(मुकेश सेठ)
(मुम्बई)
मुख्तार के खौफ से कांप उठी थीं यूपी सीएम रहते मायावती बताया था डॉन से जान का खतरा
काले साम्राज्य में जलवेदार रहे मुख्तार के रसूख और रुतबे से सियासी फ़ायदे के लिए मुलायम, मायावाती ने बनाया था “गेमचेंजर”
मऊ सीट से लगातार 5 बार विधायक रहे मुख्तार अंसारी ने 90 के दशक में माफिया राजनेता रहे हरिशंकर तिवारी के बाहुबली मखनू सिंह से सीखा माफियागिरी
बाहुबली साहिब सिंह और दीवान राजेन्द्र सिंह की हत्या में पहली बार सामने आया था वन शॉट मर्डरर मुख्तार अंसारी का नाम
अवशेष राय हत्याकांड में अजीवन कारावास समेत 1 लाख अर्थदंड तो विधायक कृष्णानंद राय मर्डर केस में मुख्तार को 5 लाख जुर्माने के साथ दस साल की कैद
“मुख्तार अंसारी नाम है मेरा” यह सुनाते ही शरीर में सर्द सिहरन पैदा कर देने वाले माफिया डॉन मुख्तार अंसारी की मौत आज रात हार्ट अटैक के चलते बांदा के अस्पताल में हो जाने से पूर्वांचल ही नहीं बल्कि सूबे में दहशत की दुनियां का एक अध्याय बन्द हो गया।
मुख्तार अंसारी की मौत की ख़बर आते ही जहां पैतृक निवास मोहम्दाबाद में रिश्तेदारों,समर्थकों की आमद होनी शुरू हो गई तो वहीं शासन ने प्रदेश में धारा 144 लागू कर कई जनपदों में पुलिस बल को अलर्ट पर कर दिया है।
विदित हो कि अभी दो दिन पूर्व भी हालत बिगड़ने पर मुख्तार अंसारी को जेल प्रशासन ने बांदा अस्पताल में भर्ती कराया था जहां पर गंभीर दशा देखकर उनको आईसीयू में भर्ती किया गया था।
मुख्तार अंसारी के बड़े भाई और गाजीपुर सांसद अफजाल अंसारी समेत कुछ लोगों ने मुख्तार अंसारी को जेल में मिलने वाले खाने में धीमे जहर मिलाकर मुख्तार अंसारी की हत्या की साजिश का आरोप लगाकर सनसनी फ़ैला दीं थी।
जिस पर सुबाई सरकार ने इसका खंडन किया था।
जीते जी 61 केस के बोझ वाले माफिया को योगी सरकार ने अपने “मिट्टी में मिला दूंगा” अभियान के तहत वक्र दृष्टि डाल दी।
नतीजा वन शॉट मर्डरर माफिया से खादी चढ़ाकर सियासी सूरमाओं के आंखो के तारे बन पॉलिटिक्स वर्ल्ड में हॉटस्टार बनने वाले मुख्तार अंसारी के सितारे बुझते चले गए और सरकार ने आर्थिक और आपराधिक साम्राज्य धूल धूसरित करने में सफ़ल होते रहे।
तक़रीबन 600 करोड़ की सम्पत्ति पर बाबा का बुलडोजर दौड़ चूका है ओर तमाम नामी बेनामी प्रॉपर्टी शासन ने जब्त भी की है।
मुख्तार अंसारी गैंग की कमर तोड़ने में काफ़ी हद तक कामयाब रही सरकार ने मुख्तार अंसारी गैंग के तमाम कत्लबाजों और उगाही वाले दौलत से मुख्तार अंसारी और अपने लिए आर्थिल साम्राज्य खड़ा करने वाले कई लोगो को भी सरकार ने जेल के सलाखों के पीछे भेजते हुए बुलडोजर दौड़ा कर संपत्तियों को ध्वस्त करवाया और कब्जे में भी लिया है।
लगातार 5 बार मऊ विधानसभा सीट से जीतकर मुख्तार अंसारी बखूबी अपना मसलपावर व पोलिटिकल पॉवर सूबे में दिखाता रहा।
इसने अपने बड़े भाई अफजाल अंसारी को 1985 में पहली बार में चुनावी मैदान में उतार कर जीत दिलाई और फिर 1989 में भी विधायक बनवाया।
गाजीपुर लोकसभा सीट से मुख्तार अंसारी के तिलिस्म के बूते 2004 और 2019 के लोकसभा के चुनाव में भाजपा के दिग्गज नेता मनो सिन्हा को भी परास्त कर देश की सबसे बड़ी पंचायत में पहुंचने में सफल रहे अफजाल अंसारी।
चर्चा है कि मुलायम, मायावती राज में मुख्तार अंसारी के आंखो के इशारे प्रशासन बखूबी समझ कोर्निश करने लगता था, वह जेल में रहा तो डीएम,एसपी प्रतिदिन हाज़िर हो जाते रहे और साथ में बैडमिंटन खेलकर अपनी कुर्सी सरकने से बचाने की जुगत रहे।मुख्तार का दरबार जेल में भी सजता रहा तो जेल से बाहर आने के बाद भी।
विधायक कृष्णानंद राय, डॉ.अवधेश राय हत्याकांड में आजीवन कारावास व लाखों रूपए अर्थदंड के चलते विधायकी गवाने वाले सजायाफ्ता मुखतार अंसारी बांदा जेल में कैदी था।
मुख्तार अंसारी का जन्म गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद में 3 जून 1963 को हुआ था। उसके पिता का नाम सुबहानउल्लाह अंसारी और मां का नाम बेगम राबिया था। मुख्तार अंसारी तीन भाईयों में सबसे छोटा रहा और उसकी बीवी का नाम अफशां अंसारी है। मुख्तार के दो बेटे अब्बास अंसारी व उमर अंसारी है इन दोनो पर भी कई केस दर्ज है।
मुख्तार अंसारी प्रदेश और देश में बेहद कुख्यात रहा किन्तु वह बड़े रईस और रसूखदार परिवार वाला रहा।
उसके दादा डॉक्टर मुख्तार अहमद अंसारी देश के बड़े सियासतदा थे और वह कांग्रेस के नेशनल प्रेसिडेंट भी रहे तथा महात्मा गांधी के काफ़ी भरोसेमंद माने जाते थे। नाना ब्रिगेडियर उस्मान 1947 में पाकिस्तान द्वारा कश्मीर पर आक्रमण कर देने के दौरान नौशेरा की जंग में शहीद हो गए जिस पर भारत सरकार द्वारा उन्हे मरणोपरांत महावीर चक्र प्रदान किया गया था।
पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी मुख्तार अंसारी के रिश्ते में चाचा लगते हैं।
90 के दशक में मुख्तार अंसारी ने उस दौर में गोरखपुर निवासी और माफिया राजनेता के रूप में मशहूर हरिशंकर तिवारी के ख़ास मखनू सिंह की शागिर्दी में क्राइम का ककहरा पढ़ने वाले मुख्तार अंसारी का नाम साहिब सिंह और पुलिस विभाग में दीवान के पद पर कार्यरत राजेन्द्र सिंह की वन शॉट बुलेट मर्डर केस में मुख्तार अंसारी का नाम आया था।
मुख्तार अंसारी बेहद अचूक निशानेबाज था।
मुख्तार अंसारी और दूसरे बड़े माफिया बृजेश सिंह में रेलवे और सरकार के भारी भरकम ठेके को लेकर पैदा हुई अदावत ने पुर्वांचल ही नहीं बल्कि सूबे में अनेकों बार हुए गैंगवार में तमाम लाशे दोनों तरफ़ से गिरी है तो धरती पर लहू की लहरे भी उमड़ती रही।
मालुम हो कि 26 लोकसभा और 130 विधानसभा सीटों वाले पूर्वांचल का देश की राजनीति में बेहद अहम रोल है। इसी पूर्वांचल में वाराणसी, गाजीपुर, बलिया, जौनपुर और मऊ में एक दौर था जब मुख्तार अंसारी की तूती बोलती थी।
इन इलाकों में मुख्तार अंसारी और अंसारी परिवार का इन इलाकों में कितना दबदबा है ये इस बात से समझ लीजिए कि यूपी के दो तत्कालीन मुख्यमंत्रियों मुलायम सिंह यादव और मायावती ने उसे सिर आंखों पर बैठाया।
मुख्तार अंसारी का कालेज स्टूडेंट से माफिया बनने का सफर
90 के दशक में ये वो दौर था जब पूर्वांचल में एक नये तरह का अपराध सिर उठा रहा था। रेलवे शराब और दूसरे सरकारी ठेके हासिल करने की रेस में अपराधियों के कई गैंग उभरने लगे थे। पूर्वांचल में माफिया डॉन और बाहुबली तेजी से उभर रहे थे।
गाजीपुर के कॉलेज में पढ़ाई कर रहे मुख्तार को इस ताकत का अंदाजा लग चुका था। उन्हीं दिनो मुख्तार ने एक बाहुबली मखनू सिंह से हाथ मिला लिया। मखनू सिंह पूर्वांचल के दिग्गज नेता हरिशंकर तिवारी का खास हुआ करता था। तभी मखनू सिंह की त्रिभुवन सिंह के साथ एक जमीन पर कब्जे को लेकर गैंगवार में लाशें गिरने का सिलसिला शुरु हो गया। तभी एक कोर्ट परिसर में हुए एक गोलीकांड के बाद एक नाम उभर कर आया। नाम था मुख्तार अंसारी। इसमें मखूनी के दुश्मन साहिब सिंह की गोली लगने से हत्या हुई थी। कत्ल के बाद जो नाम सुर्खियों में आया वो मुख्तार का था। कहा जाता है वो गोली मुख्तार ने चलाई थी, लेकिन किसी ने उसे गोली चलाते हुए देखा भी नहीं था। सिंगल गन शॉट में कत्ल का यह केस बेहद रहस्यमय और हैरान करने वाला था। कुछ दिन बाद पुलिस लाइन के अंदर खड़े हुए एक दीवान की इसी अंदाज में हत्या हुई थी। नाम था राजेन्द्र सिंह। इस हत्या के बाद भी जो नाम सामने आया वो मुख्तार का ही था।
90 के दशक में पूर्वांचल के एक बड़े क्षेत्र वाराणसी, जौनपुर, गाजीपुर, मऊ और बलिया में उभरते हुए बाहुबली मुख्तार अंसारी का दबदबा कायम हो चुका था और वो प्रदेश की राजनीति में कई नेताओं की नजर में आ गया था। धीरे धीरे राजनीति में उसकी पूछ बढ़ रही थी। साल 1985 में मुख्तार अंसारी का भाई अफजाल अंसारी पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतरे। उस समय मुख्तार का असर कुछ ऐसा था कि पहली बार में ही अफजाल अंसारी को जीत मिल गई। इसके बाद 1989 के चुनाव में भी अफजाल अंसारी ने जीत दर्ज की। अफजाल अंसारी ने भले ही मुख्तार से पहले राजनीति में एंट्री ली लेकिन उनकी दोनों जीतों में मुख्तार के रसूख और रुतबे का बड़ा हाथ था।
वर्ष 1996 में मुख्तार अंसारी खुद मुख्तार अंसारी सियासी समर में उतरा और पहली बार में ही मऊ सीट से विधानसभा चुनाव जीत कर पूर्वांचल की राजनीति का बड़ा नाम हो गया था। मुख्तार रिकॉर्ड पांच बार इस सीट से विधायक रहा।
मुख्तार ने अपराध कि दुनिया से सियासत का दामन थाम कर अपना कद बढ़ा लिया था, लेकिन पूर्वांचल की खूनी रंजिश और गैंगवार ने उसका पीछा नहीं छोड़ा। वर्चस्व की लड़ाई में उसकी ब्रजेश सिंह से दुश्मनी पुरानी थी, साल 2001 में मुख्तार पर जानलेवा हमला हुआ। कहा जाता है कि हमला उसके लहू के प्यासे माफिया ब्रजेश सिंह और उसके लोगों ने किया था। इस हमले में मुख्तारअंसारी के तीन साथी मारे गए पर वो बाल-बाल बच गया और मुख्तार अंसारी ने एक शातिर दिमाग लगाते हुए इस गैंगवार में अपनी मौत की ख़बर उड़वा दी हालांकि यह झूठ ज्यादे दिन नही चल पाया।
साल 2004 में लोकसभा चुनाव आया और इस लोकसभा चुनाव में गाजीपुर सीट से मुख्तार का भाई अफजाल अंसारी चुनाव मैदान में उतरे। उस समय मुख्तार अंसारी मुख्यमंत्री व सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के करीब थे।
मुलायम सिंह यादव ने पूर्वांचल में सपा की पकड़ मजबूत करने के लिए माफिया रूपी नेता मुख्तार अंसारी को आगे बढ़ाया। 2004 के लोकसभा चुनाव में सपा से अफजाल अंसारी गाजीपुर सीट से मैदान में थे और उनके सामने बीजेपी के दिग्गज मनोज सिन्हा । इस चुनाव में मुख्तार ने अपनी ताकत दिखाई और अफजाल ने मनोज सिन्हा को करीब दो लाख वोटों के अंतर से हराया। इससे मुख्तार का कद मुलायम सिंह यादव और सूबे की राजनीति में काफी वजनदार हो गया । लेकिन 2005 में हुए मऊ दंगे में एक बार फिर मुख्तार का वो चेहरा सामने आया जिससे वो एक बार फिर आरोपों से घिर गया। इसमें मुख्तार अंसारी पर दंगे भड़काने का आरोप लगा था। इस मामले में मुलायम सरकार की काफ़ी किरकिरी हुई तब मुलायम सिंह यादव के दबाव पर मुख्तार को आत्मसमर्पण करना पड़ा कर जेल जाना पड़ा।
मुख्तार अंसारी का कितना दबदबा था कि यह इससे भी समझा जा सकता है कि मुलायम सिंह यादव सरकार के दौरान वाराणसी में तैनात तेज तर्रार पुलिस ऑफिसर शैलेन्द्र सिंह ने एक कार्बाइन पकड़ी जो कि सेना से एक भगौड़े ने मुख्तार अंसारी को दी थी।
इस बड़ी उपलब्धि हासिल करने के बाद भी मुलायम सिंह यादव ने शैलेन्द्र सिंह पर आला अधिकारियों से दबाव डलवाया कि मुख्तार अंसारी को कुछ नहीं होना चाहिए उसका नाम किसी भी तरह से निकाल दिया जाए। किन्तु शैलेन्द्र सिंह ने इनकार कर दिया किन्तु मुलायम सरकार ने अपने ही पुलिस ऑफिसर को इतना प्रताड़ित किया कि थक हार कर शैलेन्द्र सिंह को पुलिस की नौकरी से इस्तीफ़ा ही दे देना पड़ा था।
मऊ दंगे के बाद जेल में बन्द मुख्तार ने एक हाई प्रोफाइल मर्डर को अंजाम देने की सजिश रची और बेहद दुर्दांत और क्रूरता पूर्वक मोहम्दाबाद सीट से भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या दिन दहाड़े हत्या करवा डाली।
प्रदेश ही नहीं वल्कि देश को भी हिला डालने वाले इस हत्याकांड को मुख्तार अंसारी का खास शूटर मुन्ना बजरंगी ने अपने साथियों के साथ अंजाम दिया था।
उसने AK 47 से 400 गोलियां चलाई थी।
मालुम हो कि इस दुश्मनी का कारण बनी थीं मोहम्मदाबाद सीट।
25 वर्षों से अंसारी परिवार के कब्जे में थी लेकिन कृष्णानंद राय ने इस सीट पर जीत दर्ज कर मुख्तार के तिलिस्म को तार तार कर दिया था।
विधायक कृष्णानंद राय ने मोहम्मदाबाद सीट जीत कर मुख्तार के राजनीतिक और बाहुबली साम्राज्य को खुली चुनौती दी थी। मुख्तार ये हार सहन नहीं कर पाया और हार का बदला उसने कत्ल से लिया।
कृष्णानंद राय की हत्या के बाद मुख्तार अंसारी फिर सुर्खियों में आ गया था। कृष्णानंद राय की हत्या मुख्तार के खिलाफ सबसे बड़ा केस था। साल 2007 में अंसारी परिवार ने मायावती की पार्टी बीएसपी का दामन थाम लिया। लेकिन अपराध मुक्त प्रदेश का दावा करने वाली मुख्य्मंत्री मायावती ने तीन साल के बाद ही अंसारी भाइयों को पार्टी से निकाल दिया। इसके बाद अफजाल अंसारी ने कौमी एकता दल नाम से पार्टी बनाई। जिसका 21 जून 2016 को मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी में विलय हो गया। कहा जाता है कि अखिलेश यादव के तगड़े विरोध के चलते समाजवादी पार्टी संसदीय बोर्ड ने विलय रद्द कर दिया था। जिसके बाद कौमी एकता दल का बसपा में विलय हो गया था।
मुख्तार अंसारी, अफजाल अंसारी समेत उसके परिवार पर 97 केस दर्ज हैं। मुख्तार अंसारी पर अकेले ही हत्या के 8 मुकदमे समेत 61 मामले दर्ज हैं।भाई अफजाल अंसारी पर 7 मामले, भाई सिगबतुल्लाह अंसारी पर 3 केस, मुख्तार अंसारी की पत्नी अफसा अंसारी पर 11 मुकदमे, बेटे अब्बास अंसारी पर 8 तो छोटे बेटे उमर अंसारी पर 6 केस दर्ज हैं। मुख्तार अंसारी की बहू निखत पर भी 1 मुकदमा दर्ज है।
ज्ञात हो कि 32 साल पुराने अवधेश राय हत्याकांड में 5 जून 2023 को कोर्ट ने मुख्तार समेत अन्य को दोषी करार दिया था। मुख्तार अंसारी को इस केस में आजीवन कारावास और 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था। घटना के बाबत दर्ज है कि 3 अगस्त 1991 को लहुराबीर क्षेत्र स्थित आवास के गेट पर ही दिनदहाड़े अवधेश राय पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर उनकी हत्या कर दी गई थी। इस हत्याकांड में अवधेश राय के भाई व वर्तमान में उत्तर प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ने चेतगंज थाना में पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी, अब्दुल कलाम, भीम सिंह, कमलेश सिंह व राकेश न्यायिक के खिलाफ नामजद मुकदमा दर्ज कराया था।इस मुकदमे की सुनवाई के दौरान पूर्व विधायक अब्दुल कलाम व कमलेश सिंह की मौत हो चुकी थीं ,अवधेश राय हत्याकांड मामले की सुनवाई सबसे पहले बनारस की ही एडीजे कोर्ट में चल रही थी। 23 नवंबर 2007 को मुकदमे की सुनवाई के दौरान ही अदालत के चंद कदम दूर ही बम ब्लास्ट हो गया। राकेश न्यायिक ने सुरक्षा को खतरा बताते हुए हाईकोर्ट की शरण ली और काफी दिनों तक सुनवाई पर रोक लगी रही। इस केस के बाद मामले को प्रयागराज जिला अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया था। बनारस में एमपी/एमएलए की विशेष कोर्ट के गठन होने पर मुकदमे की सुनवाई यहां शुरू हुई थी। बीते एक साल में मुख्तार अंसारी को चार मामलों में सजा सुनाई जा चुकी है, मुख्तार के खिलाफ हत्या का यह पहला मामला है जिसमें फैसला आया है।
योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद मुख्तार अंसारी के बुरे दिन शुरू हो गए। अब तक उसकी 600 करोड़ से ऊपर की नामी और बेनामी संपत्तियों पर बुलडोजर चलने के साथ जब्त की जा चुकी है।
मालुम हो कि बांदा जेल में बंद रहे माफिया मुख्तार अंसारी को एमपी/एमएलए कोर्ट ने गैंगस्टर एक्ट में 10 साल की सजा सुनाई थी। साथ ही 5 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था। वहीं मुख्तार अंसारी के बड़े भाई और बीएसपी सांसद अफजाल अंसारी को भी एमपी एमएलए कोर्ट ने दोषी करार दिया था। सांसद अफजाल अंसारी को 4 साल की सजा और एक लाख रुपये का अर्थदंड लगाया गया था सज़ा होते ही सांसदी गवा चुके अफजल अंसारी इसके विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में गए थे जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सदस्यता रद्द होने पर अगले आदेश तक रोक लगाई हुई है।
अफजल अंसारी को इस बार 2024 के लोकसभा चुनाव में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने गाजीपुर लोकसभा सीट से पार्टी प्रत्याशी बना कर सियासी समर में उतारा है।
ज्ञातव्य हो कि योगी आदित्यनाथ सरकार ने उत्तर प्रदेश को अपराध मुक्त करने के अभियान में”मिट्टी में मिला दूंगा” के तहत माफियाओं और उनके सिंडीकेट को ऐसे कठोरता पूर्वक धूल धूसरित करना शुरू कर दिया है कि सपा प्रत्याशी अफजाल अंसारी ने पिछ्ले दिनों गाजीपुर में अपनी पहली सभा में दर्द व्यक्त करते हुए कहा कि अब उनको चुनाव लडने के लिए अपनी प्रॉपर्टी बेचनी पड़ेगी।

हालांकि यह उनका अपने पक्ष में समर्थको की सहानुभूति पैदा कर वोट हलोरने के तहत सियासी चाल चली गई या फिर वाकई योगी सरकार ने दीन हीन बना दिया है यह तो आने वाले दिन ही बता पाएंगे।
कुल मिलाकर यह कहना उचित हो सकता है कि सत्ता चाह ले तो माफिया को मिट्टी में भी मिला सकती है और मिट्टी से उठाकर सरकार और सूबे की छाती पर दनदना भी सकती है।