लेखक -ओम लवानिया
राजकुमार गुप्ता की जियो सिनेमा के बिनाह पर नई पेशकश पिल से किस्सा याद आया कि लॉकडाउन में कुछ समय के लिए सरकारी अस्पताल से जुड़ा था।
उन दिनों बुधवार के दिन डायबीट्ज यानी शुगर के एमडी डॉक्टर्स बैठते थे।
मेडिकल के फार्मा डिपार्टमेंट में एमआर डॉक्टर्स के खूब चक्कर लगाते है। गिफ्ट्स, ऑफिस खर्च ब्ला ब्ला, ऑफर देते रहते है। ताकि उनकी कंपनी की मेडिसिन डॉक्टर्स अपने रोगियों को सजेस्ट करें, और करते भी थे।
डायबीटीज डॉक्टर की ओपीडी 100-150 रोगियों तक बैठती थी। इसी संख्या में रोगी वेटिंग में रह जाते थे, उन्हें प्राइवेट सुविधा दी जाती थी। इलाज एक डॉक्टर से फिक्स है फायदा भी हो रहा है डॉक्टर जल्दी बदलते नहीं है।
डायबिटीज पैशेंट, सुगर से इतर स्किन ओपीडी में दिखाई दिये, तब उनसे पूछा कि क्या हुआ, वैसे तो नार्मल था सुगर के साथ स्किन भी दिखा सकते है। फिर भी पूछ लिया, क्योंकि हर बुधवार आते थे। वे कहते है डॉक्टर्स साहब ने नई दवाई लिखी, तो पूरे खुजली हो रही है। इसलिए उन्होंने नई दवा बंद कर दी और पुरानी शुरू की है। साथ ही स्किन में दिखाने को कहा है।
पिल देखने के बाद यकायक सीनेरियो याद आ गया। हालाँकि इसका आईडिया पहले से था। फिर इतना डिटेल न था। कि ड्रग कंपनीज अपने ड्रग का ट्रायल डॉक्टर्स के रेगुलर रोगियों पर करती है इसके एवज में डॉक्टर्स को भारी ऑफर्स होते है। विदेशी हॉलीडेज निकलते है, उनका क्या जाता है पैशेंट के खुजली हुई तो स्किन है। उल्टी-दस्त में फिजिशियन है।
रोगी का अपने डॉक्टर्स पर इतना भरोसा है वे भगवान से कम थोड़े है। जो दवाई देंगे अमृत ही होगा और कहावत भी साथ जुड़ी है, “अच्छी दवाई कड़वी होती है”।
ड्रग इंडस्ट्री सिंडिकेट है और बहुत खतरनाक मामला है।
इसमें डॉक्टर बासु कैंसर के बारे में व्याख्या देते है, ज्यादा भयावह है। माना कि डॉक्टर्स काफी खर्च के बाद निकलते है लेकिन इसके साथ अपना जमीर बेच आते है। सभी डॉक्टर्स के लिये नहीं है किंतु इसमें अधिकतर शामिल है।
ज्यादा विवाद जुड़ जाये तो आयुर्वेद को बदनाम कर देते है।
सभी को थ्रिलर पिल अवश्य देखनी चाहिए और सबको सुझानी चाहिए।
(लेखक फ़िल्मी समीक्षक हैं)