लेखक -आरएल फ्रांसिस
पिछले कुछ दशकों में भारत के आंतरिक मामलों में वेटिकन का हस्तक्षेप बढ़ा है, भारत के कैथोलिक चर्च का पूरा संचालन वेटिकन और कैनन लॉ के दिशा-निर्देशों के तहत हो रहा है। वर्तमान में पोप ही भारत में बिशपों को नियुक्त करते हैं। यदि वेटिकन भारतीय कैथोलिक चर्च में सुधार लाने तथा उसे मानवतावाद के अनुरूप ढालने में विफल रहा है, तो उसे कराेड़ाें दलित ईसाइयों की आस्था के साथ विश्वासघात करने के लिए जिम्मेदार क्यों नहीं ठहराया जाना चाहिए?
एक और भारतीय चर्च सरकार से दलित ईसाइयों के लिए धार्मिक आधार पर आरक्षण की मांग कर रहा है। वह सरकार पर दबाव डालने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं का भी उपयोग कर रहा हैं। इसी महीने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति ने दलित ईसाइयों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की चर्च की मांग को उचित ठहराया है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार समिति ने मांग की है कि दलित ईसाइयों को हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म के दलितों के समान अधिकार दिए जाएं ताकि दलित ईसाइयों का राजनीतिक, आर्थिक और संवैधानिक सशक्तिकरण किया जा सके।
यूएनएचआरसी की रिपोर्ट आने के कुछ दिनों बाद कैथोलिक चर्च के शीर्ष नेतृत्व (कैथोलिक बिशप कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (सीबीसाई) ने पिछले शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर उन्हें ईसाइयों को सुरक्षा देने, धर्मांतरण विरोधी कानूनों के दुरुपयोग काे राेकने, दलित ईसाइयों को भी अन्य दलितों की तरह अनुसूचित जाति का दर्जा देने और पोप की भारत यात्रा में तेजी लाने का आग्रह किया है।
दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि आज चर्च के अंदर दलित ईसाइयों की स्थिति इतनी दयनीय हो गई है कि चर्च का शीर्ष नेतृत्व हर स्तर पर उनका शोषण – उत्पीड़न कर रहा है। उनके जीवन स्तर को सुधारने की जगह चर्च अपने साम्राज्यवाद के विस्तार में व्यस्त है। विशाल संसाधनों से लैस चर्च दलित ईसाइयों की स्थिति से पल्ला झाड़ते हुए उन्हें सरकार की दया पर छोड़ना चाहता है। दरअसल चर्च का इरादा एक तीर से दो शिकार करने का है। भारतीय चर्च कुल ईसाइयों की आबादी का आधे से ज्यादा अपने अनुयायियों को अनुसूचित जातियों की श्रेणी में रखवा कर वह इनके विकास की जिम्मेदारी सरकार पर डालते हुए देश के हिन्दू दलितों को ईसाइयत का जाम पिलाने का ताना-बाना बुनने में लगा है।
4 जुलाई को, तमिलनाडु में दलित ईसाइयों ने आर्कबिशप जॉर्ज एंटोनीसामी (Archbishop George Antonysamy) कैथोलिक बिशप्स कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया (सीबीएसआई), शीर्ष चर्च नेतृत्व और भारत में वेटिकन के राजदूत को एक पत्र लिखकर कैथोलिक चर्च में हर स्तर पर उनके अधिकारों के उल्लंघन और उत्पीड़न की ओर ध्यान आकर्षित किया है। दलित क्रिश्चियन लिबरेशन मूवमेंट के एम. मैरी जॉन की ओर से लिखे गए पत्र में चर्च के शीर्ष नेतृत्व और आर्कबिशप जॉर्ज एंटोनीसामी पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं,- कि किस तरह चर्च नेतृत्व दलिल ईसाइयाें के साथ गुलामाें जैसा व्यवहार कर रहा है। वहीं तमिलनाडु में दलित समुदाय के पादरियों को चर्च संस्थानों में उचित जगह नहीं दी जा रही है। बिशप काउंसिल (टीएनबीसी) के अध्यक्ष और सीसीबीआई के उपाध्यक्ष आर्कबिशप जॉर्ज एंटोनीसामी हद से ज्यादा जातिवाद फैला रहे हैं।
तमिलनाडु में दलित ईसाई मांग कर रहे हैं कि उन धर्मप्रांतों में दलित बिशप नियुक्त किए जाएं जहां वे बहुसंख्यक हैं। वर्तमान में, तमिलनाडु में 17 बिशपों में से एक दलित बिशप है। जबकि वेल्लोर धर्मप्रांत में 90% से अधिक कैथोलिक दलित हैं और वे सही मायने में उम्मीद करते हैं कि यहां कम से कम एक दलित बिशप नियुक्त किया जाना चाहिए जो उनका प्रतिनिधित्व करे, उनके कल्याण को समझे और उनकी देखभाल करे।
दलित ईसाइयों में इस बात को लेकर भी गुस्सा है कि वेटिकन ने मार्च 2022 में पांडिचेरी-कुड्डालोर में आर्कबिशप और मई – जून 2021, सितंबर 2023, जनवरी 2024, में क्रमशः सेलम, तिरुचिरापल्ली, शिवगंगा, कुंभकोणम, कुझीथुरई में गैर-दलित बिशप/आर्कबिशप ही नियुक्त किए, उनमें से कोई भी दलित बिशप या आर्कबिशप नहीं है। ऐसा क्यों है? वेल्लोर डायसिस जहाँ दलित बिशप की मृत्यु हुए 4 वर्षों से अधिक का समय हो गया है वहा जानबूझकर बिशप नियुक्त नहीं किया गया।
तमिलनाडु के दलित ईसाइयों ने आरोप लगाया है कि भारतीय चर्च का शीर्ष नेतृत्व बिशपाें की नियुक्ति के मामले में भारत में वेटिकन के राजदूत अपोस्टोलिक नुनसियो, आर्कबिशप लियोपोल्डो गिरेली (Archbishop Leopoldo Girelli) को गुमराह कर रहा है। पिछले कुछ दशकों में भारत के आंतरिक मामलों में वेटिकन का हस्तक्षेप बढ़ा है, भारत के कैथोलिक चर्च का पूरा संचालन वेटिकन और कैनन लॉ के दिशा-निर्देशों के तहत हो रहा है। वर्तमान में पोप ही भारत में बिशपों को नियुक्त करते हैं। यदि वेटिकन भारतीय कैथोलिक चर्च में सुधार लाने तथा उसे मानवतावाद के अनुरूप ढालने में विफल रहा है, तो उसे कराेड़ाें दलित ईसाइयों की आस्था के साथ विश्वासघात करने के लिए जिम्मेदार क्यों नहीं ठहराया जाना चाहिए?

(लेखक पुवर क्रिश्चियन लिबरेशन मूवमेंट के नेशनल प्रेसिडेंट हैं और यह उनके निजी विचार हैं)