लेखक-अरविंद जयतिलक
आज अयोध्या में भगवान श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा की पुण्यबेला में देश राममय है। अयोध्या में त्रेता युग उतर आया है। चतुर्दिक रामनाम की गूंज से प्रकृति का कण-कण ध्वनित और रोमांचित है। शताब्दियों की अधूरी आस पूरी हो रही है। सनातन संस्कृति के महा प्रतिमान और लोक जीवन के आराध्य भगवान श्रीराम भारत राष्ट्र की आत्मा हैं। आज भारत राष्ट्र की आत्मा की ही प्राण-प्रतिष्ठा है। इस पुनीत पुण्यबेला में लोकमंगलकारी राजीव नयन भगवान श्रीराम को शत-शत प्रणाम। कई सहस्रताब्दियों पहले अयोध्या में प्रभु श्रीराम का प्राकट्य हुआ था। तब निर्मल आकाश देवताओं के समूहों से भर गया था। गन्धर्वों का दल प्रभु श्रीराम के गुणों का गान कर रहे थे। आकाश में घमाघम नगाड़े बज रहे थे। नाग, मुनि और देवता प्रभु श्रीराम की स्तुति और आराधना में जुटे थे। आज अयोध्या समेत संपूर्ण राष्ट्र में वैसा ही राममय वातारण निर्मित है। रामनाम शब्द के प्रस्फुटन, कीर्तन, यज्ञ, हवन-पूजन से त्रेता युग चरितार्थ हो रहा है। भगवान श्रीरामलला का भव्य-दिव्य मंदिर छटाओं से अलंकृत है। आज श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा से भारत भूमि की शुभता-धन्यता पूर्ण हो रही है। प्रभु श्रीराम की प्राण-प्रतिष्ठा से एक बार फिर राष्ट्र राम-राज्य की ओर अग्रसर होगा। राष्ट्र के जन दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्त होंगे। सकल जन का कल्याण होगा। दुष्टों और समाज-राष्ट्रद्रोहियों और विरोधियों का पतन होगा। भगवान श्रीराम साक्षात परब्रह्म ईश्वर है। संसार के समस्त पदार्थों के बीज हैं। संसार के सूत्रधार हैं। वैदिक सनातन धर्म की आत्मा और परमात्मा हैं। सद्गुणों के भंडार हैं। उनकी प्राण-प्रतिष्ठा से भारत का भाग्योदय होगा। भारतीय जनमानस भगवान श्रीराम के जीवन पद्धति को अपना उच्चतर आदर्श और पुनीत मार्ग मानता है। शास्त्रों में भगवान श्रीराम को लोक कल्याण का पथप्रदर्शक और विष्णु के दस अवतारों में से सातवां अवतार कहा गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि जब-जब धरती पर अत्याचार बढ़ता है तब-तब भगवान श्रीराम धरा पर अवतरित होकर दुष्टों का संघार करते हैं। भगवान श्री राम का जीवनकाल एवं पराक्रम महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य रामायण के रुप में लिखा गया है। महान संत तुलसीदास ने भी भगवान श्रीराम पर भक्ति काव्य रामचरितमानस की रचना की है जो केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों की कई भाषाओं में अनुदित है। संत तुलसीदास ने भगवान श्रीराम की महिमा का गान करते हुए कहा है कि भगवान श्रीराम भक्तों के मनरुपी वन में बसने वाले काम, क्रोध, और कलियुग के पापरुपी हाथियों के मारने के लिए सिंह के बच्चे सदृश हैं। वे शिवजी के परम पूज्य और प्रियतम अतिथि हैं। दरिद्रता रुपी दावानल के बुझाने के लिए कामना पूर्ण करने वाले मेघ हैं। वे संपूर्ण पुण्यों के फल महान भोगों के समान हैं। जगत का छलरहित हित करने में साधु-संतो ंके समान हैं। सेवकों के मन रुपी मानसरोवर के लिए हंस के समान और पवित्र करने में गंगा जी की तरंगमालाओं के समान हैं। श्रीराम के गुणों के समूह कुमार्ग, कुतर्क, कुचाल और कलियुग के कपट, दंभ और पाखंड के जलाने के लिए वैसे ही हैं जैसे ईंधन के लिए प्रचण्ड अग्नि होती है। श्रीराम पूर्णिमा के चंद्रमा की किरणों के समान सबको शीतलता और सुख देने वाले हैं। श्रीराम क्षमा, दया और दम लताओं के मंडप हैं। संसार भी भगवान श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम मानता है। वे एक आदर्श भाई, आदर्श स्वामी और प्रजा के लिए नीति कुशल व न्यायप्रिय राजा हैं। भगवान श्रीराम का रामराज्य जगत प्रसिद्ध है। हिंदू सनातन संस्कृति में भगवान श्रीराम द्वारा किया गया आदर्श शासन ही रामराज्य के नाम से प्रसिद्ध है। रामचरित मानस में तुलसीदास ने रामराज्य पर भरपूर प्रकाश डाला है। उन्होंने लिखा है कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम के सिंहासन पर आसीन होते ही सर्वत्र हर्ष व्याप्त हो गया। समस्त भय और शोक दूर हो गए। लोगों को दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्ति मिल गयी। रामराज्य में कोई भी अल्पमृत्यु और रोगपीड़ा से ग्रस्त नहीं था। सभी जन स्वस्थ, गुणी, बुद्धिमान, साक्षर, ज्ञानी और कृतज्ञ थे। वाल्मीकि रामायण के एक प्रसंग में स्वयं भरत जी भी रामराज्य के विलक्षण प्रभाव की बखान करते हैं। गौर करें तो वैश्विक स्तर पर रामराज्य की स्थापना गांधी जी की भी चाह थी। गांधी जी ने भारत में अंग्रेजी शासन से मुक्ति के बाद ग्राम स्वराज के रुप में रामराज्य की कल्पना की थी। आज भी शासन की विधा के तौर पर रामराज्य को ही उत्कृष्ट माना जाता है और इसका उदाहरण दिया जाता है। संसार भगवान श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम मानता है। इसलिए कि उन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सत्य और मर्यादा का पालन करना नहीं छोड़ा। पिता का आदेश मान वन गए। भगवान श्रीराम ने मर्यादा के पालन के लिए राज्य, मित्र, माता-पिता और यहां तक कि पत्नी का भी साथ छोड़ा। इसीलिए भगवान श्री राम को कर्तव्यपरायणता के कारण भारतीय सनातन परिवार का आदर्श प्रतिनिधि कहा जाता है। उन्होंने लंकापति रावण का वध कर मानव जाति को संदेश दिया था कि सत्य और धर्म के मार्ग का अनुसरण कर जगत को आसुरी शक्तियों से मुक्त किया जा सकता है। राम रघुकुल में जन्में थे जिसकी परंपरा ‘रघुकुल रीति सदा चलि आई, प्राण जाई पर बचन न जाई’ की थी। इसीलिए पिता का वचन मानकर वे जंगल को गए। उन्होंने अपने पराक्रम से दण्डक वन को राछस विहिन किया और साधु-संतों की सेवा की। उन्होंने गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या का उद्धार किया तथा पराई स्त्री पर कुदृष्टि रखने वाले बालि का संघार कर संसार को स्त्रियों के प्रति संवेदनशील होने की सीख दी। जंगल में रहने वाली शबरी माता को नवधा भक्ति का ज्ञान दिया। उन्होंने नवधा भक्ति के जरिए दुनिया को अपनी महिमा से सुपरिचित कराया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि मुझे वहीं प्रिय हैं जो संतों का संग करते हैं। मेरी कथा का रसपान करते हैं। जो इंद्रियों का निग्रह, शील, बहुत कार्यों से वैराग्य और निरंतर संत पुरुषों के धर्म में लगे रहते हैं। जगत को समभाव से मुझमें देखते हैं और संतों को मुझसे भी अधिक प्रिय समझते हैं। उन्होंने शबरी को यह भी समझाया कि मेरे दर्शन का परम अनुपम फल यह है कि जीव अपने सहज स्वरुप को प्राप्त हो जाता है। भगवान श्रीराम सभी प्राणियों के लिए संवेदनशील थे। उन्होंने पंपापुर के वन्य जातियों को स्नेह से सीचिंत कर अपना मित्र बनाया। भगवान श्रीराम और वानरराज सुग्रीव की मित्रता आदर्श मित्रता का अनुपम उदाहरण है। पवनपुत्र हनुमान भगवान श्रीराम के अनन्य भक्त हैं। उन्होंने कहा है कि-कुलीन न होते हुए भी भगवान श्रीराम ने मुझ जैसे सभी गुणों से हीन जीव को अपनाया। अधम प्राणी जटायु को पिता तुल्य स्नेह प्रदान कर जीव से जंतुओं के प्रति मानवीय आचरण को भलीभांति निरुपित किया। समुद्र पर सेतु बांधकर वैज्ञानिकता और तकनीकी का अनुपम मिसाल कायम की। उन्होंने समुद्र के अनुनय-विनय पर निकट बसे खलमंडली का संघार किया। पत्नी सीता के हरण के बाद भी अपना धैर्य नहीं खोया। असुराज रावण को सत्य और धर्म के मार्ग पर लाने के लिए हरसंभव प्रयास किया। उसे समझाने के लिए अपने भक्त हनुमान और अंगद को उसके पास लंका भेजा। लेकिन दुष्ट स्वभाव वाले रावण को यह सब रास नहीं आया। स्वयं उसके भाई विभिषण ने माता सीता को प्रभु श्रीराम को सौंपने के लिए अनुनय-विनय किया। लेकिन रावण माता सीता को वापस करने के लिए तैयार नहीं हुआ। उल्टे उसने विभिषण को अपमानित कर लंका से निर्वासित कर दिया। विभिषण भगवान श्रीराम के शरणागत हुए। अंततः प्रभु श्रीराम ने असुरराज रावण का वध कर पृथ्वी को उसके अत्याचारों से मुक्त किया। उन्होंने लंका का राज्य विभिषण को सौंपकर माता जानकी के साथ अयोध्या लौट आए। सही अर्थों में इन लीलाओं के जरिए भगवान श्रीराम ने एक पुत्र, पिता, पति, भाई और एक राजा के तौर पर जगत को संदेश दिया कि एक आदर्श, निष्पक्ष और बंधुतापूर्ण आचरण के जरिए ही एक सभ्य और सुसंस्कृत समाज का निर्माण संभव है। आइए हम सभी ऐसे देदीप्यमान भगवान श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा की पुण्यबेला में राम-राज्य की स्थापना का व्रत लें।

(लेखक राजनीतिक व सामाजिक विश्लेषक हैं)