लेखक- भूपेंद्र सिंह
पूरी दुनिया में कुख्यात हक्कानी नेटवर्क जिसने कभी रूस के ख़िलाफ़ अमेरिका के समर्थन से लड़ाई लड़ी तो कभी स्थानीय लड़ाकों को इकट्ठा करके अमेरिका से लड़ाई लड़ी, जो कम से कम दो प्रमुख भारत विरोधी आतंकी समूहों का घनघोर समर्थक और आर्थिक स्रोत रहा जिन्होंने कश्मीर में आतंक की खेती में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, अब भारत की तरफ़ झुका हुआ है।
हक्कानी नेटवर्क के पास वैध,अवैध हर तरह से अथाह पैसे का स्रोत है और पाकिस्तान की ISI लंबे समय तक अपने पक्ष में इसका उपयोग करती रही है लेकिन अब ISI को भी हक्कानी नेटवर्क भयानक सिरदर्द दे रहा है। अमेरिका का पांव ठीक से अफगानिस्तान में न जमने पाये इसके लिए ISI ने अमेरिका के सभी दबावों को धता बताकर हक्कानी नेटवर्क को केवल इसलिए जिंदा रखा था क्यूंकि उसे विश्वास था कि आज नहीं तो कल अमेरिका परेशान होकर भाग जाएगा और जब भागेगा तो वह अफगानिस्तान में तो राज करेंगे ही साथ ही कश्मीर समेत भारत के उत्तर पश्चिम की सीमा को आतंक पीड़ित रखने और भारत को परेशान करने के लिए ये नेटवर्क काम आयेगा।
यह बात सही है कि पाकिस्तान अपने नीति में पूरी तरह सफल रहा और अफ़ग़ानिस्तान में हक्कानियों का राज लौट आया। हक्कानी परिवार के तीन तीन लोग कैबिनेट के शामिल हो गए लेकिन शामिल होते ही स्थितियां बदलने लगीं। अमेरिका के जाते ही पश्तून राष्ट्रवाद हावी होने लगा और लोगों के भीतर पश्तूनिस्तान की आग जिस पर अमेरिका बैठा था वह धधक उठा। पश्तून राष्ट्रवाद का जो मूल बिंदु है, वह ये है कि वह अफ़ग़ान पाक सीमा को विभाजित करने वाली डूरंड रेखा को नहीं मानते और पाकिस्तान के भी पश्तून बहुल इलाक़ों को ग्रेटर अफ़ग़ानिस्तान अथवा पश्तुनिस्तान का हिस्सा मानते हैं।
हक्कानी यदि पश्तून राष्ट्रवाद को पाकिस्तान के चक्कर में बलि चढ़ाते हैं तो कुछ एक महीनों में ही पश्तूनों के बीच एक नई लीडरशिप पैदा हो सकती है। यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि पाकिस्तान में साढ़े तीन करोड़ पश्तून हैं इसलिए इस आंदोलन से अलग होने का मतलब पाकिस्तान के इन हिस्सों में भी हक्कानी परिवार अपना दावा और समर्थन कम कर लेगा। इसलिए लोगों के बीच संदेश देने के लिए हक्कानियों ने तालिबानी सेना को निर्देशित कर दिया कि डूरंड लाइन पर पाकिस्तानी सैनिकों को शांति से न रहने दिया जाय और बीच बीच में उन्हें ठिकाने लगाया जाय ताकि पश्तूनों में संदेश जाये कि हक्कानी पश्तून आंदोलन को किनारे नहीं लगाने वाले।
सरकार बनते ही तालिबानियों का स्वागत इमरान ख़ान ने किया लेकिन चीन की सरकार शांत बैठी रही। अफ़ग़ानियों ने चीन से कई बार अनुरोध किया कि वह तालिबान सरकार को मान्यता दे लेकिन चीन की परेशानी अलग है। चीन को लगा कि यदि वह तालिबान को मान्यता देंगे तो तालिबान उइघर मुस्लिमों से संपर्क में आयेगा और अपनी आग वहाँ पहुँचा सकता है। फिर चीन में भी आतंकी संगठन शुरू हो सकते हैं। दूसरा भय चीन को यह लगा कि तालिबान को समर्थन देते ही आईएसआईएस खुरासान चीन में भी घुसने की कोशिश कर देगा जो अभी तक अपने को अफ़ग़ानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ऊपरी पाकिस्तान ईरान और रूस के निचले हिस्से तक सीमित कर रखा है। इसलिए चीन ने न मान्यता दी और न ही कोई संबंध स्थापित किया।
अफ़ग़ानिस्तान व्यापकता की दृष्टि से ठीक ठाक बड़ा देश है, ऐसे में हक्कानियों को समझ में आ गया कि भारत का निवेश पहले से अफ़ग़ानिस्तान में बहुत ज़्यादा है और दूसरी बात ऐतिहासिक रूप से और पीपल तो पीपल संबंध पठानों/ बलूचों/ पश्तूनों और हिंदुओं में हमेशा से अच्छा रहा है। सामान्य रूप से एक पठान/ बलूच/ पश्तून, हिंदुस्तान के लोगो की तुलना पाकिस्तानी पंजाबियों से अधिक घृणा रखते हैं। अतः हक्कानी परिवार ने पलटी मार ली और भारत में आतंकवाद फैलाने वाले दोनों आतंकी संगठनों से दूरी बना ली और उल्टा तहरीके तालिबान पाकिस्तान के पक्ष में चले गए। इधर भारत बलूचों के समर्थन में भी ऑन ग्राउंड मदद कर रहा है। अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान को अपने स्थिरता के लिए रखने लिए सड़क, बिजली, डैम समेत खाद्य एवं दवा की ज़रूरत पड़ने लगी तो उसे समझ आया कि सबसे अच्छा होगा कि भारत से पुराने बैर को भुलाया जाय और रिलाएबल पार्टनर होने के नाते उससे संबंध विकसित किए जायें।
दिल्ली में अभी भी अफ़ग़ानिस्तान के पिछले सरकार का झंडा लहरा रहा है लेकिन राजदूत तालिबान सरकार से संपर्क के माध्यम बने हुए हैं, इसी तरह यूएई में भी भारतीय राजदूत की तरफ़ से सामान्य कार्यक्रमों में वहाँ के तालिबानी राजदूत को आमंत्रण भेजा जाता है। तालिबान के निवेदन और सुरक्षा की गारंटी के बाद फिर से भारत की तकनीकी टीम वहाँ पर निर्माण कार्यों में लगी हुई है। खाद्यान्न और दवा की सप्लाई जारी है। बदले में तालिबान, पाकिस्तान को उसके पश्चिमी सीमा पर परेशान किए है, पाकिस्तान के भीतर के ग़ैर पंजाबी और सिंधी लोगों में एंटी पाकिस्तान सेंटीमेंट भर रहा है। कश्मीर में उत्पात मचाने वाले दोनों प्रमुख आतंकी संगठनों से दूर है। बीच बीच में पाकिस्तान के कुछ सैनिकों को निबटाता रहता है।
कुल मिलाकर अफ़ग़ानिस्तान के लिए अच्छे नीयत से किए गए कार्यों का अच्छा परिणाम दिखाई पड़ रहा है। तालिबान ने पाकिस्तान और चीन दोनों का दिमाग़ ठीक किया है। हाँ अफ़ग़ानिस्तान ड्रग स्मगलिंग का बड़ा केंद्र है सो भारत में वहाँ से बार बार गुजरात पोर्ट को तरफ़ से ड्रग भेजने की कोशिश होगी जिस पर सरकार कड़ी निगाह रखें हुए हैं और आगे भी ध्यान देते रहना होगा।
अफ़ग़ानिस्तान, पश्तुनिस्तान, बलूचिस्तान, पाकिस्तान और भारत के बीच चल रहे खेल को समझने में आसानी होगी,यह हाल में हुआ ट्रेन अपहरण आगे की बड़ी घटनाओं की शुरुआत भर है।
(लेखक इंटरनेशनल पॉलिटिक्स के जानकार हैं)