लेखक-अरविंद जयतिलक
मानवाधिकार के क्षेत्र में काम करने वाले अंतर्राष्ट्रीय संगठन ‘ह्यूमन राइट्स वाॅच’ ने खुलासा किया है कि चीन अपने शिनजियांग प्रांत के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी मस्जिदें बंद कराने की दमनकारी नीति पर आमादा है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चीनी अधिकारियों ने उत्तरी नीशिआ और गांसू प्रांत में मस्जिदें बंद करा दी हैं। मस्जिदों की वास्तुकला शैलियों को भी खत्म किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने 2016 में धर्मों को चीन के अनुरुप करने का आह्नान किया था और उसके बाद ही मुस्लिम पहचान मिटाने का खेल शुरु हो गया। संयुक्त राष्ट्र की पिछले वर्ष की रिपोर्ट में ही कहा गया कि चीन शिनजियांग में ‘मानवता के खिलाफ अपराध किए हैं जिसमें गैर-न्यायिक नजरबदी शिविरों के नेटवर्क का निर्माण भी शामिल है।’ गौरतलब है कि चीन इन शिविरों में दस लाख उईगर, हुई, कजाख और किर्गिज लोगों को रखा है। ऑस्ट्रेलियन स्ट्रेटजिक पाॅलिसी इंस्टीट्यूट (एएसपीआई) द्वारा भी खुलासा किया जा चुका है कि चीन अपने पश्चिमी इलाके शिनजियांग प्रांत में 2017 के बाद 8500 से अधिक मस्जिदों को ध्वस्त कर चुका है।
उसने अक्सू में कम से कम 400 कब्रिस्तानों को अपवित्र कर उनके स्थान पर दूसरे ढांचे खड़े किए हैं। ऑस्ट्रेलियन स्ट्रेटजिक पाॅलिसी इंस्टीट्यूट (एएसपीआई) की मानें तो उसकी यह रिपोर्ट उपग्रह चित्रों के नमूनों पर आधारित है। संयुक्त राष्ट्र की नस्ली भेदभाव उन्मूलन समिति द्वारा भी कहा जा चुका है कि उसने 10 लाख से ज्यादा उइगर मुसलमानों को कथित तौर पर कट्टरवाद विरोधी गुप्त शिविरों में कैद कर रखा है। 20 लाख से अधिक
मुसलमानों पर विचारधारा बदलने का दबाव बना रहा है। इस रिपोर्ट के मुताबिक सामाजिक स्थिरता और धार्मिक कट्टरता से निपटने के नाम पर चीन ने उइगर स्वायत क्षेत्र को कुछ ऐसा बना दिया है जो गोपनीयता के आवरण में ढंका बहुत बड़ा नजरबंदी शिविर जैसा है। इन शिविरों में जबरन राष्ट्रपति शी चिनफिंग की वफादारी की कसमें दिलायी जाती है और कम्युनिस्ट पार्टी के नारे लगवाए जाते हैं। अमेरिका भी कह चुका है कि चीन में धार्मिक स्वतंत्रता संकट में है। एमनेस्टी समेत कई मानवाधिकार संगठन कह चुके हैं कि छोटा मक्का कहे जाने वाले पश्चिमी चीन के मुस्लिम बाहुल्य राज्य लिक्शिया में खौफ का माहौल है। अब यहां के बच्चे पहले की तरह न तो मदरसे जाते हैं और न ही मस्जिदों में नमाज के वक्त लोगों का हुजुम दिखता है।
दरअसल चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ने यहां के 16 वर्ष के कम उम्र के बच्चों को धार्मिक गतिविधियों में शिरकत करने पर पाबंदी लगा दी है। इस पाबंदी से वहां के मुस्लिम समुदाय के लोगों को अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुकूल आचरण करना कठिन हो गया है। गौर करें तो यह स्थिति सिर्फ लिक्शिया प्रांत तक ही सीमित नहीं है। चीन के अन्य मुस्लिम बहुल प्रांतो में भी कमोवेश ऐसी ही स्थिति है। चीन की सरकार ने इन प्रांतों में धार्मिक शिक्षा पर रोक लगा दी है। जिन मस्जिदों में कभी हजारों बच्चे कुरान पढ़ने के लिए आते थे, अब वहां उनका प्रवेश पूरी तरह प्रतिबंधित है। बच्चों के परिजनों को भी हिदायत दी गयी है कि वे बच्चों को मस्जिदों में कुरान पढ़ने के लिए न भेजें क्योंकि इससे वे धर्मनिरपेक्ष पाठ्यक्रमों पर ध्यान नहीं दे पाते हैं। यहां के स्थानीय प्रशासन ने उन छात्रों की तादाद घटा दी है जिन्हें 16 साल से अधिक उम्र के चलते मस्जिदों में पढ़ने की अनुमति मिली हुई है।

मस्जिदों में नियुक्त किए जाने वाले नए इमामों के लिए प्रमाणपत्र हासिल करने की प्रक्रिया को भी सीमित कर दिया गया है। चीन की कम्युनिस्ट सरकार शिनजियांग प्रांत में और भी अधिक कठोरता से पेश आ रही है। यहां के रहने वाले उइगर समुदाय के लोगों को शिक्षा शिविरों में डाल दिया गया है जहां उन्हें कुरान पढ़ने या दाढ़ी रखने की सख्त मनाही है। गत वर्ष चीन की सरकार ने यहां के मुस्लिम समुदाय के लोगों को चेतावनी दी थी कि वे नाबालिगों को कुरान पढ़ने के लिए या धार्मिक गतिविधयों में भाग लेने के लिए मस्जिदों में न जाने दें और न ही इसका समर्थन करें। अगर वे ऐसा करते हैं तो उन्हें दंड भुगतना होगा। चीन की सरकार ने यहां के मस्जिदों पर राष्ट्रीय झंडा लगाना अनिवार्य कर दिया है और ध्वनि प्रदूषण की आड़ में इन मस्जिदों के इमामों को चेताया है कि वह नमाज के लिए माइक के जरिए लोगों को बुलावा न भेंजे। साथ ही मुस्लिम बहुल राज्यों के तकरीबन सभी मस्जिदों से लाउडस्पीकरों को हटा दिया गया है। जब दुनिया भर के मुसलमान रमजान महीने में रोजा रखते हैं तब यहां की सरकार शिनजियांग, निंगश्यांग, गुआंग्शी, कानसू, छिंगहाई और यूननान प्रांत में बसे मुसलमानों के रोजा पर पाबंदी लगाती है। सरकार के इस रवैए से यहां रह रहे मुसलमानों के मन में इन प्रतिबंधों से यह धारणा पनपने लगी है कि सरकार उनकी रीति-रिवाज और परंपाओं को खत्म करने पर आमादा है। उइगर समुदाय को लग रहा है कि सरकार 1966 का माहौल निर्मित करना चाहती है, जिस दौरान मस्जिदों को ढहा दिया गया फिर जानवरों को रखने की जगह के रुप तब्दील कर दिया गया। चीन के इस रवैए से वहां का मुस्लिम समुदाय बेहद खफा है।
उसे आशंका है कि यह कठोर प्रतिबंध जारी रहा तो उनका वजूद खत्म हो जाएगा। दरअसल गौर करें तो चीन उइगर मुस्लिमों पर इसलिए ज्यादती कर रहा है कि विगत वर्षों में चीन में कई आतंकी घटनाएं हुई हैं जिनमें कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों का हाथ रहा है। 2015 में चीन के दक्षिणी हिस्से गुआंग्शी स्वायतशासी क्षेत्र में डेढ़ दर्जन लेटर बम धमाके हुए थे। इस धमाके में तकरीबन आधा दर्जन लोगों की मौत हुई थी और पांच दर्जन से अधिक लोग बुरी तरह घायल हुए थे। सरकार ने जांच में पाया कि यह कृत्य अतिवादी इस्लामिक कट्टरपंथियों का है जिनमें शिंजियांग प्रांत के उइगर मुस्लिम युवा शामिल हंै। चीन उईगर मुसलमानों की निष्ठा को लेकर तब से सशंकित है जब चीन में ओलंपिक हुआ था और उस समय उइगर समुदाय के 122 विद्रोहियों ने खुलेआम विरोध किया था। नतीजा ओलंपिक समाप्त होने के बाद चीन की सरकार ने सभी विद्रोहियों को गोलियों से भून दिया था। चीन की सरकार इस नतीजे पर है कि भले ही उसने तत्कालीन आक्रोश को दबा दिया लेकिन उसकी आग अभी बुझी नहीं है। चूंकि इस्लामिक आतंकी संगठन पहले ही शिनजियांग प्रांत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने का आह्नान कर चुके हैं ऐसे में चीन एक रणनीति के तरत उइगर मुसलमानों के खिलाफ काम कर रहा है। शिंजियांग प्रांत की बात करें तो यह प्रांत प्रारंभ से ही संवेदनशील रहा है। यहां 40 से 50 फीसदी आबादी उइगर मुसलमानों की है जिसे काबू में करने के लिए वह एक विशेष रणनीति के तहत यहां हान वंशीय चीनियों को बड़ी संख्या में बसाना शुरु कर दिया है।
नतीजा उइगर मुसलमानों की संख्या सिकुड़ने लगी है। वह चीनी हान वंशियों की आबादी के आगे अल्पसंख्यक बन कर रह गए हैं। ऐसे में उइगर मुसलमानों को अपनी संस्कृति को लेकर चिंता बढ़ गयी है। यहीं वजह है कि वे चीनी सरकार से स्वायतता की मांग कर रहे हैं। चीनी साम्यवादी सरकार को उइगर मुसलमानों की यह मांग नाजायज और असहज करती है। उसे इस मांग में आतंकियों की साजिश नजर आती है। यही कारण है कि चीन इस मांग को लगातार खारिज करता रहा है। बहरहाल चीन चाहे जिस नतीजे पर हो लेकिन उसे अपने लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिए। उसे समझना होगा कि अगर उसकी धरती पर आतंकी गतिविधियां बढ़ रही हैं तो उसके लिए सिर्फ वहां रहने वाले मुस्लिम समुदाय ही जिम्मेदार नहीं है। सच तो यह है कि उसकी नीतियां भी जिम्मेदार हैं। दुनिया देख रही है कि वह किस तरह पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मुहम्मद के प्रमुख और पठानकोट आतंकी हमले के मास्टरमांइड मसूद अजहर का बचाव करता है। उचित होगा कि वह अपने नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकार का हनन करने के बजाए आतंकी संगठनों को प्रश्रय देना बंद करे।

(लेखक राजनीतिक व सामाजिक विश्लेषक हैं)