लेखक-अरविंद जयतिलक
भोजपुरी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग 1969 से की जा रही है। लेकिन विडंबना है कि दशकों गुजर जाने के बाद भी भोजपुरी को वह सम्मान हासिल नहीं हुआ है जो अन्य भाषाओं को हासिल है। जबकि अलग-अलग समय पर सत्ता में आयी सरकारों ने भोजपुरी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने का भरपूर आश्वासन दिया। उल्लेखनीय है कि भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची भारत की भाषाओं से संबंधित है और संविधान के 92 वें संशोधन अधिनियम, 2003 के पश्चात आठवीं अनुसूची में कुल 22 भाषाओं को राजभाषा के रुप में मान्यता प्राप्त है। आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाएं हैं-असमिया, बांग्ला, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया (ओडिआ), पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिन्धी, तमिल, तेलगु और उर्दू। अगर भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाता है तो निःसंदेह उसके सुखद परिणाम होंगे। एक तो भोजपुरी को संवैधानिक दर्जा हासिल हो जाएगा और दूसरा भोजपुरी भाषा से जुड़ी ढे़रों संस्थाएं अस्तित्व में आएंगी जिससे क्षेत्रीय भाषा अस्मिता फलीभूत होगी और साथ ही कला, साहित्य और विज्ञान को समझने-संवारने में मदद मिलेगी। एक भाषा के रुप में भोजपुरी सुंदर, सरस और मधुर भाषा है और इसकी मिठास लोगों को सहज ही अपने आकर्षण में बांध लेती है। संवैधानिक दर्जा मिलने से भोजपुरी भाषा की पढ़ाई के लिए बड़े पैमाने पर विश्वविद्यालय, कालेज और स्कूल खुलेंगे जिससे कि रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होगी। भोजपुरी भाषा के इतिहास में जाएं तो यह भाषाई परिवार के स्तर पर एक आर्य भाषा है। आधिकारिक और व्यवहारिक रुप से इसे हिंदी की उपभाषा या बोली भी कहा जाता है। भोजपुरी अपने शब्दावली के लिए मुख्यतः संस्कृत और हिंदी पर निर्भर है। वहीं कुछ शब्द इसने उर्दू से भी लिया है। आचार्य हवलदार त्रिपाठी ने अपने शोध में पाया है कि भोजपुरी संस्कृत से निकली है। उन्होंने अपने कोश ग्रंथ ‘व्युत्पत्तिमूलक भोजपुरी की धातु और क्रियाएं’ के जरिए भोजपुरी तथा संस्कृत भाषा के मध्य समानता स्थापित की है। ऐसी मान्यता है कि भोजपुरी भाषा का नामकरण बिहार राज्य के आरा (शाहाबाद) जिले में स्थित भोजपुर नामक गांव के नाम पर हुआ। मध्यकाल में इस स्थान को मध्यप्रदेश के उज्जैन से आए भोजवंशी परमार राजाओं ने बसाया था। उन्होंने अपनी इस राजधानी को अपने पूर्वज राजा भोज के नाम पर भोजपुर रखा। इसी के कारण इसके पास बोली जाने वाली भाषा का नाम भोजपुरी पड़ा। यह भाषा बिहार राज्य के बक्सर, सारण, छपरा, सिवान, गोपालगंज, पूर्वी एवं पश्चिमी चंपारण, वैशाली, भोजपुर और रोहतास जिलों के अलावा आसपास के क्षेत्रों में बोली जाती है। इस क्षेत्र को भोजपुरी क्षेत्र भी कहा जाता है। वहीं उत्तर प्रदेश के बलिया, गाजीपुर, मऊ, आजमगढ़, वाराणसी, चंदौली, गोरखपुर, महाराजगंज के अलावा अन्य कई जिलों में बोली जाती है। विद्वानों की मानें तो 1812 ई0 में अंग्रेजी विद्वान व इतिहासकार डा0 बकुनन भोजपुर क्षेत्र में आए थे और उन्होंने मालवा के भोजवंशी उज्जैन राजपूतों के चेरों जाति को पराजित करने के संबंध में उल्लेख भी किया है। भाषा के के अर्थ में भोजपुरी शब्द का पहला लिखित प्रयोग रेमंड की पुस्तक ‘शेरमुताखरीन’ के अनुवाद (दूसरे संस्करण) की भूमिका में मिलता है। इसका प्रकाशन वर्ष 1789 है। प्रमुख विद्वान राहुल सांकृत्यायन ने भोजपुरी को ‘मल्ली’ और ‘काशिका’ दो नाम दिया है। भोजपुरी जानने-समझने वालों का विस्तार केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के सभी महाद्वीपों तक है। इसका प्रमुख कारण ब्रिटिश राज के दौरान उत्तर भारत से अंग्रेजों द्वारा ले जाए गए मजदूर हैं। अब उनके वंशज वहीं बस गए हैं। इनमें सूरीनाम, मॉरीशस, गुयाना, त्रिनिनाद, टोबैगो तथा फिजी देश प्रमुख हैं। उल्लेखनीय है कि मॉरीशस ने जून, 2011 में ही भोजपुरी भाषा को संवैधानिक मान्यता दे दी है। पड़ोसी देश नेपाल के रौतहट, बारा, पर्सा, बिरग, चितवन, नवलपरासी, रुपनदेही और कपिलवस्तु में भी भोजपुरी बोली जाती है। नेपाल के थारु लोग भी भोजपुरी बोलते हैं। नेपाल में भोजपुरी भाषी लोगों की आबादी लाखों में है जो वहां की भाषा की तकरीबन 9 फीसद है। सच कहें तो आज की तारीख में भोजपुरी भाषा का जितना विस्तार हुआ है उतना अन्य किसी लोकभाषा का नहीं हुआ है। मौजूदा समय में भारत में ही 20 करोड़ से अधिक लोग भोजपुरी बोलते हैं। वैश्विक स्तर पर भी इसे बोलने-समझने वालों की तादाद करोड़ों में है। भोजपुरी भाषा का इतिहास सातवीं सदी से प्रारंभ होता है। भोजपुरी साहित्यकारों की मानें तो सातवीं शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के समय के संस्कृत के महान कवि बाणभट्ट के विवरणों में ईसानचंद्र और बेनीभारत का उल्लेख है जो भोजपुरी के कवि थे। नवीं शताब्दी में पूरन भगत ने भोजपुरी साहित्य को आगे बढ़ाने का काम किया। नाथ संप्रदाय के गुरु गोरखनाथ ने हजारों वर्ष पूर्व गोरख बानी लिखा था। बाबा किनाराम और भीखमराम की रचना में भी भोजपुरी की झलक मिलती है। बाद के भोजपुरी कवियों में तेग अली तेग, हीरा डोम, बुलाकी दास, दुधनाथ उपाध्याय, रधुवीर नारायण, महेन्द्र मिश्र का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। हालांकि भोजपुरी भाषा में निबद्ध साहित्य प्रचुर मात्रा में उपलब्ध नहीं हैं लेकिन अनेक कवियों और लेखकों ने इसे समृद्ध भाषा बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। भोजपुरी भाषा के लोक समर्थ कलाकार भिखारी ठाकुर ने भोजपुरी को नई ऊंचाई दी। वे एक ही साथ कवि, गीतकार, नाटककार, लोक संगीतकार और अभिनेता थे। उनकी कृति विदेशिया, भाई-बिरोध, बेटी-बेचवा, कलयुग प्रेम विशेष रुप से उल्लेखनीय है जिसके जरिए उन्होंने समाज में नई उमंग पैदा की। भोजपुरी भाषा के उत्थान में पांडेय कपिल, रामजी राय और भोलानाथ गहमरी का योगदान सराहनीय है। भोजपुरी भाषा के साहित्य का इतिहास लिखने वालों में ग्रियर्सन, उदय नारायण तिवारी, कृष्णदेव तिवारी, हवलदार तिवारी और तैयब हुसैन विशेष रुप से उल्लेखनीय है। आज भी ढ़ेरों भोजपुरी लेखक, कवि, साहित्यकार और गायक भोजपुरी भाषा को समृद्ध बनाने का काम कर रहे हैं। इनमें रामदरश मिश्र, भरत शर्मा, मनोज तिवारी, मालिनी अवस्थी, डा0 अशोक द्विवेदी, जयशंकर प्रसाद द्विवेदी, मनोज भावुक, डा0 अक्षय कुमार पांडेय, नंद किशोर मतवाला, पवन नंदन केसरी, आसिफ रोहतासवी एवं आशा रानी लाल का नाम विशेष रुप से उल्लेखनीय है। संत कबीर दास का जन्मदिवस (1297 ई) भोजपुरी दिवस के रुप में भारत में स्वीकार किया गया है और विश्व भोजपुरी दिवस के रुप में भी मनाया जाता है। आज भोजपुरी भाषा में अनेक पत्र-पत्रिकाएं एवं गं्रथ अनुदित हो रहे हैं। बाजार में इनकी जबरदस्त मांग भी है। भोजपुरी लोक साहित्य के अलावा भोजपुरी गीतों और फिल्मों ने भी कलकत्ता से लेकर मुंबई तक धमाल मचा रखा है। अब तो हिंदी फिल्मों में भोजपुरी गीतों का तड़का भी लगने लगा है। कई हिंदी फिल्में भोजपुरी गीतों की वजह से सुपर-डुपर हिट हो चुकी हैं। साहित्य, कला और फिल्मों के अलावा विश्व भोजपुरी सम्मेलन भी आंदोलनात्मक, रचनात्मक और बौद्धिक स्तर पर पहल कर भोजपुरी को समृद्ध बनाने, भोजपुरी साहित्य को सहेजने और उसके प्रचार-प्रसार में जुटा हुआ है। भोजपुरी भाषा के विकास और विस्तार के लिए भोजपुरी साहित्यकारों की ओर से भी उल्लेखनीय पहल हो रही है। विदेशी धरती पर विशेष रुप से मारीशस, सूरीनाम, त्रिनिनाद, फिजी, दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड तथा अमेरिका में भी भोजपुरी भाषा के विकास के लिए भी कई संस्थान खोले गए हैं। यह भोजपुरी भाषा के उपादेयता और प्रासंगिकता को ही रेखांकित करता है। अगर केंद्र सरकार भोजपुरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करती है तो यह भोजपुरी जनमानस के अपेक्षाओं और आकांक्षाओं के अनुकुल ही होगा।
(लेखक राजनीतिक व सामाजिक विश्लेषक हैं)