लेखक #:डॉ.के. विक्रम राव
यह बावेला क्यों खड़ा कर दिया इस्लामी तंजीमों ने मोदी सरकार के नए नागरिकता कानून पर ? बावले हो गए ? कौन भारत का नागरिक बने या नहीं यह राष्ट्रपति तय करते हैं। फिर यह नया कानून नागरिकता प्रदान करता है। उसे छीनता नहीं है। फिलहाल सर्वोच्च न्यायालय अगले सप्ताह बुधवार (19 मार्च) को 237 याचिकाएं सुनेगा ताकि निर्णय कर सके कि यह वैध है या नहीं।
बवंडर उठाने की कोशिश में केरल की इंडियन मुस्लिम लीग खास याची है। नाम से जाहिर है यह इस्लामी राजनीतिक दल गैर-मुसलमानों से कोई सरोकार नहीं रखता।
इन चंद हिंदुस्तानी मुसलमानों को डर और आशंका किससे तथा किस बात के लिए है ? यह कानून उन हिंदुओं के लिए राहत है जो इस्लामी गणतंत्रों (पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान) में रहते हैं। उन्हें धर्म के नाम पर दारुल इस्लाम के शासक यातना दे रहे हैं। भारत के अलावा कौन देश इन पीड़ितों की मदद करेगा ?इससे उनकी आस्था की आजादी बनी रहेगी।
आज इस कानून का विरोध करने वाले कांग्रेसियों को स्मरण करा दूं उनके दिग्गजों ने संसद में क्या कहा था। वर्ष 2003 में मनमोहन सिंह ने विपक्ष के नेता के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार से मांग की थी कि बांग्लादेश जैसे देशों से प्रताड़ित होकर आ रहे अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने में हमें ज्यादा उदार होना चाहिए। उन्होंने कहा : "मैं उम्मीद करता हूं कि माननीय उप प्रधानमंत्री इस संबंध में नागरिकता कानून को लेकर भविष्य की रूपरेखा तैयार करते समय ध्यान देंगे।"
तब उच्च सदन में आसन पर उपसभापति नजमा हेपतुल्ला बैठी थीं। हेपतुल्ला ने कहा था कि पाकिस्तान में भी अल्पसंख्यक परेशान हैं और उनका भी ध्यान रखा जाए। तब तत्कालीन उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि विपक्ष के नेता ने जो कहा, उसका वह पूरा समर्थन करते हैं।
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अधिक स्पष्ट किया। वे बोले: "इस क़ानून के तहत 31 दिसंबर 2014 से पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान से भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय को नागरिकता दी जाएगी। मोदी सरकार ने नागरिकता (संशोधन) नियम, 2024 की अधिसूचना में बताया कि इससे पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न की वजह से भारत आए अल्पसंख्यकों को यहां की नागरिकता मिल जाएगी।"
विभाजन के तुरंत बाद भारत छोड़कर इस्लामी पाकिस्तान जाने वाले दिग्गज दारुल इस्लाम से निराश हो गए थे। यह उनके सपने का दारुल इस्लाम नहीं था। पाकिस्तान का स्थापना दिवस था 14 अगस्त 1947 जो रमजान के रोजों का आखिरी जुम्मा (शुक्रवार) था। उपवास का दिन था। मगर हिंदू दादा के पोते मोहम्मद अली जिन्ना ने उस दिन भव्य लंच कराची में रखा था। इस्लाम राष्ट्र में पाक रमजान के रोजे के पहले दिन ही उल्लंघन हुआ था। गौर कर लें पाकिस्तान आंदोलन में सक्रिय अवध और अन्य प्रदेशों से पाकिस्तान गए भारतीय मुसलमानों को आज भी मोहाजिर (शरणार्थी) कहा जाता है। शायद ऐसी ही बदसलूकी के कारण लखनऊ के जोश मलीहाबादी वापस लौटना चाहते थे। तब इंदिरा गांधी ने सटीक जवाब दिया : "मेरे वालिद जवाहरलाल नेहरू मिन्नत करते रह गए इस महान शायर से कि पाकिस्तान मत जाओ। तब आपने इस गुजारिश को ठुकरा दिया। अब आप भारत वापस नहीं आ सकते।" मगर नेहरू ने पाकिस्तान कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव लखनऊ से कराची गए जनाब सज्जाद जहीर को भारतीय नागरिकता दुबारा सौंप दी। इन सज्जाद जहीर साहब के भाई अली जाहिर साहब पंडित गोविंद वल्लभ पंत की यूपी में
प्रथम काबीना में मंत्री थे। तब किसी भी हिंदू ने सज्जाद ज़हीर का विरोध नहीं किया था।
एक और संदर्भ। अपनी कराची यात्रा (1985) में कुछ केरल और हैदराबाद के मुसलमान मुझे मिले थे। वे सभी दुखी थे। वे हो तो गए पाकिस्तानी। भारत तो छूट ही चुका था।
यहां बात कुछ कानूनी पहलू पर। संविधान का अनुच्छेद 6 पाकिस्तान से भारत आए लोगों की नागरिकता को पारिभाषित करता है। इसके मुताबिक 19 जुलाई 1949 से पहले पाकिस्तान से भारत आए लोग भारत के नागरिक माने जाएंगे। इस तारीख के बाद पाकिस्तान से भारत आए लोगों को नागरिकता हासिल करने के लिए रजिस्ट्रेशन करवाना होगा। दोनों परिस्थितियों में व्यक्ति के मां-बाप या दादा-दादी का भारतीय नागरिक होना जरूरी है।
अब परखें कि मोदी सरकार का कानून मुस्लिमों के खिलाफ तो नहीं है। “जो भी शख्स भारत में है क्योंकि वो अत्याचार के कारण आया है उसे वापस उसी जगह भेजा जाएगा। इसका मतलब ये नहीं माना जाना चाहिए कि वो कभी यहां नागरिकता के योग्य होंगे। अलबत्ता अगर चीजें अगले 50 सालों में शरणार्थियों के लिए बेहतर नहीं होंती तो हमें अतिरिक्त तदर्थ संविधान के कानून की तरह उनकी सुरक्षा को बढाने की जरूरत होगी। लेकिन फिलहाल ये इस सरकार की नीति नहीं है।” अतः अंतिम तर्क यही है कि मुसलमान तो हर इस्लामी राष्ट्र में जा सकते हैं। हिंदू केवल नेपाल के अलावा कहां जाएंगे ?

(लेखक IFWJ के नेशनल प्रेसिडेंट व वरिष्ठ पत्रकार/स्तंभकार हैं)