लेखक- राघवेंद्र पाठक
लोकसभा की 100 सीटें जीतने के बाद भी कांग्रेस नेता राहुल गाँधी को विपक्ष अब अपना नेता मानने को तैयार नहीं है। इंडिया गठबंधन के उनके सहयोगी राहुल की नकारात्मक राजनीति से आजिज आ चुके हैं। जम्मू कश्मीर, हरियाणा और महाराष्ट्र में उनकी पार्टी के खराब प्रदर्शन ने भी उनकी लोकप्रियता प्रभावित की है। विभिन्न राज्यों में हुए उपचुनावों में आए कमजोर परिणामों ने भी उनका तेज धूमिल किया है। इसके उलट ममता बनर्जी विपक्ष की पसंद बनतीं जा रहीं हैं।
राहुल गाँधी बंगलादेश में हिंदुओं की दुर्दशा पर एक शब्द बोलने को तैयार नहीं हैं। डीप स्टेट और जॉर्ज सोरोस के साथ राष्ट्र विरोधी गठबंधन पर लग रहे आरोपों पर कुछ नहीं बोल रहे लेकिन मोदी और अडाणी पर रोज बोलते हैं।
इससे पहले चौकीदार चोर है या राफेल डील में करप्शन संबंधी आरोप वे लगाते रहे और साबित न कर पाने पर इन मुद्दों पर चुप्पी साधने पर विवश हुए।
उनका फोकस केवल मुस्लिम वोटरों पर है। उन्हें आदिवासी और कन्वर्ड होकर ईसाई बने या साजिशन हिंदुओं को ईसाई बना दिए गए मणिपुर की खास चिंता है जिस पर अमेरिका का स्टेट्स डिपार्टमेंट और राहुल की बोली और चिंता समान दिखाई देती है।
राजद, सपा, उद्धव शिव सेना, शरद पवार की एनसीपी आदि पार्टियां ममता बनर्जी को इंडिया गठबंधन की नेता के तौर पर स्वीकार करने को तैयार है। हाल में हुए पश्चिम बंगाल में विधानसभा उप चुनाव में शानदार प्रदर्शन ने ममता बनर्जी का आत्मविश्वास बढ़ाया है, जिसमें उन्होंने भाजपा की जीती हुईं सीटें भी छीन लीं।
भाजपा का विकल्प तलाश रहे ऐसे मतदाताओं को आज ममता बनर्जी का पश्चिम बंगाल विधानसभा में किया गया संबोधन अपील कर सकता है जिसमें उन्होंने लोगों से कहा कि “वे बंगलादेश में दिए जा रहे बयानों से परेशान न हों।” उन्होंने जनता को यकीन दिलाया कि “पश्चिम बंगाल हमेशा केंद्र के फैसले का समर्थन करेगा।”
ममता का बदला रूप जनता को जरूर पसंद आएगा। देश डीप स्टेट और भारत विरोधी गतिविधियों में अक्सर संलग्न रहने वाले अमेरिका के स्टेट्स डिपार्टमेंट की भाषा बोलने वाले किसी भी व्यक्ति को अपना नेता नहीं मान सकता।
विपक्ष की नकारात्मक राजनीति को भी जनता ने नकार दिया है, जिसमें हिन्दू हितों की कोई बात ही न हो। ऐसा लेफ्ट- लिबरल सिस्टम जो भारत विरोध पर टिका हो, उसे भी मतदाता अब स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। संविधान बदल देने और आरक्षण खत्म कर देने जैसे झूठे गढ़े गए नैरेटिव से हर बार चुनाव नहीं जीता जा सकता है।
इन परिस्थितियों में ममता बनर्जी के विधान सभा में दिए बयान मतदाताओं के लिए ठंडे फाहे की तरह हैं। निश्चित ही भाजपा के लिए भी यह एक बुरी खबर है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह उनके निजी विचार हैं)