~सुभाषचंद्र
Bar Council of India इनके और Bombay Lawyers Association(BLA) के सभी सदस्यों के रद्द करे License
♂÷बॉम्बे हाई कोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस एसवी गंगापुरवाला और जस्टिस संदीप मार्ने ने 9 फरवरी को बॉम्बे लायर्स असोसिएशन(BLA) की तरफ से वकील अहमद आब्दी की दायर की गई उस याचिका को सुना और ख़ारिज किया।
जिसमें उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और कानून मंत्री किरेन रिजिजू को हटाने की मांग की गई थी, दोनों को याचिका में प्रतिवादी बना कर कहा गया था कि उनके बयानों से देश के संविधान के प्रति निष्ठा में कमी दिखाई देती है और उन्होंने न्यायपालिका की प्रतिष्ठा एवं छवि को जनमानस की दृष्टि में धूमिल किया है।
ऐसा 75 साल में कभी नहीं हुआ और इससे अराजकता फ़ैल सकती है,दोनों ने न्यायपालिका और संविधान पर सामने से हमला (Frontal Attack) किया है।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने याचिका ख़ारिज करते हुए कहा था कि Individuals के बयानों से सुप्रीम कोर्ट की साख धूमिल नहीं हो सकती – यानी देश के उप राष्ट्रपति और कानून मंत्री को मात्र “individual” ही समझा कोर्ट ने।
बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा याचिका ख़ारिज करने के आदेश के खिलाफ BLA ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की और उसे सुनने के लिए उन्होंने जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ गठित कर दी। जिसका मतलब निकाला जा सकता है कि CJI को अपील में जान लगी और उसे सुनवाई के काबिल समझा।
जस्टिस कौल की बेंच ने एक गैर जरूरी विषय पर सुनवाई की जबकि उप राष्ट्रपति और कानून मंत्री को हटाना न्यायपालिका के कार्यक्षेत्र में नहीं है, लेकिन अपील ख़ारिज करते हुए एक खतरनाक बात पीठ ने कह दी कि
“ हमारा मानना है कि हाई कोर्ट का दृष्टिकोण सही है, अगर किसी अथॉरिटी ने अनुचित बयान दिया है तो यह टिप्पणी कि सुप्रीम कोर्ट उससे निपटने में पर्याप्त सक्षम है, सही दृष्टिकोण है”।
इस बात का मतलब यही निकलता है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों ने उप राष्ट्रपति और कानून मंत्री की अथॉरिटी को सीधी चुनौती दे दी और चेता दिया कि यदि जरूरत पड़ी तो तो सुप्रीम कोर्ट आपसे भी निपट सकता है,उप राष्ट्रपति और कानून मंत्री दोनों के बयानों को जस्टिस कौल की पीठ ने “अनुचित” करार दे दिया।
अब सत्य को देखिए – संविधान के अनुच्छेद 67 के अनुसार उप राष्ट्रपति को केवल संसद द्वारा हटाया जा सकता है। पहले 14 दिन का नोटिस देने के बाद राज्यसभा में उपराष्ट्रपति को हटाने का प्रस्ताव पास किया जाता है जिसको लोकसभा से भी पास किया जाना जरूरी है।
इसी तरह किसी भी मंत्री को राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 75(2) के अंतर्गत बर्खास्त कर सकते हैं या प्रधानमंत्री की अनुशंसा पर हटा सकते हैं।
दोनों को हटाने की किसी तरह की शक्ति किसी अदालत के पास नहीं है और यह BLA के वकीलों, हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों को मालूम होना चाहिए था लेकिन बावजूद उसके BLA ने याचिका दायर की और दोनों अदालतों ने ऐसी Frivolous याचिकाएं सुन कर BLA के अपराध से भी बड़ा और गंभीर अपराध किया है।
इस तरह बॉम्बे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों ने संवैधानिक व्यवस्था और संस्थाओं को चुनौती देने का गैरकानूनी कार्य किया है जिसके लिए उन पर महाभियोग चलाया जाना चाहिए और इन जजों और BLA के सभी वकीलों के लाइसेंस Bar Council of India को रद्द कर देने चाहिए।
दोनों अदालतों ने अपनी मनमर्जी कर ली, अब दोनों के संबंधित जज एक सवाल का जवाब दे दें कि जब उन्हें केवल महाभियोग से हटाया जा सकता है तो ऐसे में कोई वकील यदि किसी जज को बर्खास्त करने के लिए हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट याचिका दायर कर दे तो भी क्या उस पर सुनवाई की जाएगी?
(लेखक विधि मामलों के ज्ञाता हैं व यह लेख उनके निजी विचार है)