लेखक- ओम लवानिया
प्रशांत नील की कहानी को डॉक्टर सूरी ने स्क्रीन प्ले दिया है हालांकि इसकी कहानी बैटमैन की थीम पर हिंदी फ़िल्म शहंशाह की कन्नड़ रीमेक है।
सूरी ने स्क्रीन प्ले अच्छे ग्रिप के साथ लिखा है किंतु क्लाइमैक्स और अच्छा हो सकता था। क्योंकि फ़िल्म में खलनायक का जिस निर्ममता के साथ इंट्रो दिया था, क्लाइमेक्स उसे पूर्ण नहीं कर पाता है फीका रहता है। लेकिन पायलट कंटेंट के तौर पर देखेंगे तो डिसेंट है। आगे की कहानी को बढ़िया नींव मिली है।
श्रीमुरली, ने सुपरकॉप के लिए अच्छा बॉडी शेप लिया है और बघीरा के साथ जमे है। बॉडी लैंग्वेज और हाव भाव कतई एंग्री यंग मैन वाले है। कहानी से जोड़े रखते है, भटकने नहीं देते है। ब्रदर इन लॉ प्रशांत ने कहानी तो लिखी है अगर स्क्रीन प्ले और निर्देशन देते तो प्रस्तुतिकरण ज़्यादा बेहतर होता। खैर
बीजीएम के साथ एक्शन सीक्वेंस, थ्रिल को पीक पर पहुंचाता है और वीएफएक्स मैन टू मैन फॉर्मेट में है ठेठ साउथ एक्शन फील नहीं आता है। कम बजट में अच्छा प्रोडक्शन स्तर रखा है, वरना ऐसे कंटेंट में बिग स्केल बजट डिमांड में आता है।
निर्माताओं ने बघीरा को पैन भारत नहीं रखकर रीजनल रिलीज़ दी थी। बाद में ओटीटी पर हिंदी डब करवाई है।
होम्बले फ़िल्म्स अपने प्रोडक्शन में अच्छे कंटेंट को शामिल करने के फोकस से आगे बढ़ रहा है। पिछली बड़ी डील तो ऐसा ही इशारा कर रही है। मुकेश खन्ना साहेब को सोनी पिक्चर छोड़कर होम्बले फिल्म्स से मिलना चाहिए और प्रशांत नील के साथ बैठकर शक्तिमान लिखें और श्रीमुरली के साथ आगे बढ़ेंगे, शानदार आउटपुट निकलेगा। निर्देशन भी बेस्ट स्टोरी टेलर नील के हाथों में थमा दें।
बघीरा फ़िल्म उदाहरण है कि इंस्पायर होकर अपने परिवेश में अच्छे कंटेंट बनाये जा सकते है। वरना, अधिकतर रीमेक कूड़ा व वाहियात बैठते आए है।
(लेखक फिल्म समीक्षक हैं)