लेखक – डॉक्टर राजीव मिश्रा
एक प्रश्न देखता हूं… किसी सेलेब्रिटी या सफल व्यक्ति के संदर्भ में लोग पूछते हैं, उसने औरों के लिए क्या किया? कोई सफल खिलाड़ी है, संगीतकार है, बिजनेसमैन है… उसने जो किया अपने लाभ के लिए किया. उसने गरीबों के लिए क्या किया, बिना किसी लाभ की अपेक्षा के क्या किया? समाज को वापस क्या दिया?
सुनने में 99% लोगों को यह एक वैलिड प्रश्न लगता है. मुझे नहीं लगता. मुझे इसमें दो मूल assumption दिखाई देते हैं जिनसे मैं सहमत नहीं हूं : पहला, सफल व्यक्ति की सफलता जैसे किसी की अनुकम्पा का परिणाम हो ना कि उसके किसी कंट्रीब्यूशन का. आपको समाज को कुछ “वापस” करना है… अंग्रेजी में कहते हैं Giving Back. आपको जो मिला है वह आपको आपकी किसी सेवा, किसी योगदान के बदले नहीं मिला है… यूं ही मिल गया और अब उसे वापस करना है.
दूसरा assumption है कि दूसरों के लिए कुछ करना नैतिकता है, अपने सुख के लिए कुछ करना पाप है. यदि कोई कार्य सिर्फ अपने सुख के लिए किया गया…बिना किसी से कुछ लिए, कुछ छीने, दूसरे को दुख पहुंचाए भी यदि आपने अपने सुख के लिए कुछ कर लिया तो वह अनैतिक हो गया. आपसे पूछा जायेगा, यह तो आपने अपने लिए किया…औरों के लिए क्या किया?
किसी के पास कुछ है जो दूसरे से अधिक है तो वह स्वतः उसका देनदार बन जाता है जिसके पास वह नहीं है. अभाव अपने आप में एक क्लेम बन जाता है, उपलब्धि देनदारी बन जाती है. उपलब्धि की अभाव के लिए यह देनदारी नैतिकता कहलाती है, अभाव की उपलब्धि के प्रति यह जलन, यह हिंसा एक हिस्टोरिकल विक्टिमहुड बन जाता है. दुनिया में जो था वह हमेशा से था, सबका था… और आज आपके पास जो दूसरों से अधिक है वह किसी दूसरे के हिस्से का है, अन्यायपूर्ण है, अनैतिक है… किसी ने अपनी बुद्धि से, श्रम से, उद्यम से कुछ क्रिएट किया उसकी क्रिएटिविटी का कोई मूल्य ही नहीं है..
आपने कुछ लिया तो बदले में कुछ दें…बिना मूल्य चुकाए कुछ ना लें…यह नैतिकता है, यह सभ्यता का मूल भाव है. इसलिए कैपिटलिज्म को मैं सभ्यता का आदि विंदु मानता हूं. आपके द्वारा अर्जित सम्पदा यदि नैतिक मार्ग से आई है तो assume किया जाना चाहिए कि आपने जो पाया आप उसका मूल्य चुका चुके हैं. आपने अपना नैतिक कर्तव्य निभाया है. उसके आगे नैतिक कर्तव्य का दावा मुझे सही नहीं लगता. आपने कुछ दिया, फिर उसके बदले में आपको कुछ मिला…अब परिणामस्वरूप जो आपकी सम्पदा है वह आपकी है…आप निश्चिंत भाव से किसी भी अपराधबोध से मुक्त होकर उसका सुख भोगने के लिए स्वतंत्र हैं.
आपके पास दूसरे से कम है तो दूसरे की संपदा पर आपका कोई क्लेम बनता है... यह विचार, यानि समाजवाद, सभ्यता द्वारा की गई आत्महत्या है.
हां, समाज के प्रति दायित्व का एक और गणित है.. वह गणित है भविष्य का. भविष्य में निवेश का. क्या प्रत्येक व्यक्ति सदा सर्वदा समाज के perpetual debt में होता है? क्या हम अपना कर्ज चुकता करते रहते हैं? या आप समाज के लिए कुछ करेंगे तो उसे भविष्य के प्रति निवेश के रूप में देखना चाहिए?
अभाव की उपलब्धि पर, दरिद्रता की संपन्नता पर यह दावेदारी, यह क्लेम सबसे अधिक उस निवेश को नुकसान पहुंचाता है. आप एक अनजाने, अनबूझे अपराध बोध से ग्रस्त एक अन्यायपूर्ण क्लेम का कर्ज चुकाने में लग जाते हैं जबकि आपको उस संसाधन को समाज में, भविष्य में निवेश करना था. समाज के लिए कुछ करने का अवसर खोजें, अवश्य करें… पर दूसरों के लिए नहीं…अपने लिए, अपनी संततियों के लिए. किसी का कर्ज चुकाने के लिए नहीं, भविष्य में निवेश के लिए।

(लेखक लंदन में प्रख्यात चिकित्सक हैं)