लेखक-अरविंद जयतिलक
गत महीने 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में भारत ने ऑपरेशन सिंदूर अभियान के तहत पाकिस्तान स्थित आतंकी और सैन्य शिविरों को ध्वस्त कर उन्हें मिट्टी में मिला दिया। लेकिन सवाल जस का तस है कि क्या अब पाकिस्तान अपनी भूमि से भारत के खिलाफ आतंकवाद को प्रश्रय देना बंद कर देगा? क्या अब वह आतंकियों को फंडिंग नहीं करेगा? क्या विश्व समुदाय पाकिस्तान पर कड़ी कार्रवाई करेगा? ढेरों ऐसे सवाल हैं जो मुंह बाए खड़े हैं। ऐसा इसलिए कि पाकिस्तान भरोसे के काबिल नहीं हैै और वह आतंकी कृत्यों को अंजाम देने से बाज नहीं आता है। भारत ही नहीं दुनिया को भी पता है कि वह अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से मिलने वाली आर्थिक मदद से आतंकियों को फंडिंग करता है। लेकिन विडंबना है कि विश्व समुदाय पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई को तैयार नहीं है। अभी हाल में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने पाकिस्तान को मौजूदा एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी के तहत लगभग एक अरब अमेरिकी डॉलर की किस्त मंजूर की है। विचार करें तो आतंक का कारखाना चलाने वाले पाकिस्तान को यह बड़ी आर्थिक मदद ऐसे समय में की गई है जब वह भारत के खिलाफ अपनी नापाक हरकते करते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया है। आश्चर्य की बात यह कि भारत ने पाकिस्तान को दी जाने वाली मदद का विरोध किया लेकिन इसके बावजूद भी उसे मदद दी गई। मतलब साफ है कि आतंकवाद को लेकर अभी भी अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं और जिम्मेदार देशों के आंख पर पट्टी पड़ी हुई है। सच कहें तो पाकिस्तान को आर्थिक मदद देने का सीधा मतलब आतंक को समर्थन देने जैसा है। याद होगा गत वर्ष पहले ऐसे ही कृत्यों की ओर इशारा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि कुछ देश अपनी विदेश नीति के तहत आतंकवाद का समर्थन करते हैं, तो कुछ आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई रोककर ऐसा करते हैं। तब प्रधानमंत्री मोदी ने विश्व समुदाय से आह्नान किया था कि वे आतंकवाद का समर्थन करने वाले देशों को इसकी कीमत चुकाने के लिए मजबूर करें। उन्होंने यह भी कहा था कि सभी आतंकवादी हमलों का एक समान विरोध होना चाहिए। इस वक्तव्य के जरिए प्रधानमंत्री ने उन देशों को आईना दिखाया था जो आतंकवाद की समग्र व्याख्या करने से कतराते हैं। लेकिन विडंबना है कि इस सच्चाई से अपनी आंख बंद किए हुए हैं। नतीजा सामने है। दुनिया भर में आतंकवाद को लेकर अलग-अलग नजरिए के कारण ही आज आतंकवाद से निपटने में कामयाबी नहीं मिल रही है। जबकि भारत हमेशा से कहता आ रहा है कि आतंकवाद को ‘गुड आतंकवाद और बैड आतंकवाद’ के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। आतंकवाद की एक परिभाषा होनी चाहिए। लेकिन विडंबना है कि विश्व समुदाय इसकी लगातार अनदेखी कर रहा है और उसका कुपरिणाम भी भुगत रहा है। याद होगा वर्ष 2022 में देश की राजधानी दिल्ली में संपन्न आतंकवाद रोधी वित्तपोषण सम्मेलन में भारत ने उन देशों को सख्त चेतावनी दी थी जो प्रत्यक्ष-परोक्ष रुप से टेरर फंडिंग में शामिल हैं। तब केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से ‘आतंक के लिए कोई धन नहीं’ विषय पर आयोजित इस सम्मेलन में तकरीबन 72 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था और टेरर फंडिंग से निपटने के संदर्भ में अपने विचार रखे थे। लेकिन वे सभी विचार कागजों तक ही सीमित होकर रह गए हैं। नतीजतन दुनिया भर में आतंकी गतिविधियां जारी है। गौर करें तो आज की तारीख में सोशल मीडिया प्लेटफार्म के जरिए क्राउडफंडिंग कर आतंकी गतिविधियों में धन लगाया जा रहा है। चिंता की बात यह कि इन मामलों में लगातार इजाफा हो रहा है। लेकिन इससे निपटने के लिए अभी तक कोई ठोस पहल होती नहीं दिख रही है। उचित होगा कि हवाला, वायर ट्रांसफर या कैश कुरियर टेरर फंडिंग के जो कई आयाम हैं उन्हें अतिशीध्र ध्वस्त किया जाए। दुनिया के सभी जिम्मेदार देशों की खुफिया एजेंसियों को चाहिए कि वे टेरर फंडिंग के रुट्स पर नजर रखते हुए उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई करें। इस पहल के जरिए ही मनी लॉड्रिंग को लेकर आतंकी संगठनों पर नकेल कसी जा सकती है। मौजूदा समय में आतंकी फंडिंग में क्रिप्टो करेंसी का इस्तेमाल जोरों पर है। ऐसे में एजेंसियों के लिए डार्कवेव के जरिए हो रही आतंकी फंडिंग को रोकना भी एक बड़ी चुनौती बन गई है। इसका उपाय यह है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर एक समान वैश्विक कानून के दायरे में लाया जाए। जरुरी यह भी है कि इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर की सही जानकारी सभी देशों के पास रहे जिससे कि फर्जी तरीके से की जा रही आतंकी फंडिंग पर लगाम कसी जा सके। यही नहीं उन देशों के खिलाफ भी प्रत्यक्ष और ठोस कार्रवाई होनी चाहिए जो खुलेआम अपनी भूमि पर आतंकियों को प्रश्रय और फंडिंग करने में लिप्त है। ऐसे देशों में पाकिस्तान शीर्ष पर है। दुनिया को अच्छी तरह पता है कि पाकिस्तान दशकों से भारत के खिलाफ कट्टरवाद और जेहाद को प्रश्रय देता आ रहा है। वह भारत में खालिस्तानी गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए भी टेरर फंडिंग करता है। सिख फॉर जस्टिस जैसे खालिस्तानी संगठन कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी में रहकर भारत के खिलाफ फर्जी प्रोपगंडा फैलाते हैं। इन मामलों में पाकिस्तान की भूमिका उजागर हो चुकी है। लेकिन विडंबना है कि इस मसले पर कोई भी देश पाकिस्तान के खिलाफ खुलकर बोलने को तैयार नहीं है। दुनिया यह भी जानती है कि पाकिस्तान इस्लामिक स्टेट, अलकायदा, लश्कर ए तैयबा, जैश-ए-मुहम्मद, हक्कानी नेटवर्क, टीआरएफ, जमात-उद-दावा, फलाह-ए-इंसानियत और तालिबान से जुड़े लोगों की वित्तीय मदद करता है। याद होगा गत वर्ष पहले अमेरिका ने खुद पाकिस्तान को आतंकवाद का गढ़ घोषित करते हुए उसे दी जाने वाली सहायता पर रोक लगाने की चेतावनी दी थी। लेकिन वह इस पर टिका नहीं रहा। अब वह पुनः पाकिस्तान को आर्थिक मदद देना शुरु कर दिया है। जबकि उसे पता है कि पाकिस्तान आतंकवाद से निपटने के नाम पर दुनिया को धोखा देता है। अमेरिका खुद स्वीकार चुका है कि वह आतंकवाद से निपटने के लिए पाकिस्तान को 2009 से अब तक 4 अरब अमेरिकी डॉलर का मदद दे चुका है। वह यह भी जानता है कि पाकिस्तान इस धन का इस्तेमाल अपने विकास और आतंकी गतिविधियों के खिलाफ करने के बजाए भारत में आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने में करता है। पाकिस्तान मनी लॉन्ड्रिंग व टेरर फंडिंग के खिलाफ कार्रवाई के 10 मानदंडों में लगातार फिसड्डी साबित होता रहा है। याद होगा अमेरिकी कांग्रेस की सालाना रिपोर्ट 2016 में कहा जा चुका है कि पाकिस्तान आतंकवाद पर दोहरा रुख अपनाते हुए लश्कर ए तैयबा और जैश ए मुहम्मद जैसे आतंकी संगठनों को मदद पहुंचाता है। गत वर्ष पहले अमेरिकी विदेश विभाग की वार्षिक रिपोर्ट से यह भी उद्घाटित हुआ था कि पाकिस्तान के संघ प्रशासित कबायली क्षेत्र (फाटा), पूर्वोत्तर खैबर पख्तुनवा और दक्षिण-पश्चिम ब्लूचिस्तान क्षेत्र में कई आतंकी संगठन पनाह लिए हुए हैं और यहीं से वे स्थानीय, क्षेत्रीय और वैश्विक हमलों की साजिश बुनते हैं। लेकिन इस सच्चाई के बावजूद भी अमेरिका और उसके जैसे तमाम देश पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्रवाई से बचते-हिचकते हैं। ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारत ही आतंकवाद से पीड़ित है। जेहादी और कट्टरवादी ताकतें हर जगह आतंक मचा रही हैं। याद होगा गत वर्ष पहले जेहादी आतंकियों ने पेरिस में एक कार्टून मैगजीन ‘शार्ली अब्दो’ के कार्यालय में घुसकर मुख्य कार्टुनिस्ट और प्रधान संपादक समेत 20 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। अमेरिका के लास वेगास शहर में एक संगीत समारोह में आतंकी हमला कर पांच दर्जन से अधिक लोगों को मौत की नींद सुला दिया गए। आए दिन इस तरह की जेहादी और कट्टरवादी हत्याएं दुनिया को विचलित करती रहती हैं। लेकिन सच कहें तो आतंकवाद पर रोक न लग पाने के लिए आतंकवाद की भिन्न-भिन्न परिभाषाएं, विश्व बिरादरी की विभाजनकारी मानसिकता, विश्वशांति के प्रति अदूरदर्शिता और असमन्वयपूर्ण सामरिक विफलता ही मुख्य रुप से जिम्मेदार है।

(लेखक राजनीतिक व सामाजिक विश्लेषक हैं)