लेखक- राजेंद्र द्विवेदी
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी अपने संसदीय क्षेत्र रायबरेली आए। दलित छात्रों के सम्मेलन में उन्होंने मायावती को भाजपा की बी टीम बताया और कहा कि अगर बसपा साथ में आती तो भाजपा हार जाती। राहुल ने यह भी कहा कि मायावती पहले जैसी चुनाव नहीं लड़तीं।
मायावती ने राहुल गांधी पर पलटवार किया और कहा कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस भाजपा की बी टीम थी, इसलिए भाजपा सत्ता में आई। कांग्रेस के अधिकांश प्रत्याशियों की ज़मानत ज़ब्त हो गई। मायावती ने कहा कि कांग्रेस पार्टी जिन राज्यों में मजबूत है या जहाँ उनकी सरकारें हैं, वहाँ बीएसपी और उनके अनुयायियों के साथ द्वेषपूर्ण व जातिवादी रवैया अपनाया जाता है। किंतु यूपी जैसे राज्य में, जहाँ कांग्रेस कमजोर है, वहाँ बीएसपी से गठबंधन की वगरलाने वाली बातें करना, यह उस पार्टी का दोहरा चरित्र नहीं तो और क्या है?
फिर भी, बीएसपी ने यूपी व अन्य राज्यों में जब भी कांग्रेस जैसी जातिवादी पार्टियों के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ा है, तब हमारा बेस वोट उन्हें ट्रांसफर हुआ है, लेकिन वे पार्टियाँ अपना बेस वोट बीएसपी को ट्रांसफर नहीं करा पाई हैं। ऐसे में, बीएसपी को हमेशा घाटे में ही रहना पड़ा है।
अब सवाल यह है कि भाजपा की बी टीम कौन? मायावती या कांग्रेस? निष्पक्ष विश्लेषण करें तो राजनीतिक परिस्थितियों के अनुसार अपने लाभ-हानि के लिए पार्टियाँ न चाहते हुए भी बी टीम की भूमिका में आ जाती हैं। हाल में हुए दिल्ली चुनाव के परिणामों का विश्लेषण करें तो निश्चित रूप से कांग्रेस अपनी ज़मीन तलाशने के लिए लड़ी, लेकिन उसकी भूमिका आप को हराने और भाजपा को जिताने की बन गई।
इसी तरह मायावती कांग्रेस शासित राज्यों में चुनाव लड़ती हैं। छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब राज्यों की कई सीटों पर बसपा के प्रत्याशियों के कारण कांग्रेस हारी और भाजपा जीती। यहाँ पर भी बीएसपी कांग्रेस के अनुसार बी टीम बन गई। इसलिए दोनों के आरोप राजनीतिक परिस्थितियों के अनुसार सही कहे जा सकते हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)