(मुकेश सेठ)
(मुंबई)
√ गलवान घाटी संघर्ष के बाद अब तल्ख तेवर को त्याग भारत चीन मतभेदों को दूर करने के लिए बढ़ाएंगे कदम
गुरुवार को रूस में NSA अजीत डोभाल और चीनी विदेशमंत्री वांग ई के बीच हुई बातचीत में मतभेदों को खत्म करने पर बनी सहमति
√ जिनेवा में विदेशमंत्री एस जयशंकर नें कहा चीन से ७५ प्रतिशत विवाद का हल हो चुका है
√ दोनों देश मानते हैं कि शांति और विकास के लिए दोनों देशों के बीच संबंधों का मजबूत होना जरूरी है कहा चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग नें
चीन की विस्तारवादी साजिशों को असफल कर गलवाँन घाटी में भारतीय सेना नें जबसे चीनी सैनिकों को बुरी तरह से मारने के साथ ही उनको वापस उनकी हद में धकेला था तब से ही भारत और चीन के रिश्तों में तल्खी की बर्फ़ जम चुकी थी।
किन्तु अब विश्व की दो महाशक्तियों में शामिल भारत और चीन के सर्द रिश्ते दोस्ती की गर्माहट से रवानी पर चढ़ने जा रहे हैं।
गलवाँन घाटी के संघर्ष के पश्चात लंबे कूटनीतिक कोशिशों के परिणाम स्वरूप दोनों देशों के बीच कई बैठकें हो चुकी हैं जिसके क्रम में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में चीन नें पूर्वी लद्दाख़ के चार प्वाइंट से अपनी सेना को पीछे हटा लिया है।
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्ष सलाहकार अजीत डोभाल ने लगातार इसके लिए पहल किए हैं। अब चीन की तरफ से भी जो बयान सामने आए रहे हैं उससे रिश्ते सुधरने के संकेत मिल रहे हैं।
चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने शुक्रवार को कहा कि पूर्वी लद्दाख के चार क्षेत्रों में सेनाओं के बीच तनातनी कम हुई है। रूस में भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग ई के बीच गुरुवार को ब्रिक्स देशों के वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक से इतर हुई बैठक में दोनों देश द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती देने के लिए सहमत हैं।
चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि दोनों देशों के प्रतिनिधियों के बीच सीमा मसले को लेकर दर्ज किए गए सुधार पर भी चर्चा हुई है। मिंग से जब पूछा गया कि पूर्वी लद्दाख में दोनों देशों की सेनाओं के बीच तनातनी के बाद बीते चार वर्षों से द्विपक्षीय संबंध सुस्त पड़े हैं, क्या इसे नई गति मिल सकती है। सवाल के जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि दोनों देशों की सेनाओं को सीमा पर चार क्षेत्रों में शांति बनाए रखने का अहसास हुआ है। सीमा पर अभी स्थिति स्थिर है।
डोभाल और वांग की बैठक को लेकर उन्होंने कहा कि दोनों देश मानते हैं कि शांति और विकास के लिए दोनों देशों के बीच संबंधों का मजबूत होना जरूरी है। मालूम हो, चीन का ये बयान तब आया है जब भारतीय विदेशमंत्री एस जयशंकर ने एक दिन पहले जिनेवा में कहा था कि चीन से 75 फीसदी विवाद का हल हा चुका है।
चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग से शुक्रवार को प्रेस वार्ता के दौरान पूछा गया कि क्या दोनों देश पूर्वी लद्दाख में सैन्य गतिरोध के कारण चार साल से अधिक समय से द्विपक्षीय संबंधों पर जमी बर्फ को हटाने के करीब हैं? इसपर माओ ने कहा कि दोनों सेनाओं ने चार क्षेत्रों से वापसी की है और सीमा पर स्थिति स्थिर है। उन्होंने कहा कि चार जगहों पर सैनिक पीछे हटे हैं। प्रवक्ता ने कहा, “हाल के वर्षों में, दोनों देशों की अग्रिम मोर्चे पर तैनात सेनाओं ने चीन-भारत सीमा के पश्चिमी क्षेत्र में चार बिंदुओ से पीछे हटने का काम पूरा कर लिया है, जिसमें गलवान घाटी भी शामिल है। चीन-भारत सीमा पर स्थिति आम तौर पर स्थिर और नियंत्रण में है।”
उनकी यह टिप्पणी विदेश मंत्री एस जयशंकर द्वारा जिनेवा में दिए गए बयान के एक दिन बाद आई है। जयशंकर ने कहा था कि चीन के साथ सैनिकों की वापसी से जुड़ी समस्याओं का लगभग 75 प्रतिशत समाधान हो गया है, लेकिन बड़ा मुद्दा सीमा पर बढ़ता सैन्यीकरण है।
स्विट्जरलैंड में थिंकटैंक ‘जिनेवा सेंटर फॉर सिक्योरिटी पॉलिसी’ के साथ संवाद सत्र में जयशंकर ने कहा कि जून 2020 में गल्वान घाटी में हुए संघर्षों ने भारत-चीन संबंधों को समग्र तरीके से प्रभावित किया। उन्होंने कहा कि कोई भी सीमा पर हिंसा के बाद यह नहीं कह सकता कि बाकी संबंध इससे अछूते हैं। विदेश मंत्री ने कहा कि समस्या का समाधान ढूंढ़ने के लिए दोनों पक्षों के बीच बातचीत चल रही है।
उन्होंने कहा, “अब वो बातचीत चल रही है। हमने कुछ प्रगति की है। आप मोटे तौर पर कह सकते हैं कि सैनिकों की वापसी संबंधी करीब 75 प्रतिशत समस्याओं का हल निकाल लिया गया है।” जयशंकर ने एक सवाल के जवाब में कहा, “हमें अब भी कुछ चीजें करनी हैं।”
आपको बता दें कि भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच मई 2020 से गतिरोध जारी है और सीमा विवाद का पूर्ण समाधान अभी तक नहीं हो पाया है। हालांकि, दोनों पक्षों ने टकराव वाले कई बिंदुओं से अपने-अपने सैनिकों को वापस बुला लिया है। जून 2020 में गलवान घाटी में हुई भीषण झड़प के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में गिरावट आई। यह दशकों के बाद दोनों पक्षों के बीच हुआ सबसे गंभीर सैन्य संघर्ष था।
भारत का स्पष्ट रुख है कि जब तक सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति नहीं होगी, चीन के साथ उसके संबंध सामान्य नहीं हो सकते। गतिरोध को दूर करने के लिए दोनों पक्षों के बीच अब तक कोर कमांडर स्तर की 21 दौर की वार्ता हो चुकी है।
कुल मिलाकर एशिया की दो आर्थिक और सामारिक शक्तियों के बीच तल्खी की जमी बर्फ़ को आपसी कूटनीतिक बातचीत और सहमति के साथ आहिस्ता आहिस्ता ही सही रिश्तों में सामंजस्य की गर्माहट से भारत और चीन दोनों देशों को बेहतर अवस्था मे ले जायेंगे।
इससे एशिया के साथ ही विश्व को भी लाभ मिलना तय है क्योंकि दोनो राष्ट्र अपनी अपनी खूबियों के चलते दुनिया की जरूरत बने हुए हैं।