★मुकेश सेठ★
★मुम्बई★
पर्यावरण दिवस के मौके पर इलेक्ट्रो स्टील कोलकाता ने जल संरक्षण विषय पर आयोजित सम्मेलन में पद्मश्री ने कहा पानी बचाने का काम समाज का है
अब जो बचा पानी है वह आने वाली पीढ़ी को जलसम्पत्ति के रूप में सौंपे,यह पीढ़ी बोतलबन्द पानी देख रही है जो राज-समाज के लिए चिन्ता का विषय होना चाहिए कहा जलयोद्धा पाण्डेय जी ने
♂÷दशकों पूर्व उत्तरप्रदेश के बाँदा जनपद के जखनी ग्राम से जल संरक्षण के पुरखों के परंपरागत मन्त्र ‘खेत पर मेड़-मेड़ पर पेड़’ को अपने जीवन का ध्येय बनाकर उसको अपना ओढ़ना,बिछौना बनाकर उसमें ही रम जाने वाले श्री उमाशंकर पाण्डेय के जलयज्ञ मुहिम अब देश विदेश में किसी परिचय की मोहताज़ नही है।
उनके इसी अनथक मुहिम से अति प्रभावित मोदी सरकार की सिफारिश पर कुछ माह पूर्व महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उमा शंकर पाण्डेय को पद्मश्री प्रदान कर उनके द्वारा देश व समाजहित में किये जा रहे अभियान को सम्मानित किया गया।
पर्यावरण दिवस के अवसर पर जल संरक्षण विषय पर कोलकाता में इलेक्ट्रो स्टील के द्वारा आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रुप में पद्मश्री शामिल हुए।
पद्मश्री ने मुख्यातिथ्य पद से बोलते हुए कहा कि पानी, संरक्षण से ही बचेगा, ‘खेत पर मेड़ और मेड़ पर पेड़’ मेड़बंदी के अभियान को देश के कई राज्यों में अपनाया जा रहा है। यदि बंगाल सरकार उनकी कोई मदद या सलाह लेना चाहती है, तो वह सहर्ष ही तैयार हैं।
उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के जखनी जलग्राम मेड़बंदी यज्ञ अभियान से पूरे देश में जल योद्धा के रूप में प्रसिद्ध उमाशंकर पाण्डेय ने कहा कि जखनी गांव से निकली जल क्रांति जल संरक्षण विधि “खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़” की परियोजना ने पूरे देश के जल संरक्षण को एक नई दिशा दी है।
उन्होंने कहा कि मेड़बंदी अभियान को मध्य प्रदेश सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार, राजस्थान सरकार, दिल्ली सरकार और गुजरात सरकार ने न केवल स्वीकार किया, बल्कि इसे अपने राज्य में लागू कर जल संरक्षण को बढ़ावा भी दिया है और इसके अच्छे सुफ़ल प्राप्त हो रहे है।
पद्मश्री ने कहा कि उनका पूरा जीवन जल संरक्षण के लिए समर्पित है, उत्तर भारत के बड़े राज्य का पानी बंगाल में आता है बंगाल में पानी का अकाल नहीं है।
उन्होंने कहा कि कोलकाता भारत का पहला शहर है, जहां मीठा पानी बड़ी मात्रा है। यहां से समुद्र मात्र कुछ सौ किलोमीटर की दूरी पर ही है, लेकिन बड़ी मात्रा में यहां मीठा पानी है, कोलकाता शहर में सबसे अधिक पेड़ हैं, बंगाल के लोग मछली पालन और पानी की खेती करना जानते हैं।
उन्होंने कहा कि बंगाल समाज सुधारकों की भूमि है, यहां महान क्रांतिकारी पैदा हुए हैं वह इस भूमि का नमन करते हैं। उनकी अपील है कि जहां पानी नहीं है वे लोग पानी बचाएं और देश के प्रधानमंत्री जल आंदोलन को जन आंदोलन बनाने में हरसम्भव प्रयास व अपना योगदान दें।
जलयोद्धा ने कहा कि पूरी दुनिया में अन्न का संकट है, पानी बनाया नहीं जा सकता है, केवल बचाया जा सकता है। पूरी दुनिया की 18 फीसदी आबादी भारत में है, तो मात्र तीन फीसदी जमीन है. पानी मात्र दो फीसदी है. इसमें एक फीसदी खारा पानी है. केवल मीठा एक प्रतिशत है।
पद्मश्री ने चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि अब जो बचा पानी है, वह आगे आने वाली पीढ़ी को जल संपत्ति दें, यह पीढ़ी बोतल में पानी देख रही है. यह ठीक नहीं है। पहले हर गांव में दूध, दही और मट्ठा होता था, लेकिन अब गांव के किराना की दूकानों में बोतल बन्द पानी पहुंच गया है इस स्थिति को बदलनी होगी।
उन्होंने कहा पेड़ लगाना होगा,पानी बचाना होगा, क्योंकि पानी का बेटा पेड़ है।
जल संरक्षण की बात मंदिर से, गुरुद्वारे से, गिरजाघर से और शैक्षणिक सामाजिक संस्थाओं से की जाए।उन्होंने कहा कि दक्षिण अफ्रीका के बड़े शहर केपटाउन में पानी के लिए आपातकाल लग गई थी,आस्ट्रलिया ने जल संरक्षण शुरू किया तो वर्ष 2008 में पानी माइनस से सरप्लस कर दिया।
आगे कहा इजराइल ने दुनिया के सामने पानी बचाने के सन्दर्भ में उम्दा उदाहण प्रस्तुत किया है, साथ ही दुनिया को चेतावनी भी दी है कि बगैर देर किए पानी बचाने की मुहिम शुरू होनी चाहिए।
भारत में चेन्नई,बंगलूरूरु, बुंदेलखंड, ओडिशा में पानी का संकट है. बहते पानी को रेंगना सीखना होगा. रेंगते पानी को रोकना होगा. रूके पानी को भूमि के गर्भ के समाना होगा।
पानी की बर्बादी पर उन्होंने कहा कि पानी की बर्बादी रोकने का काम सरकार का नहीं, समाज का है समाज को जगना होगा,घर में बहता हुआ नल बाहर का कोई व्यक्ति कैसे बंद कर सकता है, खुद ही इसके प्रति जागरूक होना होगा।
जानकर लोगों को आश्चर्य होगा कि आज के इस दौर में जहाँ लोग एसी, फ़्रिज, कूलर,पँखे, वाशिंग मशीन,जनरेटर आदि अनेक सुखसुविधाओं का खुलकर उपभोग करते है तो वहीं पद्मश्री उमाशंकर पाण्डेय जी अपने घर में आज भी बिना बिजली कनेक्शन लिए प्राकृतिक रूप से जीवन गुजारते है, खटिया पर सोने वाले उमाशंकर जी कहते हैं कि प्रकृति पूजा व सानिध्य उनके जीवन का अभीष्ट है।दूसरों को उपदेश देने से पहले हम ख़ुद उस जिंदगी को प्रारम्भ से जी रहे हैं और हमे कोई परेशानी नही है।