लेखक-डॉ.के. विक्रम राव
मेरे प्रिय हीरो की हत्या के ठीक छः दशक हुए आज (22 नवंबर 2023)। बुतशिकन के भी चंद चहेते मुजस्सिम होते हैं, मेरे जान कैनेडी थे।
अमेरिका का 35वां राष्ट्रपति। शहीद हुआ था।
साम्राज्यवादी, शोषक अमेरिका में नई जनवादी रोशनी प्रज्वलित करने वाला आकर्षण यादगार था क्योंकि हम दोनों की जन्मगांठ 29 मई है। कैनेडी के दो सूत्र स्मरणीय रहेंगे : “मैं डर कर वार्ता नहीं करूंगा। मगर वार्ता करने से डरूँगा नहीं।” दूसरा अर्थ बड़ा उम्दा, सटीक था : “सफलता के कई बाप पैदा हो जाते हैं। विफलता यतीम रह जाती है।”
अब इसीलिए ग्लानि और गुस्सा आता है जब दीमक, घुन, मच्छर, खटमल जो भारत को खोखला कर रहे हैं। पप्पू होकर भारत तोड़ रहे हैं विरासत की सियासत की धौंस पर ?
इसीलिए जॉन कैनेडी खासकर याद आते हैं। छबीले, रोबीले, हसीन, छः फुटे कैनेडी की आज साठवीं पुण्यतिथि है। डलास शहर के डीले प्लाजा के पास एक रोड शो में उन्हें गोली मारी गयी थी। यह शहर नस्लभेद से ग्रस्त रहता था अभी भी है। दस मील लम्बी सड़क के दोनों ओर दो लाख लोग हर्षध्वनि कर रहे थे। वह सियाह निशा मुझे याद है। मुंबई के बोरीबंदर में “टाइम्स” भवन की तीसरी मंजिल में हम सारे सब-एडिटर लोग चीफ के चयन से सहमत थे कि जनरल विक्रम सिंह (अगले सेनाधिपति होते), और उनके सहयोगी जनरल नलिन नानावटी की मृत्यु ही लीड स्टोरी हो। उनका हेलीकाप्टर सीमावर्ती क्षेत्र में टेलीफ़ोन के तारों से उलझकर गिर गया था। दोनों जनरल मारे गये थे मगर अर्धरात्रि को टेक्सास से फ्लेश आया, “कैनेडी शाट।” घंटे भर बाद दूसरा आया : “प्रेसिडेंट ईज एसेसिनेटेड।”
इस युवा डेमोक्रेट सिनेटर का राष्ट्रपति प्रत्याशी बनकर चलाया अभियान हर राजनेता के पाठ्यक्रम में शामिल होना चाहिए। वोटरों की रसोई से लेकर जनसभाओं में, उसने संपर्क किया था। इस पूरी फिल्म को मेरे आग्रह पर अमेरिकी लाइब्रेरी ने लखीमपुर खीरी के युवराजदत्त कॉलेज में दिखाया था। लखनऊ में अमेरिकी लाइब्रेरी उन दिनों यूपी प्रेस क्लब के निकट थी। अब वहां परिवार-अदालत खुल गया है। तब लखीमपुर में मैं राजनीतिशस्त्र के स्नातकोत्तर छात्रों का अध्यापक था। लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीतिशास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ. जीएन धवन ने मुझे वहां भेजा था। कैनेडी का अंतिम वाक्य था उस अभियान में : “अब मैं चुनाव-फल और पहली संतान की प्रतीक्षा बेसब्री से कर रहा हूं।” उन दिनों जैकलिन गर्भवती थीं। वहां से आर्लिंगटन समाधि स्थल केवल पांच किलोमीटर है। कैनेडी की मजार वहां देखने की इच्छा थी। जब 1986 में हम सपरिवार वाशिंगटन गये थे। मगर मेरी हसरत अधूरी रह गई। क्योंकि दिल्ली का जहाज लेना था वक्त नहीं था मलाल रह गया।
रूपवान कैनेडी के प्रति नारी का आकर्षण बड़ा सहज था। उनके जन्मदिन पर हॉलीवुड की हसीनतम अभिनेत्री (सेक्सी गुड़िया) मेरिलीन मुनरो ने “हेप्पी बर्थडे” गाया, तो कैनेडी खुद को रोक नहीं पाए। बोल पड़े: “मेरिलीन ! तुम्हारे प्यारे गायन के सामने, राष्ट्रपति पद मेरे लिए कुछ भी नहीं रहा।”
कैनेडी भारत के प्रगाढ़ मित्र थे। जब चीन की लाल सेना बोमडिला हथियाकर, गुवाहाटी की ओर कूच कर रही थी, तो जवाहरलाल नेहरू ने एक ही दिन (19 नवम्बर 1962) दो पत्र कैनेडी को लिखे थे। वे दस हजार अमरीकी वायु सैनिक और बमवर्षक तथा जेट वायुयान तत्काल भेजें, ताकि चीन को रोका जा सके। कैनेडी की चेतावनी से मार्शल अयूब खान ने कश्मीर पर तब हमला नहीं किया। खौफ खाकर माओ ज़ेडोंग ने अपनी लाल सेना लौटा ली। यदि अमरीका के अन्य स्वार्थी राष्ट्रपतियों की भांति कैनेडी भी पाकिस्तान से यारी करने में लगे रहते तो ?
कुछ लोग भारत—अमेरिका कूटनीतिक संबंधों की छलभरी व्याख्या करते है। अब उन्हें इस सत्तर-वर्षीय रिश्तों के दरम्यान पेश आये एक शर्मनाक और घृणोत्पादक परिदृश्य को ताजा करने का वक्त आ गया है। अपने को बड़ा वैश्विक नेता मानने वाले जवाहरलाल नेहरू की जॉन कैनेडी को सैनिक सहायता दर्दभरी मार्मिक याचना वाला पत्र (नवम्बर 1962) यहां उल्लेखित करना ऐतिहासिक अपरिहार्यता है। इस पत्र को कांग्रेसी विदेश मंत्री कुंवर नटवर सिंह ने अपने प्रकाशन में दर्ज किया था। इसकी प्रतिलिपि वाशिंगटन के भारतीय राजदूत (1962) रहे और प्रधानमंत्री के चचेरे भाई बृजकिशोर नेहरू के दस्तावेजों में है। इस पत्र से नेहरू के लौह पुरूषत्व के लिजलिजापन का आभास हो जाता है।
राष्ट्रपति कैनेडी के लिए नेहरू ने एक दयनीय संदेशा भेजा था। राजदूत बी.के. नेहरू लिखते हैं : “जब मैंने इसे पूरी तरह से पढ़ा तो वह टेलीग्राम इतना अपमानजनक था कि खुद को रोने से रोक पाना मुश्किल था। मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि “जवाहरलाल की आत्मा पूरी तरह से नष्ट हो गई थी। चीन के आक्रमण के बाद नवंबर 1962 में नेहरू द्वारा केनेडी को भेजे गए अत्यावश्यक सैन्य सहयता की मांगपत्र को पढ़ने में बहुत तकलीफ होती है। ये अब गोपनीय दस्तावेजों की श्रेणी में नहीं है।”
नेहरू के पत्र की प्रतिलिपि
“प्रिय प्रेसिडेंट (जॉन कैनेडी) महोदय,
आज के मेरे पहले संदेश को भेजने के कुछ ही घंटों के भीतर, पूर्वोत्तर सीमा कमांड में स्थिति ज्यादा खराब हो गई है। बोमडिला चीन ने कब्जिया लिया और सेला क्षेत्र से पीछे हटने वाली भारतीय सेना सेला रिज और बॉमडीला के बीच फंस गई है। असम में हमारे डिगबोई तेल क्षेत्रों के लिए एक गंभीर खतरा पैदा हो गया है। विशाल बल में चीनियों के आगे बढ़ने से पूरी ब्रह्मपुत्र घाटी को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। और जब तक तुरंत कुछ नहीं किया जाता, तब तक पूरा असम, त्रिपुरा, मणिपुर और नागालैंड भी चीनी हाथों में चले जाएंगे। चीनियों ने सिक्किम और भूटान के बीच चुंबी घाटी में बड़े पैमाने पर सेना तैनात की है। एक और आक्रमण आसन्न है। उत्तर प्रदेश, पंजाब और हिमाचल प्रदेश में तिब्बत की सीमा पर उत्तर पश्चिम में हमारे क्षेत्रों को भी खतरा है। लद्दाख में, जैसा कि मैंने अपने पहले वाले संदेश में कहा है, चुशूल पर भारी हमले हो रहे हैं और चुशूल में हवाई क्षेत्र की गोलाबारी शुरू हो चुकी है। तिब्बत में चीनी वायु सेना द्वारा हवाई गतिविधि बढ़ गई है।
स्थिति वास्तव में हताश करने वाली है। हमें और अधिक व्यापक सहायता चाहिए ताकि चीनियों को पूरे पूर्वी भारत हथियाने से रोका जा सके। इस सहायता में किसी भी देरी से हमारे देश के लिए तबाही होगी। इसलिए, मैं अनुरोध करता हूं कि चीनी अग्रिम पंक्ति की गति अवरूद्ध करने हेतु हमारी वायु सेवा को मजबूत करने के लिए तुरंत आप सहायता दें।
पर्याप्त हवाई सुरक्षा के लिए न्यूनतम सुपरसोनिक 12 स्क्वाड्रन आवश्यक हैं। हमारे पास देश में कोई आधुनिक रडार कवर नहीं है। इसके लिए भी हम आपकी सहायता चाहते हैं। अमेरिकी वायु सेना के कर्मियों को सेनानियों और राडार प्रतिष्ठानों को संभालना होगा जबतक हमारे कर्मियों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। अमेरिकी वायुसेना के कर्मियों और परिवहन विमानों का उपयोग हमारे शहरों और प्रतिष्ठानों को चीनी हवाई हमलों से बचाने और हमारे संचार को बनाए रखने के लिए किया जाएगा।
मैं आपसे बी-47 प्रकार के दो स्क्वाड्रन के हमलावरों की सहायता करने पर विचार करने का अनुरोध करता हूं। इस अपरिहार्य साथ के लिए, हम संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रशिक्षण के लिए अपने पायलटों और तकनीशियनों को तुरंत भेजना चाहते हैं।
हमें विश्वास है कि आपका महान देश हमारे त्रासदी की इस घड़ी पर भारत के अस्तित्व के लिए और इस उप-महाद्वीप में स्वतंत्रता और उसके अस्तित्व के लिए हमारी लड़ाई में मदद करेंगे और साथ ही साथ शेष एशिया में भी। हम तब तक कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं जब तक कि चीनी विस्तारवादी और स्वतंत्रता के लिए आक्रामक सैन्यवाद द्वारा उत्पन्न खतरे को समाप्त नहीं जाते है हमारी स्वतंत्रता पूरी तरह से सुरक्षित नहीं हो जाती है।”
(जवाहरलाल नेहरू)
फिर अचानक खबर आई। चीन की लाल सेना स्वतः वापस लौट गई, आभार जॉन कैनेडी।

(लेखक IFWJ के नेशनल प्रेसिडेंट व वरिष्ठ पत्रकार/स्तंभकार हैं)