लेखक- सुभाषचंद्र
वर्षो से देखा जा रहा है कि हिन्दुओं के पवित्र त्यौहार दीपावली के आते-आते “प्रदूषण” पर विधवा विलाप सुप्रीम कोर्ट में शुरू हो जाता है।
दिपावली के पर्व को बर्बाद करने के लिए ही जैसे पराली जलाने की तमाम योजनाएं शुरू हो जाती हैं ,केजरीवाल की सरकार और फिर सुप्रीम कोर्ट सबसे पहला हमला “पटाखों” पर करते हैं।
यह तमाशा हर साल होता है और फिर दीपावली के कुछ ही दिन के बाद “प्रदूषण” स्वतः नियंत्रण में आ जाता है बिना किसी विशेष प्रयास के, लेकिन दीपावली के पर्व के रंग में भंग डालने में सुप्रीम कोर्ट कोई कोर कसर नहीं छोड़ती।
एक बार तो ऐसी याचिका दायर की गई थी जिसमें याची 6 महीने ऐसे डेढ़ साल के 3 बच्चों को बनाया गया था जिन्हे नाक साफ़ करने की समझ भी नहीं थी और सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई कर हाय तौबा मचा दी थी।
दीपावली के कथित प्रदूषण के लिए ऐसा ढोल पीटा जाता है कि सांसों पर पहरा लग गया जी, इतने बच्चे बीमार हो गए, इतने बूढ़े अस्पतालों में भर्ती हो गए इत्यादि-इत्यादि।
जबकि साल के बारह महीने लोग बीमार होते हैं प्रदूषण समेत अनेक कारणों से लेकिन दीपावली पर हमला केवल किया जाता है “पटाखों” पर।
एक अध्ययन के अनुसार प्रदूषण मुख्यतः 4 कारणों से होता है जिनमें 51% प्रदूषण Industrial Pollution से, 27% मोटर गाड़ियों से; 17% फसलों के जलाने से (पराली से) और 5% अन्य कारणों से होता है।
अब आप समझ लीजिए कि जो 5% प्रदूषण अन्य कारणों से होता है, उसमें “पटाखे” भी शामिल हैं और शायद इसमें से मात्र 2% का योगदान पटाखे जलाने से होता है,लेकिन सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की सोच और समझ से ऐसा माहौल बनाया जाता है कि जैसे सारा प्रदूषण पटाखों से ही होता है।
मजेदार तो यह देखना है कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश दीपावली की रौनक बर्बाद करके खुद दशहरे की भी छुट्टियों पर चले जाते हैं और दिवाली की छुट्टियों पर जाना भी अपना “मौलिक अधिकार” समझते हैं।
जब 27% प्रदूषण मोटर गाड़ियों से होता है तो सुप्रीम कोर्ट के जजों को अपनी अपनी गाड़ियों में आने की बजाय सरकार से विशेष “बस सर्विस” शुरू करने के लिए कहना चाहिए और सभी को उस बस में आना चाहिए।
दीपावली को बर्बाद करने के लिए “Bollywood” के एजेंडाबाज़ कलाकार भी लाइन लगा कर प्रचार में लग जाते हैं कि पटाखे मत जलाओ,जबकि सुप्रीम कोर्ट, केजरीवाल और ये Bollywood के कतिपय लोग कभी X -mas पर क्रिसमस ट्री को और बकरीद पर बकरे काटने को बैन करने की बात करने की हिम्मत कभी नहीं करते।

(लेखक उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं और यह लेखक के निजी विचार हैं)