लेखक- परख सक्सेना
पहले भी लिखा था कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका का पतन कर रहे है लेकिन उस समय हमारा दक्षिणपंथ उनके दक्षिणपंथ से भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ था। लेकिन आज आशा है बहुत लोगो के मन बदलेंगे।
ट्रम्प ने पूरी दुनिया पर टैरिफ़ लगा दिये है, यहाँ तक की भारत पर भी 26% टैरिफ़ लगे है। ऐसा लगा मानो ये गणना उन्होंने किसी स्कूल के बच्चे से करवाई हो, क्योंकि तर्क ये है कि भारत अमेरिका पर 52% टैरिफ़ लगाता है जो कि सफ़ेद झूठ है।
उच्च स्तर पर ना भी देखे तो सोचिये कि टैरिफ़ चुकाना तो जनता को ही है। गलवान घाटी के बाद हमने भी चीन की कमर तोड़ी थी, लेकिन बाद मे क्या हुआ? विद्युत उपकरण और रॉ मटेरियल भारत मे महँगा हो गया।
असर जनता की ही जेब पर पड़ा और जनता देशभक्त तब ही तक होती है ज़ब तक कि जेब भारी ना हो। फ़ौरन बाद बीजेपी को महंगाई के लिये घेरा जाने लगा और सरकार को छूट देनी पड़ी, उस वजह से चीन के आगे सरेंडर करने का एजेंडा फैला सो अलग।
अब सोचिये डोनाल्ड ट्रम्प तो ये पूरी दुनिया के साथ कर रहे है, मैं भारतीय हुँ ऊपर से दक्षिणपंथी। बाते शायद बायस्ड लगे इसलिए आप चीन के उदाहरण से समझिये।
चीन अमेरिका को यदि टेनिस बॉल का एक पैकेट 100 डॉलर मे बेच रहा है और अमेरिका मे उसे बनाने की क़ीमत 170 डॉलर है। ऐसे मे ट्रम्प चीन पर 54% टैरिफ़ लगाकर इसकी क़ीमत 154 डॉलर तक ले जा रहे है।
जाहिर है आप अमेरिका मे 170 मे उसे बना नहीं सकते, ऊपर से अब 100 की चीज 154 की पड़ेगी। ये सीधी मार जनता पर पड़ेगी और कम से कम 2-3 साल पड़ेगी उसके बाद विरोध उग्र हो जाए तो आप वापस लेने पर महज सोच सकोगे।
इस दो तीन साल मे टैरिफ़ से आपका खजाना भरेगा, लेकिन जनता की जेब जैसे जैसे खाली होंगी आप पर टैरिफ़ हटाने का दबाव बनेगा और अंततः बोझ राजस्व या जनता मे से किसी पर तो बैठना है।
इसलिए ट्रम्प ने ये एक तोता पाल लिया है जिसे अब ना ये पाल सकेंगे ना ही उड़ा सकेंगे। ट्रम्प के बाद कोई भी राष्ट्रपति बन जाए मगर उसके पास हमेशा अब लोअर हैंड रहना है। आप ये लिख लीजिये कि ये टैरिफ़ अमेरिका को जग सिरमौर नहीं रहने देगा।
दूसरी ओर भारत की बात करें तो हमारे लिये कष्ट समय जरूर है मगर एक मौका है, इंग्लैंड, फ़्रांस, जर्मनी और स्पेन जैसे देशो के साथ यदि फ्री ट्रेड डील हो जाए तो इनका मार्केट मिल सकता है हालांकि हमारी कम्पनियो को संरक्षण की आदत पड़ी हुई है।
इस समय आवश्यक ये है कि भारत के लोग सरकारी नौकरियों के बजाय व्यापार को प्राथमिकता दे। हमारी एक बड़ी आबादी जो योग्य है मगर मुखर्जी नगर की गलियों मे बर्बाद हो रही है, यदि ये आबादी स्व उद्यम की तरफ चल दे तो पूरी पलटी हो सकती है।
हमें सामाजिक सुधारो की आवश्यकता है लोगो का यदि सिविक सेन्स और नजरिया बदलने लगे तो ये ट्रम्प ने भारत को एक नो बॉल फेकी है टैरिफ़ सिर्फ भारत के सिर नहीं है पूरी दुनिया चपेट मे है।
कमी पड़ रही है तो बस अविष्कार आधारित कार्य की, हमारे यहाँ वो अविष्कार नहीं हो पा रहे कि हम यूरोप की कम्पनियो से भिड़ सके। इसलिए अगले 20-25 वर्ष माइंडसेट बदलने की जरूरत है। सरकारी नौकरी की नहीं स्व उद्यम की आवश्यकता है।
दूसरी तरफ चीन और भारत को अब सुलह करनी ही होंगी, चीन तो जापान और कोरिया के साथ भी अपने विवाद सुलझा रहा है,वही भारत के साथ भी उसने LAC पर शांति बना लीं है, यूनुस की बकवास पर भी चीन ने भारत को मौन समर्थन दे रखा है।
अमेरिका ने टैरिफ़ भले ही लगा दिये हो मगर एक दो बार यदि इनका बजट इस आंकड़े के आधार पर बनने लगा तो फिर ये टैरिफ़ उनके इको सिस्टम का अंग बनेगा और कांटे की तरह चुभेगा।
नीतियाँ वो होनी चाहिए जिन्हे समय बदलने पर वापस लिया जा सके, यदि नीतियाँ कठोरता से टिकी रही तो भविष्य मे जहर बन जाती है। वफ्फ का मुद्दा एक जीवंत उदाहरण है।
खैर अब देखना रोचक होगा कि ट्रम्प ने पत्ता तो फेक दिया है पर अब अगले 50 सालो मे सुपरपॉवर का ताज़ किसके सिर सजता है या शायद ये दुनिया बहुध्रुवीय हो जाए!
(लेखक विदेशी मामलों के जानकार हैं और यह उनके निजी विचार हैं)