लेखक -सुभाषचंद्र
अदालत में चल रहे मुकदमों में देरी के लिए कहीं तो जिम्मेदारी तय होनी चाहिए,
किसी चीफ जस्टिस ने आज
तक कोई कठोर और त्वरित कदम क्यों नही उठाया है यह प्रश्न न्यायप्रिय देश वासियों को प्रतिदिन मथ रहा है!
यह लेख हमेशा की तरह बड़ी जिम्मेदारी से लिख रहा हू,अनेक मामलों में अदालतें कुम्भकरण की नींद सो जाती हैं जिसके पीछे Judicial Fraternity और भ्रष्टाचारियों के बीच शायद कोई अदृश्य स्थापित गठजोड़ एक कारण हो सकता है ,मैं ऐसे दो मामलों पर चर्चा करूंगा।
नेशनल हेराल्ड का केस डॉ .सुब्रमण्यम स्वामी ने सोनिया गांधी, और राहुल गांधी समेत कई लोगों के खिलाफ वर्ष 2012 में दर्ज किया जिसमें सभी आरोपी जमानत पर हैं और कछुए की चाल से केस पटियाला हाउस कोर्ट में चल रहा है।
2021 में 9 साल बाद डॉ. स्वामी ने ट्रायल कोर्ट में अर्जी लगाई कि उन्हें सोनिया, राहुल समेत सभी आरोपियों को Prosecute करने के लिए Evidence lead करने की अनुमति दी जाए लेकिन ट्रायल कोर्ट ने 11 फरवरी, 2021 को उनकी अर्जी खारिज कर दी यह कहते हुए कि,
“Dr Swamy’s application under section 244 of CrPc to lead evidence would be considered after his examination in the case was over”.
डॉ. स्वामी ने कुछ गवाहों को summon करने की मांग की थी जिसमें सुप्रीम कोर्ट के Registry Officer समेत कई अन्य अधिकारी शामिल थे जिनसे डॉ. स्वामी कुछ दस्तावेज़ों को सत्यापित भी करवाना चाहते थे।
यह कोई बहुत बड़ा मामला नहीं था जिस पर हाई कोर्ट को बहुत समय लगना चाहिए था।
डॉ. स्वामी ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट चले गए और 22 फरवरी, 2021 को हाई कोर्ट ने सोनिया और राहुल गांधी, AICC सचिव ऑस्कर फर्नांडीज़ (मौत हो चुकी अब), सुमन दुबे, सैम पित्रोदा और Young India को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा था और ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी।
यह छोटा सा मामला हाई कोर्ट ने साढ़े 3 साल तक हल नहीं किया और अब 22 जुलाई, 2024 को जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने सोनिया और राहुल गांधी और डॉ. स्वामी को निर्देश दिया कि वे 4 हफ्ते में Written note on the arguements दाखिल करें और उसके बाद दाखिल करने पर 15000 रुपए की cost लगेगी, इसके साथ बहस के लिए 29th october, 2024 की तारीख लगा दी।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस RM Lodha की बेंच ने 10 मार्च, 2014 को Lower Courts को आदेश दिया कि सांसदों और विधायकों के Criminal Cases के फैसले एक वर्ष में कर दिए जाएँ, देरी के कारण हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को बताए जाएं और वे चाहें तो एक वर्ष की समय सीमा बढ़ा सकते हैं। बेंच ने यह भी कहा कि MPs/MLAs गंभीर आरोप होने पर भी देरी से फैसलों के कारण मौज करते हैं।
नेशनल हेराल्ड केस 2012 में दायर होने के बाद यदि 2014 चुनाव से पहले सजा हो जाती तो सोनिया और राहुल गांधी 10 वर्ष से सांसद न होते जैसे लालू यादव नहीं है क्योंकि डॉ. सुब्रमंयंम स्वामी का दावा है दोनों माँ-बेटे सजा से बच नहीं सकते।
10 वर्ष में दोनों पर सरकारी ख़ज़ाने से कितना पैसा खर्च हुआ होगा क्या इसका अंदाजा पटियाला हाउस ट्रायल कोर्ट के जज लगा सकते हैं क्या दिल्ली हाई कोर्ट ने इस देरी के लिए कुछ कदम उठाया और क्या उसके Chief Justices की सहमति से ये मुकदमा 12 साल से चल रहा है, इनमे कई तो रिटायर हो गए और कुछ सुप्रीम कोर्ट में बैठ गए।
9 साल बाद एक मुद्दा डॉ. स्वामी ने उठाया और ट्रायल कोर्ट से ख़ारिज होने के बाद हाई कोर्ट में 3 लटका रहने के बाद भी 3 महीने की तारीख मिली।
कब हाई कोर्ट फैसला करेगा और कब ट्रायल पूरा होगा, ईश्वर ही मालिक है। लेकिन पूरी Judicial Fraternity मौज में है और इसकी वजह से judiciary पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने के आरोप लग सकते हैं!
इस आरोप को सिरे से गलत साबित करने का सिर्फ़ एक ही रास्ता है कि विधुत गति से भ्रस्टाचार में लिप्त हस्तियों को कठोरतम सजा सुना कर जेल भेजा जाये।
दूसरा केस एक दो दिन में प्रस्तुत करूंगा जो 2G का है, दिल्ली हाई कोर्ट में 6 साल से लटक रहा है।
(लेखक उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं और यह उनके निजी विचार हैं )