★मुकेश सेठ★
◆मुम्बई◆
{इलेक्शन कमीशन रूल 49 MA के तहत स्वीकार करता है कि ईवीएम में ख़राबी व छेड़छाड़ भी है सम्भव}
(आईपीसी 177 कहती है कि गर शिकायत गलत पायी गयी तो होगी शिकायतकर्ता को सज़ा)
[टीएन शेषन के कार्यकाल में इवीएम मशीनों के जरिये मतपत्रों से होती वोटिंग की धांधलियों पर रोक लगनी हुई थी शुरू]
(1975 के “राजनारायण बनाम इंदिरा गाँधी”के फैसले में जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने लिखा था कि गांधी ने सत्ता का दुरूपयोग किया था)
♂÷चुनाव आयोग रूल 49MA के तहत यह स्वीकार करती है कि ईवीएम में खराबी हो सकती है और मतदाता ने अपना मत जिस राजनीति पार्टी को दिया है उसे ना जाकर किसी ओर को जाने पर क्या करना होगा इसकी व्यवस्था दी गई है इसके दो अर्थ साफ-साफ निकाले जा सकतें हैं 1. ईवीएम मशीन में खराबी संभव है 2. मशीन के साथ छेड़छाड़ संभव है।
किसी भी चुनाव में मतदान के बाद मतगणना उसका दूसरा पड़ाव होता है। चुनाव संपन्न कराने वाले अधिकारियों का यह दायित्व बन जाता है कि वे चुनाव की सभी प्रक्रियाओं को पारदर्षीता के साथ ना सिर्फ पूरी करें साथ ही समय-समय पर सभी संबंधित पक्षों के साथ राय-मशवरा कर चुनाव की प्रक्रियाओं में सुधार भी लायें तथा आयोग के द्वारा घोषित परिणामों में कोई शक-शुबहा की गुंजाइस ना रह जाए। चाहे वह लोकसभा के चुनाव हो या विधानसभा के चुनाव या किसी भी क्षेत्र में चुनाव हो। परन्तु चुनाव की प्रक्रिया हमेशा विवादों में बनी रही है। इस संदर्भ में ‘‘राजनारायण बनाम इंदिरा गांधी (1975)’’ का ऐतिहासिक फैसला जिसमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय के तात्कालिक जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने श्रीमती गांधी के चुनाव को रद्द करते हुए जस्टिस सिन्हा ने अपने आदेश में लिखा कि इंदिरा गांधी ने अपने चुनाव में सरकारी अधिकारियों और सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया जो जन प्रतिनिधित्व कानून के अनुसार गैर-कानूनी था।
ठीक इसी प्रकार उस जमाने में कागज के मतपत्रों के द्वारा मतदान कराया जाते थे जिसे बाहुबली लोग कई बार लूट भी लेते थे। भारत में सांइस्टिफिक रेगिंग काफी मशहूर है, जिसमें मतदान केंद्रों के अंदर सुबह से ही एक लंबी लाईन सभ्य तरीके से लगा दी जाती है और उस लाइन के सदस्य ही बारी-बारी से मतदान करते पुनः लाईन के मध्य लग जाते हैं। पीछे के लोग घंटों खडे रह जाते कुछ शोर-शराबा होता तो लाईन हटा ली जाती फिर यही प्रक्रिया कुछ अंतराल के बाद फिर से चलाई जाती है। इसी प्रकार कई ईलाकों में ऐसा भी देखा जाता है कि मतदाताओं को डरा-धमका के भगा दिया जाता है और मतदान केन्द्र पर कब्जा कर के मतदान किया जाता था। हांलाकि ईवीएम मशीन के आ जाने के बाद व टी.एन शेषन के द्वारा चुनाव प्रक्रियाओं में सुधार क पश्चात मतपत्रों की लूट में काभी हद तक कमी आई है वहीं ईवीएम की हैकिंग की बातें सामने आने लगी । चुनाव आयोग कितना भी खुद को पाक-साफ बताते रहे, कितने भी सचे-झूठे दावे करते रहे पर विज्ञान इस बात को स्वीकार नहीं सकता कि ईवीएम के साथ छेड़छाड़ संभव ही नही है। ऐसा संभव नहीं होता तो दुनियाभर में आई.टी एक्सपर्ट क्यों रखे जाते हैं ? ईवीएम भी एक मशीन ही है इस बात से तो चुनाव आयोग इंकार नहीं कर सकता। दो प्लस दो चार हो सकतें हैं तो दो गुना तीन छह भी हो सकता है। इस बात को कोई इंकार नहीं कर सकता ।
देखें एक ईवीएम में कितने प्रकार से प्रोग्राम सेट किये जा सकते हैं
1) टाइम सेट: मतदान शुरू होने के दो घंटे के बाद हर पांच मिनट में अगले पांच मिनट तक किसी भी एक पार्टी को मत देने का निर्देश दिया जा सकता है। उसे ऐसे या इस प्रकार सेट किया जा सकता है। आप उसे सेट कर दें तो मशीन आपके आदेश का पालन करेगी। यानि की चुनाव शुरू होने के दो घंटा पश्चात से लेकर अंत तक वह वही कार्य करेगी।
2) टाइम सेट-2 : दूसरा तरीका है मतदान शुरू होने के एक या दो घंटे के बाद प्रत्येक दो वोट के बाद तीन या चार वोट किसी एक ही दल को मिले। अर्थात आप जब वोट डालने जायेगें तो पहला व दूसरा वोट सही पड़ेगा फिर चैथा, पांचवां, छठा और सातवाँ वोट किसी एक विशेष दल को ही मिलेगा। पुनः यह प्रक्रिया स्वतः दोहराई जायेगी। यह सब कार्य मशीन स्वतः करेगी।
3) अनुपात सेट : शुरू में 100 या 200 वोट सही पड़ेगें उसके बाद एक सही, दो गलत .. एक सही, दो गलत .. यह प्रक्रिया अंत तक चलेगी। यह प्रक्रिया में अनुपात तय कर दिया जाता है जिसमें किसी एक उम्मीदवार को हमेशा वह आगे ही रखेगा।
अर्थात उपरोक्त तीनों प्रक्रिया जब उम्मीदवारों के प्रतिनिधि इस बात की पुष्टि कर देगें कि सबकुछ ठीक है । तब वह अपना काम वह भी एक या दो घंटों के बाद शुरू करेगी। भले ही चुनाव आयोग इस बात से अनिभिज्ञ हो पर ऐसा संभव है। यह एक स्वाभाविक है कि किसी भी मशीन में ऐसा किया जा सकता है। तो ईवीएम में भी संभव है। तकनीकी विशेषज्ञ इस बात से इंकार नहीं कर सकते। शेयर बाजार में इस प्रक्रिया का प्रयोग साधारण है जब किसी भी स्टाॅक की खरीद-बिक्री अचानक से बाधित कर दी जाती है। या उसमें नये नियम ट्रेडिंग के बीच ही जोड़ दिये जातें हैं।
जबसे वीवीपेट प्रणाली को ईवीएम यूनिट के साथ जोड़ दिया गया है तो अब नयी तरह की बातें सामने आने लगी। बड़ी संख्या में ईवीएम मशीनों में गड़बड़ी की बात खुलकर सामने आने लगी है। जो अब तक पर्दे बात थी। जिसे चुनाव आयोग अभी तक स्वीकारने को तैयार नही था कि गलत मतदान संभव है । हांलाकि चुनाव आयोग अभी भी सभी आरोपों का समाधान निर्वाचनों का संचालन अधिनियम, 1961’’ की रूल 49MA के तहत करने का दावा करती है जिसमें संबंधित निर्वाचन अधिकारी को नियम 17A के तहत एक ‘एक नया जांच मत’ संबंधित व्यक्ति को देने की बात कही गई है । यानि कि चुनाव आयोग का रूल 49MA यह स्वीकार करता है कि मतदान में गड़बड़ी संभव है । और अपने पापों को छुपाने के लिए मतदाताओं को पहले धमकाता भी है कि उसे आईपीसी 177 के तहत यदि यह सिद्ध हो जाता है कि मतदाता ने जानबूझ कर चुनाव अधिकारी को गलत सूचना दी तो सजा का भी प्रावधान है। परन्तु यहां यह सोचने की बात भी है कि जब ईवीएम मशीन में गलती पाई जायेगी तो किसे सजा मिलगी? देश के लोकतंत्र से खिलवाड़ करने वाले लोग सजा मुक्त और जागरूक जनता को डराया जाना यह नेचुरल जस्टिस के विरूध है। चुनाव आयेग इतना ईमानदार कब से हो गया? कि वह जो कहे सब सही बाकी लोग झूठे?
ऊपर के पेरा का यह अर्थ भी निकाला जा सकता है – जब वीवीपेट के द्वारा देखने की सुविधा नहीं थी तब कि ये मशीने क्या यही करती थी जो अब वीवीपेट से जोड़े जाने के बाद देखा जा रहा है? मत किसी ओर पार्टी को जाते साफ देखा जा सकता है। इसीलिये यह नई रूल 49MA को जोड़ा गया है। अर्थात चुनाव आयोग खुद यह स्वीकार कर रहा है कि ऐसा संभव है। इसका यह अर्थ भी निकल सकते हैं क्या ईवीएम के साथ कोई छेड़-छाड़ की जा सकती है जो इस नये रूल 49MA में बताया गया है?
इन आरोपों को चुनाव आयोग ‘‘निर्वाचनों का संचालन नियम, 1961’’ की रूल 49MA के उप नियम 1, 2,3 व 4 के तहत आईपीसी 177 के तहत एक चेतावनी देकर रूल 17A के तहत उस व्यक्ति को पुनः एक जांच वोट डालने का अवसर देती है। जहां गलत पाये जाने पर सजा (1000/- तक फाइन व 6 माह की जेल या दोनों ) हो सकती है तो चुनाव आयोग को साथ ही यह भी बताना चाहिये कि जिन-जिन मशीनों में गड़बड़ी की शिकायत सही पाई गई और ईवीएम मशीनें उन बुथों पर बदली गई उसमें शिकायत कर्ता का आरोप सही पाया गया था क्या? और किस राजनीति दल के पक्ष में गलत मतदान हो रहा था? इन बातों को आयोग ने क्यों छुपा लिया ताकि उसकी पोल न खुल जाए ? चुनाव आयोग पर यह प्रतिबद्धता होनी चाहिये कि वे उन ईवीएम मशीनों के आंकड़े और रद्द मशीनों का पूरा विवरण सार्वजनिक करे, ताकि जनता को यह भी पता चल सके कि ईवीएम में क्या गड़बड़ी पाई जा रही थी। और इन गड़बड़ियों का सीधा संबंध किस-किस राजनीति दल से था?
“लेखक शंभु चौधरी स्वतंत्र पत्रकार और विधिज्ञाता हैं”।