लेखक – अमित सिंघल
देश की आर्थिक राजधानी माने जाने वाले राज्य महाराष्ट्र के पुणे में एक 17-वर्षीय अवयस्क कार चालक ने दो बाइक सवार व्यस्को को मार गिराया। इस सन्दर्भ में कुछ तथ्य है (ना कि ओपिनियन), जो मोटे तौर पर सर्वमान्य है।
- प्रातः 3 बजे दुर्घटना के समय कार की गति 160 किलोमीटर थी।
- अवयस्क एक बार में “कुछ” पीते हुए देखा गया था जिसकी वीडियो उपलब्ध है।
- दुर्घटना के बाद आम नागरिको ने कार चालक को बाहर निकाला, जो वही अवयस्क था और उनकी पिटाई कर दी। इसका भी वीडियो उपलब्ध है।
- कार उस अवयस्क के पिता के नाम रजिस्टर है।
- कार में कुछ अन्य अवयस्क भी बैठे थे।
- दोनों बाइक सवारों ने हेलमेट नहीं पहना था।
बहुत डिटेल में ना जाकर, आज उपलब्ध सार्वजानिक जानकारी को देखते है।
- अवयस्क के माता-पिता ने अपने एक कर्मी – जो ड्राइवर है – को उस समय कार चलाने की जिम्मेवारी लेने को कहा। यह कार्य उस कर्मी ने कर दिया।
- पुलिस स्टेशन में अवयस्क का ब्लड सैंपल लेने के पहले उसे पिज़्जा एवं अन्य गरिष्ठ भोजन खिलाया गया जो खून में शराब के स्तर को कम कर देता है।
- अवयस्क का ब्लड सैंपल दुर्घटना के 8 घंटे बाद प्रातः 11 बजे एक सरकारी अस्पताल में लिया गया।
- जिन दो डॉक्टरों ने ब्लड को हैंडल किया था, उन्होंने उस सैंपल को बदल दिया।
- न्याय परिसर ने पहले अवयस्क को बेल दी थी, जिसमे संशोधन करके उसे बाल सुधार गृह में डाल दिया गया है। अवयस्क का पिता एवं बार के दो कर्मी भी जेल में है।
- कहा जाता है कि यह सभी कार्यवाई अवयस्क के वकील की जानकारी में की गयी थी ।
अब आते है मूल विषय पर।
दो सरकारी डॉक्टर, कई पुलिस कर्मी, वकील, न्याय परिसर, बार कर्मी, अवयस्क का परिवार, जो इस केस से जुड़े हुए है – ये सभी हमारे-आपके बीच में से आते है।
डॉक्टरों को पता होता है कि ब्लड सैंपल के डीएनए टेस्ट में पता चल जाएगा कि उन्होंने सैंपल बदल दिया है। फिर भी उन्होंने ऐसी अनैतिक एवं भ्रष्ट कार्य किया। अगर बाइक सवार बच भी जाते, तब भी डॉक्टर को ऐसा नहीं करना चाहिए था।
पुलिस को पता होता है कि ऐसी सभी दुर्घटनाओं में पहला कार्य ब्लड सैंपल कलेक्ट एवं उसकी जांच करवाना अनिवार्य है। सैंपल कलेक्ट होने के पूर्व आरोपी व्यक्ति को कुछ भी खाने नहीं दिया जाता है।
वकील को पता है कि अवयस्क मुख्य आरोपी है, फिर भी वह उसे बचाने के लिए तथाकथित रूप से “अनैतिक एवं भ्रष्ट” साधनो का सहारा ले रहा है। होना यह चाहिए था कि वकील केवल केस की मेरिट, कि दुर्घटना के समय चालक अवयस्क था, पर जोर देता और आरग्यु करता कि उस केस को अवयस्क कानून के अंतर्गत परखना चाहिए। संभव था कि अवयस्क कुछ क़ानूनी पचड़ो से जूझने के बाद स्वतंत्र घूम रहा होता। अवयस्क कानून है ही ऐसा।
पुलिस को कार के ओनर, अर्थात अवयस्क के पिता से पूछ-ताछ करनी चाहिए थी, उसे इस केस में आरोपी बनाना चाहिए था एवं न्याय परिसर से उसकी पुलिस रिमांड (गिरफ़्तारी) की मांग करनी चाहिए थी।
इस केस के बारे में अवयस्क के माता-पिता एवं दादा का जान-बूझकर किया गया अनैतिक एवं भ्रष्ट व्यवहार भी उल्लेखनीय है।
बार कर्मियों को अवयस्क से फोटो पहचान पत्र मांगकर उसकी आयु की जांच करनी चाहिए थी। संभव है कि वे बार के ओनर के दबाव में ऐसा नहीं कर रहे थे। अगर वे कर्मी ऐसा कोई बयान दे देते है, तो ओनर को भी अरेस्ट करना चाहिए।
न्याय परिसर के बारे में कमेंट नहीं करूँगा। कुछ नहीं लिखा है, लेकिन इशारा काफी है।
दोनों बाइक सवार पुणे जैसे शहर में बिना हेलमेट के सैर कर रहे थे।
अंत में, यह दुर्घटना, एवं उससे सम्बंधित अनैतिक और भ्रष्ट प्रक्रिया महाराष्ट्र जैसे सबसे समृद्ध एवं धनी राज्य के पुणे शहर में हुई।
हम बिहार एवं बंगाल को लेकर अपनी विवशता एवं हताशा व्यक्त करते है। लेकिन अनैतिक और भ्रष्ट आचरण के सन्दर्भ में महाराष्ट्र एवं बिहार-बंगाल में कोई अंतर नहीं है।
प्रश्न यह उठता है कि अगर यह दुर्घटना योगी जी के यूपी में हुई होती, तो क्या पुलिस-वकील-डॉक्टर-बार कर्मी-न्यायालय परिसर का व्यवहार अलग होता? क्या यह सभी आवश्यक नैतिक स्पष्टता (moral clarity) का सर्वोच्च आदर्श रखने में सक्षम होते?
एक प्रश्न स्वयं से भी। पुलिस-वकील-डॉक्टर-बार कर्मी-न्यायालय परिसर – यह सभी “सम्मानित” प्रोफेशन है (कुछ लोग बार कर्मी पर असहमत हो सकते है – लेकिन मैं बार एवं रेस्टोरेंट कर्मियों को पुलिस-वकील-डॉक्टर के समक्ष रखता हूँ – सभी “अपना” कार्य करते है)। निम्न एवं मध्यम वर्ग के लोग इन्ही प्रोफेशन को ज्वाइन करना चाहते है। लेकिन जब एक क्रिटिकल अवसर आया, वे सभी खोखले पाए गए।
भ्रष्टाचार हमारी नसों में घुस गया है; लेकिन हम उस तथ्य को स्वीकार करने से हिचकते हैं।

(लेखक प्रसिद्ध ब्लॉगर हैं और निजी संस्थान में उच्च पद पर कार्यरत हैं)