लेखक- वैशाली बसु शर्मा
पाकिस्तान में रह रहे गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) प्रतिबंधित आतंकवादी लखबीर सिंह रोडे की मौत हो गई । ‘80 के दशक में पंजाब उग्रवाद के मुखिया दमदमी टकसाल के जरनैल सिंह भिरंडनवाले के भतीजे होने के आधार पर, लखबीर और उसके भाई जसबीर सिंह रोडे ने खालिस्तानी अलगाववादी नेताओं के रूप में प्रमुखता का दावा किया था । लखबीर सिंह रोडे, 2021 लुधियाना अदालत परिसर विस्फोट का मुख्य आरोपी था। एनआईए ने उस पर पंजाब भर में आतंकी विस्फोटों को अंजाम देने के लिए पाकिस्तान से भारत में हथियार, इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस, गोला-बारूद, कस्टम-निर्मित टिफिन बम और नशीले पदार्थों सहित आतंकवादी हार्डवेयर की खेप की तस्करी का आरोप लगाया था। उसकी मृत्यु के दो दिन बाद, पंजाब पुलिस ने ब्रिटेन स्थित रोडे के एक सहयोगी परमजीत सिंह ढाडी को “पंजाब में आतंकवादी फंडिंग और अन्य विध्वंसक गतिविधियों” में उनकी भूमिका के लिए अमृतसर से गिरफ्तार किया।
इस वर्ष अलगाववादी संगठन ‘वारिस पंजाब दे’, इसके भिंडरावाले-शैली के नेता अमृतपाल सिंह संधू, कनाडा में भारत के सिख समुदाय के गैंगस्टर, पाकिस्तान के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा पार से मादक पदार्थों और हथियारों की बढ़ती घुसपैठ, राजनीतिक हत्याओं के बढ़ते मामले और भड़काऊ सोशल मीडिया संदेशो, जैसी घटनाओं की एक श्रृंखला सामने आयी ।
इससे पंजाब में एक तरह की बेचैनी पैदा हो रही है और कनाडा तथा उसके पश्चिमी सहयोगियों के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। खालिस्तानी अलगाववादी गुरपतवंत सिंह पन्नून, जिसने अक्टूबर 2021 में खालिस्तान के निर्माण के लिए एक अस्वीकृत जनमत संग्रह कराकर और भारत के खिलाफ नियमित धमकियां जारी करके कुख्याति प्राप्त की, खुद को और अपने संगठन ‘सिख्स फॉर जस्टिस’ (एसएफजे) को, भारत और अमेरिका की कूटनीतिक बातचीत में प्रधानता देने में कामयाब रहा है। दल खालसा और शिरोमणि अकाली दल जैसे अन्य खालिस्तान समर्थक समूहों ने पन्नुन पर पंजाबी युवाओं को पैसों का लालच दे कर अवैध गतिविधियों को अंजाम देने के लिए लुभाने का आरोप लगाया है, जबकि अमेरिकी नागरिक होने के कारण उसे खुद गिरफ्तारी से राजनयिक संरक्षण प्राप्त है।
अमृतपाल सिंह के इर्द-गिर्द चिंताजनक लामबंदी के बाद, मई और जून के दौरान, विदेश में तीन खालिस्तानी अलगाववादी मारे गए। आतंकी संगठन खालिस्तान कमांडो फोर्स के प्रमुख परमजीत सिंह पंजवार की मई की शुरुआत में पाकिस्तान के लाहौर में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। 19 जून को खालिस्तान टाइगर फोर्स (KTF) के कनाडा स्थित ‘प्रमुख’ हरदीप सिंह निज्जर की वैंकूवर में हत्या कर दी गई थी, और इसके एक सप्ताह पहले खालिस्तान लिबरेशन फोर्स के प्रमुख अवतार सिंह खांडा की बर्मिंघम के एक अस्पताल में मृत्यु हो गई थी। खांडा ब्रिटेन में भारतीय उच्चायोग से भारतीय ध्वज हटाने के बाद सुर्खियों में आए थे।
18 सितंबर को, कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने निज्जर की हत्या में “भारत सरकार के एजेंटों” की संलिप्तता का आरोप लगाया। एक दावा, जिसे नई दिल्ली ने “बेतुका” और “प्रेरित” कहकर सिरे से खारिज कर दिया। इसके बाद अमेरिका ने आरोप लगाया कि न्यूयॉर्क में पन्नून को मारने की “घातक साजिश” रची जा रही है। मामला इतना तूल पकड़ चुका है कि, अमरीकी सी.आई.ए. निदेशक विलियम बर्न्स और राष्ट्रीय खुफिया निर्देशक एवरिल हेन्स की क्रमशः अगस्त और अक्टूबर में यात्रा के बाद, अब एफ.बी.आई. निर्देशक क्रिस्टोफर रे पन्नुन की हत्या की साजिश पर जांच की मांग करने के लिए भारत के दौरा पर हैं।
इन सभी घटनाक्रमों का विश्लेषण करते हुए, यह सवाल उठता है कि, खालिस्तानी अलगाववाद के पतन के दशकों बाद भी इस जातीय-क्षेत्रीय अवधारणा की निरंतर खोज किसके लिए सबसे अधिक अनुकूल है? बब्बर खालसा इंटरनेशनल (बीकेआई) और अंतरराष्ट्रीय सिख युवा महासंघ (आईएसवाईएफ) जैसे संगठनों ने पश्चिमी देशों में अपनी गतिविधियां कैसे जारी रखीं? १९८४ कनिष्क फ्लाइट में बम धमाके जैसी आतंकवादी घटनाओं को फिर से एयर इंडिया की फ्लाइट्स में दोहराने की धमकियाँ पन्नुन खुलेआम जारी करता राहत है, इसके बावजूद इंटरपोल ने पन्नून के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी करने के भारत के अनुरोध को दो बार खारिज कर दिया है।
किसी भी जांच में इन सभी तथाकथित खालिस्तानी ‘नेताओं’ के पाकिस्तान से संबंध, और आपराधिक गिरोह-संबंधित गतिविधियों में उनकी संलिप्तता के भारी और निराशाजनक सबूतों को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। क्या पंजाब में प्रवासी पहचान और पाकिस्तान के साथ संबंध रखने वाले गैंगस्टर जानबूझकर अपने हिंसक राज्य-विरोधी अपराधों से मुक्ति पाने के साधन के रूप में अपनी सिख पहचान का इस्तेमाल कर रहे हैं।
इस साल की शुरुआत में, पूर्व खालिस्तानी नेता और दल खालसा के संस्थापक, जसवंत सिंह ठेकेदार ने भारत के खिलाफ पन्नुन द्वारा संचालित खालिस्तान जनमत संग्रह को एक दिखावा बताया, जिसका उद्देश्य लोगों को गुमराह करना है, और जो की “आई.एस.आई. के निर्देश पर” आयोजित किया गया था।
तीस वर्षीय लॉरेंस बिश्नोई, जो 2014 से जेल में बंद है, एक बढ़ते आतंकवादी, गैंगस्टर और ड्रग तस्कर सिंडिकेट के शीर्ष पर बना हुआ है। उसके मुख्य सहयोगियों में ‘सिद्धू मूसेवाला’ की हत्या का मास्टरमाइंड सतिंदरजीत सिंह उर्फ गोल्डी बराड़ भी शामिल है, जिसके इस समय फ्लोरिडा में होने का संदेह है। गैंगस्टर अर्शदीप गिल उर्फ अर्श दल्ला कनाडा में रहता है, वह खालिस्तान टाइगर फोर्स (केटीएफ) का समर्थक है और उसने कथित तौर पर भारत में आतंकवादी हमलों की योजना बनाने और आदेश देने में भाग लिया है, जोकि हाल ही में पंजाब के एक कांग्रेस नेता की हत्या में भी शामिल है। वह आतंक और हत्या के हमलों के लिए कई पाक-आईएसआई समर्थित केटीएफ मॉड्यूल बनाने में शामिल रहा है।
5 दिसंबर को ‘राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना’ के अध्यक्ष सुखदेव सिंह गोगामेड़ी की हत्या बिश्नोई के करीबी सहयोगी रोहित गोदारा द्वारा “राजस्थान राज्य में धार्मिक रूप से प्रेरित दंगे भड़काने” के उद्देश्य से की गई थी। नवंबर के अंत में अज्ञात बंदूकधारियों ने वैंकूवर में पंजाबी गायक और अभिनेता गिप्पी ग्रेवाल के घर पर गोलीबारी की। कनाडा के सरे शहर में रंगदारी कॉल के बढ़ते चलन से कारोबारी खतरा महसूस कर रहे हैं।
अत्यधिक संदिग्ध बात यह है कि लगभग एक दशक तक जेल में रहने के बावजूद बिश्नोई पंजाब से कनाडा तक फैले लक्षित हत्याओं, एक व्यापक जबरन वसूली रैकेट और नशीले पदार्थों की तस्करी को बड़े पैमाने पर कैसे नियंत्रित करने में सक्षम है? रिपोर्ट्स से पता चलता है कि बिश्नोई अपने सहयोगियों के साथ संपर्क करने के लिए वॉयस-ओवर, आईपी कॉल जैसी तकनीक का उपयोग करता है, जिससे कुछ जेल अधिकारियों से सहायता प्राप्त होने की संभावना का संकेत मिलता है। वास्तविकता यह है कि भ्रष्टाचार संगठित अपराध और आतंकवाद को बढ़ावा देने से जुड़ा है, इसे परिचालन फोकस के साथ सुरक्षा चिंता के रूप में ऊपर उठाया जाना चाहिए।
इस बीच भारत और कनाडा के बीच तनावपूर्ण संबंधों की छाया में गिरोह प्रतिद्वंद्विता और जबरन वसूली से जुड़ी गोलीबारी की घटनाओं में वृद्धि हुई है। पश्चिम में विशेष रूप से कनाडा में प्रवासी सिख समुदायों को नियमित रूप से आपराधिक गिरोहों से उत्पीड़न और हिंसा की धमकियों का सामना करना पड़ता है जो खालिस्तान के लिए जबरन वसूली और समर्थन की मांग करते हैं। प्रवासी सिख समुदाय जिन्होंने खालिस्तान समर्थक दुष्प्रचार का मुकाबला करने की कोशिश की है, उन्हें अब अपनी रक्षा के लिए आत्मनिर्भर नहीं छोड़ा जा सकता है। इस पृष्ठभूमि में, भारत और कनाडा की सुरक्षा एजेंसियों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे दोनों देशों में नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपना सहयोग बढ़ाएँ।

(वैशाली रणनीतिक और आर्थिक मसलों की विश्लेषक हैं। उन्होंने नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल सेक्रेटेरिएट के साथ लगभग एक दशक तक काम किया है)