★मुकेश शर्मा★
★भोपाल★
{पत्रकार की मौत के बाद मासूम बच्चो का अधिकार छीनकर निगम अधिकारी की मदद से फ्लैट हड़पने के आरोप}
♂÷ प्रदेश के मुरेना शहर में टीआईटी स्थित बहुमंजिला इमारत वैसे तो लंबे समय से विवादों के घेरे में है लेकिन अब ये मामला न्यायालय में पहुंच गया है जहां मृतक पत्रकार पंकज शिवहरे की पत्नी अनुराधा गुप्ता ने पत्रकार की मौत के बाद मासूम बच्चो का अधिकार छीनकर निगम अधिकारी की मदद से फ्लैट हड़पने के आरोप पंकज के परिजनों पर लगाए हैं । वैसे तो नगर निगम मुरेना के कार्य करने का तरीका नियमों को ताक पर रखकर फर्जीवाड़ा करने का एक अलग ही इतिहास है । मुरैना नगर निगम इसमें गुरु ही कहा जाएगा
प्राप्त जानकारी के अनुसार फरियादी अनुराधा ने आरोप लगाते हुए बताया है कि अधिमान्य पत्रकार पंकज शिवहरे जो कि अपनी मृत्यु दिनांक तक मुरैना नगर निगम के एक फ्लैट36 बहुमंजिला मंजिला इमारत टी आई टी कॉम्प्लेक्स के स्वामी थे उनका का आकस्मिक निधन हृदय आघात से 18, नवंबर 2017 को हो गया और जिसके बाद पंकज के परिजनों द्वारा बड़े ही नाटकीय ढंग से उनके 4 माह के बच्चे और 7 वर्ष की बेटी को उनकी संपत्ति से बेदखल करने के लिए रोज नई नई घटनाएं रची जाने लगी । दुख और संताप में डूबे हुए परिवार ने सिटी कोतवाली में अनेकों गुहार लगाई लेकिन नोटों की गड्डीयों के आगे न्याय कहीं दब कर रह गया । फ्लैट की विवादित अनोखी फाइल के कुछ मूल तथ्य जिस पर हमारे पढ़े-लिखे एसपी, टीआई और नगर निगम के मुख्य अधिकारी आज तक ध्यान नहीं दे पाए । हालांकि इससे संबंधित कई आवेदन सिटी कोतवाली मुरैना में दिए जा चुके हैं जांच के दायरे में सच्चाई को दबा दिया गया और अधिमान्य पत्रकार के बच्चों को बेघर कर दिया गया शायद इसमें सबसे बड़ा हाथ शहर के ही कुछ पत्रकारों और तथाकथित समाज के ठेकेदारों का रहा ।
उल्लेखनीय है कि मुरैना नगर निगम सीमा में टी आई टी कॉन्प्लेक्स 36 बहु मंजिला इमारत वैसे तो पूरी की पूरी ही भ्रष्टाचार के चलते अवैध कागजों और नियमों के विरुद्ध होकर कब्जा धारियों, बाहुबलियों, शासन के दलालों की बपौती है जिसमे सबसे ज्यादा पतरकार बताए जाते हैं ।
लेकिन फ्लैट क्रमांक 6 की कहानी बहुत ही अलग है इस flat के लिए सबसे पहले नगर निगम द्वारा एक 30 वर्षीय लीज सन 2006 में अधिमान्य पत्रकार पंकज शिवहरे के हित में की गई
नगर निगम अधिनियम की धारा 109 के अनुसार अब इस लीज का या तो फौती नामांतरण हो सकता है या या निरस्त हो सकती है !
लेकिन नाटकीय ढंग से अधिमान्य पत्रकार की मृत्यु के 1 वर्ष बाद इसलिए का नामांतरण प्रस्तुत 7 वर्ष पुरानी एक रजिस्ट्री और शपथ पत्र , जिसमें रजिस्ट्री के स्टांप आपस में तालमेल नहीं खाते और शपथ पत्र के हस्ताक्षर ना तो नगर निगम के रिकॉर्ड से मेल खा रहे हैं और ना ही स्वयं रजिस्ट्री के हस्ताक्षर से मेल खा रहे हैं । लेकिन फिर भी पड़ोस में रहने वाले निगम के राजस्व अधिकारी त्रिलोक शांडिल्य द्वारा जो कि स्वयं अधिमान्य पत्रकार की अंत्येष्टि में शामिल हुए थे बिना हस्ताक्षर का अवलोकन किए मात्र 24 घंटे में विज्ञप्ति जारी कर दी गई जिस अखबार में नामांतरण कराने वाली महिला स्वयं अधिमान्य पत्रकार हैं इतना ही नहीं इस विज्ञप्ति में पत्रकार की मृत्यु का विवरण क्यों नहीं दिया गया ?
बड़ा सवाल यह है कि जब 2011 में रजिस्ट्री की जा चुकी थी तो 2019 में निगम ने ली लीज कैसे की ? जब 2006 लीज डीड निगम ने 30 वर्ष की कर दी तो दूसरी लीज जी 2019 में 30 वर्ष की फिर से कैसे कर दी ❓
कहानी में असली मोड़ तब आया जब पत्रकार के बच्चों को और विधवा को घर से निकाल कर बाहर खड़ा कर दिया गया इसके बाद सिटी कोतवाली में कई आवेदन दिए गए लेकिन जांच करने की जगह स्वयं टीआई महोदय इस रजिस्ट्री की गवाही देते हुए पाए गए । इस फाइल का सबसे मूल तथ्य यह था कि जब संपत्ति 30 वर्ष की लीज पर दी गई तो आखिर उसका रजिस्ट्री के आधार पर नामांतरण कैसे कर दिया गया ❓ इस मूल तथ्य को लेकर यह फाइल कोर्ट पहुंची ही थी कि अपने भ्रष्टाचार और एकाधिकार पर घमंड करने वाले निगम के राजस्व अधिकारी ने इस संपत्ति की एक लीज और संपादित कर दी अब सोचने वाली बात यह है कि यदि रजिस्ट्री असली होती तो कुछ दिन तो कोर्ट में खड़े होने की हिम्मत जुटा पाते ? आनन-फानन में दूसरी लीज बनाना चोर की दाढ़ी में तिनका का संकेत है । वैसे गौर से देखा जाए तो इस फाइल में की गई मूर्खता पूर्वक कार्यवाही इस बात का संकेत है कि यह सब मात्र फ्लैट हड़पने के लिए ही बंदरबांट है लेकिन इतने स्पष्ट कारणों को देखने के बावजूद सिटी कोतवाली का समर्थन काबिले लानत ही नहीं भ्रष्टाचार को पालने में पुलिस की विशेष स्थिति को स्पष्ट कर रहा है ।
गौरतलब है कि मात्र 4 माह के बेटे थे उसके पिता की इकलौती संपत्ति छीनने में जिस तरीके की घटिया कार्यवाही और भ्रष्टाचारी नगर निगम अधिकारी द्वारा अपने राजनीतिक संबंधों का दुरुपयोग कर कर की गई वह उनके बिके हुए जमीर का स्पष्ट उदाहरण है
और साथ ही उनकी
नाकाबिलियत का प्रमाण है कि एक बार वह रजिस्ट्री के आधार पर नामांतरण करते हैं और फिर उसी नामांतरण के आधार पर लीज डीड भी संपादित कैसे करते हैं । बहरहाल मामला निगम और न्यायालय में लंबित है लेकिन देखना यह है कि फरियादी को न्याय मिलने में कितना समय लगेगा ❓