लेखक -ओम लवानिया
“प्रतिभावान पुत्र, पिता की असफलताओं की सीढ़ियाँ चढ़कर सफलता को अपने समक्ष झुकाने की क्षमता रखता”
नेटफ्लिक्स की डॉक्युमेंट्री मॉर्डन मास्टर्स में लेखक केवी विजेयंद्र कहते थे कि ऐसे दिन भी थे जब शाम को पता नहीं था सुबह क्या खाएँगे, क्योंकि इनकी शुरुआत घोस्ट राइटर के तौर पर हुई थी। केवी और बड़े भाई शिव शक्ति की जोड़ी थी, इसी परिवेश में राजमौली का बचपन बीता और फिल्मी कीड़ा पीछे पड़ गया या कहे विरासत में मिला।
केवी को फ़िल्म मेकर राघवेंद्र राव ने पहला आधिकारिक ब्रेक दिया और जानकी रामूडू में बतौर लेखक आये।
राघवेंद्र के सानिध्य में राजमौली का प्रशिक्षण हुआ तिस पर वे स्पष्ट थे कि उन्हें कैसे कहानी सुनानी है, सपना सिनेमा बैनर के तले स्टूडेंट नंबर 1 दी गई। जूनियर एनटीआर हीरो थे, सब निर्देशन के कॉलम की तरफ देख रहे थे। राघवेंद्र राव ने घोषणा की, फ़िल्म में निर्देशन राजमौली का रहेगा और मेरा सुपरविजन। तब निर्माता और हीरो चौंक गए। राजमौली कैसे फ़िल्म निर्देशित कर सकता है ये तो सीरियल निर्देशक है तब तक राजमौली सारथी टाइटल में टीवी सीरियल बना चुके थे।
एनटीआर जूनियर कहते है, राजमौली के पास यामा बाइक थी वे राघवेंद्र के पास जाते, सीक्वेंस समझाते और फिर परमिशन लेकर शूट करते। ऐसे फ़िल्म बनी और रिलीज़ हुई, कमर्शियल हिट रही। किंतु इससे राजमौली को फेम नहीं मिला क्योंकि राघवेंद्र राव बड़े नाम के नीचे दब गया।
दरअसल, राजमौली के मन का कुछ न था बस फ़िल्म में ब्रेक भर था। न कहानी उनकी थी, न किरदार और न स्क्रीन प्ले, ऐसे में रबर स्टैम्प भर थे। यक़ीनन अनुभव अवश्य मिला।
दूसरी फ़िल्म सिम्हाद्री देरी से मिली, इसमें भी पिछला कॉम्बिनेशन रिपीट किया गया। वाक़ई ये प्योर राजमौली की फिल्म थी। इसकी पूरी डोर इनके हाथों में थी।
सिम्हाद्री ही पहली सीढ़ी थी, इसमें पिता केवी लेखक, स्क्रीन प्ले और निर्देशन में राजमौली, इसी फ़िल्म के साथ अपने पिता की असफलताओं पर ब्रांड स्टिकर चस्पा किया।
फ़िल्म बाय राजमौली….क्रेडिट में निर्माता ने देखा, तो भड़क उठे, फिल्म पूरी यूनिट की होती है तुम्हारे अकेले की कैसे हुई। राजमौली डर गये, अब क्या होगा।
फ़िल्म हिट हुई।
राजमौली की फिल्मी यात्रा को देखें, पहले निर्माता भड़क उठा था, राजमौली ने सोचा मेरे अकेले की फ़िल्म कैसे हो सकती है। स्टीकर हटा देता हूँ, तो निर्माता कहते है नहीं, कतई नहीं, वरना डिस्ट्रिब्यूटर्स समझेंगे, ये राजमौली की फ़िल्म नहीं है।
दिस इज राजमौली ब्रांड।
राजमौली को अच्छे से मालूम था कब रिस्क लेना है। मगधीरा, मक्खी पॉयलट कंटेंट थे जब साउथ ब्लॉक में उच्चस्तरीय वीएफएक्स इंट्रोड्यूस हुए। इस स्तर के साथ निर्माताओं को भरोसा था और राजमौली को बजट देने में कोई हिचक न थी।
बाहुबली शुरुआत भर थी।
करण जौहर हैरान थे कि साउथ ब्लॉक के तेलुगू रीजन में 200 करोड़ की वॉर फ़िल्म बन रही है। धर्मा को पैन भारत के लिए साथ लिया गया।
सोचिए, पहले दिन बाहुबली फ्लॉप थी, नेगेटिव रिव्यू थे। राजमौली और निर्माता चिंतित थे, क्योंकि हैवी बजट था। दूसरे-तीसरे दिन फ़िल्म उठी और पूछा कट्टप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा। बाकी इतिहास है।
राजमौली के भीतर सिर्फ फ़िल्म मेकिंग जुनून, विज़नरी स्केल और परफेक्शनिस्ट है। इसमें राजमौली की पूरी फैमिली साथ देती है, सबका इमोशन जुड़ा है और इनकी कहानियों व किरदारों में कनेक्ट होता है। सभी कहानी व किरदार के साथ इनवॉल होते है क्योंकि परिवार ही क्रू मेंबर्स है। बाहुबली में बजट कम खर्च हो, परिवार ने काफी साथ दिया और आगे भी देंगे।
राजमौली का अपने कलाकारों के साथ गजब बाण्डिंग रहती है लेकिन पर्दे के पीछे, कैमरे पर कोई दया नहीं, इसलिए इनका साफ मत है कि कलाकार इनके किरदारों के साथ समय दें, उन्हे समझें और फिर दर्शकों के बीच राखें। पहले डार्लिंग प्रभास, फिर एनटीआर जूनियर और राम चरण, इन दिनों महेश बाबू राजमौली के किरदार के साथ व्यस्त है।
पुत्र अपने पिता की लिखी कहानियों व किरदारों को अपने विजन में सिनेमाई पटल पर रख रहा है और फिल्में बॉक्स ऑफिस पर उच्चाई छू रही है।
राजमौली ने आंध्र के छोटे से ज़िले से किरदारों को अपने विज़न में देखना शुरू किया, हैदराबाद ने स्केल को थोड़ा बड़ा किया, मक्खी ने देश भर में उत्सुकता बढ़ाई और बाहुबली से पैन भारत चढ़ाई कर दी। आरआरआर से वैश्विक स्तर पर नाटू-नाटू पर थिरकने को मजबूर कर दिया।
ऑस्कर हॉल में एमएम किरवानी की आँखों में खुशी के अश्रुओं में पीछे राजमौली थे ऐसा खुलासा उनके हाव-भाव ने किया था।
(लेखक फ़िल्मी समीक्षक हैं)