★मुकेश सेठ★
★मुम्बई★
चंदेल राजा परमल के महान सेनापति आल्हा ने अपने छोटे भाई ऊदल की युद्ध में वीरगति प्राप्त कर लेने की ख़बर से पृथ्वीराज चौहान से किया था भीषण युद्ध
आल्ह-खण्ड काव्य में आल्हा-ऊदल भाइयों के द्वारा 52 लड़े गए लड़ाई का है ज़िक्र,1182 ईसवीं में लड़े गए भीषण युद्ध से इतिहास में आल्हा-खांडबाल क्षेत्र में हो गए अमर,आल्हा की है आज जयन्ती
♂÷परमप्रतापी वीर चंद्रवंशी आल्हा जिनकी आज जयंती भी है,यह नाम इनका कैसे पड़ा यह बात आज तक समझ में नहीं आई और इतिहासकार भी इस पर अपने हाथ तंग किये रहे।
मालूम हो कि बड़े लड़ाके आल्हा मध्यभारत में स्थित ऐतिहासिक बुन्देलखण्ड के सेनापति थे और अपनी वीरता के लिए सुविख्यात थे।
आल्हा के छोटे भाई का नाम ऊदल था और वह भी वीरता में अपने भाई से बढ़कर ही थे। जगनेर के राजा जगनिक ने आल्ह-खण्ड नामक एक काव्य रचा था उसमें इन वीरों की 52 लड़ाइयों की गाथा वर्णित है।
आल्हा,ऊदल ने अपनी मातृभूमि की रक्षा हेतु पृथ्वीराज चौहान से युद्ध करते हुए ऊदल वीरगति प्राप्त हो गए ।
वीर आल्हा अपने छोटे भाई की युद्धक्षेत्र में वीरगति प्राप्त कर लेने की खबर सुनकर अपना अपना आपा खो बैठे और पृथ्वीराज चौहान की सेना पर साक्षात मौत बनकर टूट पड़े।
आल्हा के सामने जो भी आया मारा गया।1 घण्टे के भयानक और घनघोर युद्ध के बाद पृथ्वीराज चौहान और आल्हा आमने-सामने थे।दोनों में भीषण युद्ध हुआ पृथ्वीराज चौहान बुरी तरह से घायल हो गए,तब आल्हा के गुरु गोरखनाथ जी के कहने पर आल्हा ने पृथ्वीराज चौहान को जीवनदान दिया और बुन्देलखण्ड के महा योद्धा आल्हा ने “नाथ पन्थ” स्वीकार कर लिया।
आल्हा, चन्देल राजा परमर्दिदेव (परमल के रूप में भी जाने जाते है) के एक महान सेनापति थे। जिन्होंने 1182 ई० में पृथ्वीराज चौहान से लड़ाई लड़ी, जो आल्हा-खाण्डबॉल में अमर हो गए।