोर्ट कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर आनंद के शेवाल ने बताया कि इस समय हापुस आम की आवक मार्केट में काफी बढ़ गई है और समय के मुताबिक विदेशों में भी मांग बढ़ने लगी है परंतु जेट एयरवेज बंद होने के बाद विमान किराये में हुई बृद्धि के कारण 35 से 40 फीसदी मॉल के निर्यात पर रोक लग गई है। इसके दो कारण हैं, एक तो किराये में हुई 30 प्रतिशत की वृद्धि और दूसरा विमान में उपलब्ध जगह नहीं होने के कारण मॉल का निर्यात नहीं हो पा रहा है।
एक तरह से देखा जाए तो विमान किराये में बढ़ोत्तरी एक्सपोर्ट व्यवसाय के लिए यह एक बड़ा धोखा है। वहीं दूसरी तरफ गुजरात राज्य से भी बड़ी मात्रा में आम का निर्यात विदेशों में किया जाता है। इसी संदर्भ में वलसाड जिला के केरी मार्केट के प्रसिद्ध व्यवसायी व फ्रूट मर्चेंट के व्यापारी आर आर मिश्रा ने सरकार से यह मांग की है कि खेती में जो भी पैदावार है, उस पर किसानों को 30 प्रतिशत रिजर्वेशन दिया जाना चाहिए तथा बढ़े हुए विमान किराये को भी कम किया जाना चाहिए। लेकिन आज स्थिति यह है कि किसानों को उचित मूल्य तक नहीं मिल पा रहा है। इसके साथ ही एक्सपोर्ट विजनेस में लाखों कामगार जो इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं उन कामगारों पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है। अगर यहां से यूरोपीय जैसे देशों में मॉल का निर्यात नहीं होगा तो स्वाभाविक है कि कीमतों में गिरावट आयेगी, जिसका असर किसानों पर भी पड़ेगा।