★मुकेश सेठ★
★मुम्बई★
{50 हज़ार तक के कारोबार करने वाली पतन्जली योगपीठ के संस्थापक योगगुरु बाबा रामदेव की पहचान ही बनी है योग के प्रणेता माने जाने वाले महर्षि पतञ्जलि के योग सूत्र की बदौलत}
[पीएम मोदी के प्रयास से सँयुक्त राष्ट्र संघ 21जून को दुनियाभर में मनाता है योग दिवस किन्तु पतन्जलि की जन्मस्थली गोण्डा के कोडर गाँव की दशा है दयनीय]
(केंद्र-प्रदेश में बीजेपी की सरकार व कैसरगंज सांसद व तरबगंज विधायक होने के बाद भी महायोगी के जन्मस्थान की उपेक्षा समझ से परे)
[पतंजलि के नाम पर अखिलेश सरकार ने शुरू कराए पॉलिटेक्निक कॉलेज तो योगी सरकार बनवा रही पतंजलि स्पोर्ट्स कॉलेज]
(पतंजलि की जन्मस्थली में आने वाले आगन्तुकों के लिए नही है कोई आश्रम,धर्मशाला,शुद्ध पेयजल,खानपान व विधुत की व्यवस्था कहा महर्षि पतंजलि न्यास अध्यक्ष ने)

♂÷समूची दुनिया जिस अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को मनाती है उसके जनक महायोगी महर्षि पतंजलि की जन्मस्थली खून के आंसू बहाने को मजबूर है। यहां तक कि पतंजलि योग पीठ का नाम बेचकर पूरे देश में व्यापार को विस्तार देने वाले बाबा रामदेव तक ने उनके जन्मस्थल पर फूटी कौड़ी तक खर्च नहीं की है। जबकि उनकी पतंजलि योग पीठ नामक फर्म भारत में पिछले पांच साल से सालाना बीस हजार करोड़ तक व विगत वर्ष में पचास हज़ार करोड़ तक के कारोबार की थी।
उत्तर प्रदेश मेें देवी पाटन मंडल के गोण्डा जिले में वजीरगंज ब्लाक के कोडर गांव मे स्थित इस ऐतिहासिक धरोहर को देश के पर्यटन मानचित्र में लाने की मांग दशकों से की जा रही है लेकिन योग प्रणेता की जन्मस्थली के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। महर्षि पतंजलि न्यास के अध्यक्ष स्वामी भगवदाचार्य ने कहा कि योग को अंतर्राष्ट्रीय पटल पर स्थान दिलाने का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का प्रयास प्रशंसनीय है लेकिन योग प्रणेता की जन्मस्थली के प्रति केन्द्र और राज्य सरकार का उपेक्षित रवैया समझ के परे है। सरकारों की उपेक्षा के कारण बदतर हालत में पड़ी महर्षि पतंजलि की जन्मस्थली की बदहाली पर किसी का ध्यान आकर्षित नही है। संयुक्त राष्ट्र, यूनेस्को और भारत सरकार ने महायोगी पतंजलि का जन्मस्थान गोण्डा को माना है। पतंजलि के जन्मस्थान के जीर्णोंद्धार के लिये कई बार सरकार से अनुरोध किया गया लेकिन अभी तक यहाँ किसी प्रकार के विकास या जीर्णोंद्धार की घोषणा नहीं हो सकी है। महायोगी की जन्मभूमि कैसरगंज संसदीय क्षेत्र व तरबगंज विधानसभा क्षेत्र में स्थित है जिनमें सत्तारूढ़ भाजपा के जनप्रतिनिधि हैं। इसके बावजूद ऐतिहासिक स्थल पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। यहां तक योगगुरू स्वामी रामदेव की पतंजलि योगपीठ ने भी कोडर गांव की ओर दृष्टि तक नही डाली है।
स्वामी ने बताया कि पिछली अखिलेश सरकार ने जिले के कर्नलगंज तहसील क्षेत्र मे महर्षि पतंजलि सूचना प्रौद्योगिकी एवं पालीटेक्निक कॉलेज का निर्माण शुरू कराया जबकि पिछले वर्ष नगर के वेंकटाचार्य क्लब के प्रांगण में स्थित महर्षि पतंजलि स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स की शुरुआत करायी गयी है। उन्होने बताया कि कोडर गांव मे स्थित झील की हालत बदतर है। यहाँ दूर दराज से आने वाले आगंतुकों के लिये कोई आश्रम या धर्मशाला, स्वास्थ्य के लिये कोई सुविधा नही है।

शुद्ध पेयजल ,विद्युत ,खानपान व अन्य तमाम संसाधनों का नामों निशान तक नही है। इस संबन्ध मे केन्द्र एवं राज्य सरकारों को पत्र के माध्यम से कई बार न्यास समिति ने अनुरोध किया। बहरहाल स्थानीय संसाधनों को एकत्र कर 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर कोडर झील के किनारे योग शिविर का कार्यक्रम आयोजित कर संगोष्ठी करायी जाती है।
कैसरगंज संसदीय सीट से भाजपा सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह ने बताया कि महर्षि पतंजलि की जन्मभूमि का जीर्णोद्धार कर उसे पर्यटन के लिये बढ़ावा दिया जायेगा। साथ ही मंदिर परिसर में स्थित कोंडर झील को पुनर्जीवित किया जायेगा। इसके लिये राज्य सरकार को अवगत करा दिया गया है।

मान्यताओ के अनुसार, विक्रम संवत दो हजार वर्ष पूर्व श्रावण मास की शुक्ल पंचमी को महर्षि पतंजलि ने गोनर्द (गोंडा का प्राचीन नाम) की पावन धरती पर जन्म लिया। उनकी माता का नाम गोणिका था। वह व्याकरण महाभाष्य के रचयिता है। उन्हे ज्ञान और भक्ति की प्राप्ति कोडर झील के किनारे बैठ कर हुई थी। शेषावतार माने जाने वाले पतंजलि त्रिजट ब्राह्मण थे।
विद्वानों के अनुसार, सूत्रकार, वृत्तिकार और भाष्यकार त्रिजट ब्राह्मणों की तीन जटाओं के प्रतीक है। इस संबन्ध मे पतंजलि का अनोखा ‘भाष्य ग्रंथ’ विश्व मे प्रचलित हुआ। इसकी शैली सर्वथा भिन्न होने के कारण इस शैली का दूसरा कोई ग्रंथ नही है। महर्षि ने काशी को बनारस के नागकुआ के पास अपनी कर्मभूमि बनाया उन्होने अपने ग्रंथ महाभाष्य मे स्वयं को कई बार गोनर्दीय कहा है।